शब्द का अर्थ
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टाँक :
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स्त्री० [सं० टंक] १. तीन या चार मासे की एक पुरानी तौल। २. प्रायः २५ सेर का एक पुराना बाट जिसकी सहायता से धनुष की शक्ति की परीक्षा की जाती थी। ३. अंश। भाग। हिस्सा। स्त्री० [हिं० टाँकना] १. टाँकने की क्रिया या भाव। २. लिखावट या लेख। ३. लिखने की कलम का अगला भाग या सिरा। स्त्री० [हिं० आँकना] मान, मू्ल्य आदि का अनुमान कूत। |
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समानार्थी शब्द-
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टाँकना :
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स० [सं० टंकण=बाँधना] १. सूई, डोरे आदि से सीकर कोई चीज कपड़ों पर लगाना। जैसे–साड़ी पर बेल या सलमासितारे टाँकना; कमीज या कोट में बटन टाँकना। २. दो चीजों को आपस में जोड़ने, मिलाने आदि के लिए किसी प्रकार उनमें टाँका (देखें) लगाना। ३. किसी क्रिया से कोई चीज किसी दूसरी चीज के साथ अटकाना या लगाना। ४. चक्की, सिल आदि को टाँकी से रेहना। ५. आरी, रेती आदि के दाँत, किसी क्रिया से चोखे, तेज या नुकीले करना। ६. स्मरण रखने के लिए अथवा हिसाब ठीक रखने के लिए कोई बात या रकम कहीं लिखना। जैसे–(क) जाकड़ दिया हुआ माल बही पर टाँकना, कापी पर किसी का पता टाँकना। ७.लिखित रूप में कोई च़ीज; या बात किसी के सामने उपस्थित करना। (क्व०) ८. भोजन करना। खाना। जैसे–वह सारी मलाई टाँक गया। ९. किसी प्रकार के लेन-देन में, बीच में से कुछ रकम निकाल या हथिया लेना। (दलाल) जैसे–मकान की बिक्री में सौ रुपये वह भी टाँक गया। |
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टांकर :
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पुं० [सं० टंक+अण्, टांक√रा (देना)+क] १. व्यभिचारी। २. कामुक या विषयी व्यक्ति। |
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टाँकली :
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स्त्री० [सं० ढक्का] पुरानी चाल का एक तरह का बड़ा ढोल। स्त्री० [देश०] वह गराड़ी या घिरनी जिसकी सहायता से जहाज के पाल लपेटे जाते हैं। (लश०) |
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टाँका :
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पुं० [हिं० टाँकना] १. हाथ की सिलाई में, धागे आदि की वह सीयन जो एक बार सूई को एक स्थान से गडा़कर दूसरे स्थान पर निकालने से बनती है। जैसे–(क) इस लिहाफ में टाँके बहुत दूर-दूर पर लगे हैं। (ख) उनके घाव में चार टाँके लगे हैं। २. उक्त प्रकार से जोड़ी, टाँकी या लगाई हुई चीजों का वह अंश जहाँ जोड़ दिखाई पड़ता हो। ३. सूई, तागे आदि से की हुई सिलाई या ऊपर से दिखाई देनेवाले उसके चिन्ह। सीवन। ४. उक्त प्रकार से टाँक लगाकर जोड़ा जानेवाला टुकड़ा। चकती। थिगली। ५. कड़ी धातुओं को आपस में जोड़ने या सटाने के लिए उनके बीच में मुलायम धातु या मसाले से लगाया हुआ जोड़। जैसे–इस थाली ( या लोटे) का टाँका बहुत कमजोर है। मुहावरा–(किसी के) टांके उधड़ना=बहुत ही दुर्गत या दुर्दशा होना। जैसे–इस मुकदमें में उनके टाँके उधड़ गये। ६. धातुएँ जोड़ने का मसाला। पुं० [सं० टंक-गड्ढा या अं० टैंक] [स्त्री० अल्पा० टंकी टाँकी] १. पानी आदि भरकर रखने के लिए वह आधान जो चारों ओर छोटी दीवारें खड़ी करके बनाया जाता है। चहबच्चा। हौज। २. पानी रखने का बड़ा गोलाकार बरतन। कंडाल। लोहे की बड़ी छेनी या ‘टाँकी’। |
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टाँकाटूक :
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वि० [हिं० टाँक+तौल] तौल में ठीक-ठाक। वजन में पूरा-पूरा। (दूकानदार) |
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टांकार :
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पुं०=टंकार। |
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टाँकी :
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स्त्री० [सं० टंक] १. दो चीजों को जोड़नेवाला छोटा टाँका। २. छेनी की तरह का संगतराशों का एक औजार जिससे पत्थर काटे और तोड़े जाते हैं। मुहावरा (किसी चीज पर) टांकी बजना=टाँकी का आघात होना। ३. फलों आदि में से काटकर निकाला हुआ कुछ गोलाकार अंश अथवा इस प्रकार काटने से उनमें बननेवाला छेद या सूराख जिससे उनकी भीतरी स्थिति का पता चलता है। ४. गरमी। सूजाक आदि रोगों के कारण शरीर में होनेवाला घाव या व्रण। ५. एक प्रकार का फोड़ा। डुंबल। ६. आरी का नुकीला दाँत या दाँता। स्त्री० दे० (टंकी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टाँकीबंद :
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वि० [हिं० टाँकी फा०=बंद] (वस्तु या रचना) जिसके विभिन्न अंगों को टाँके लगाकर जोड़ा गया हो। जैसे–टाँकीबंद जोड़ाई, टाँकीबंद इमारत। |
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