शब्द का अर्थ
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टेक :
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स्त्री० [हिं० टेकना] १. टेकने की क्रिया या भाव। २. वह बड़ी लकड़ी या ऐसी ही और कोई चीज जो किसी दूसरी बड़ी या भारी चीज को गिरने, लुढ़कने आदि से बचाने तथा रोकने के लिए अथवा किसी प्रकार के सहारे के लिए उसके नीचे लगाई जाती है। चाँड़। थूनी। जैसे–छत के नीचे या दीवार के पार्श्व में लगाई जानेवाली टेक। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। ३. कोई ऐसी चीज जो उठने-बैठने आदि के समय सहारा देती हो। जैसे–टेक लगाकर बैठना-तकिये दीवार आदि के सहारे पीठ टेककर बैठना। ४. साधुओं की अधारी। टेवकी। ५. अवलंब। आश्रय। सहारा। ६. टीला। टेकरी। जैसे–राम टेक। ७. आग्रह, प्रतिज्ञा हठ आदि की कोई ऐसी बात जिस पर आदमी दृढ़तापूर्वक अड़ा रहे और जल्दी इधर-उधर न हो। मुहावरा–टेक गहना=टेक पकड़ना। (देखें नीचे) टेक निभाना=अपनी की हुई प्रतिज्ञा या हठ पूरा करना। टेक पकड़ना=अपनी कहीं हुई बात पूरी करने या कराने के लिए जिद या हठ करना। टेक रहना=कही हुई बात या जिद पूरी होना। टेक का निर्वाह होना। ८. वह बात जो अभ्यास पड जाने के कारण कोई मनुष्य अवश्य या प्रायः करता हो। आदत। टेव। बान। क्रि० प्र०–पड़ना। ९. गीत के आरंभ का वह पद जो प्रायः शेष पदों से छोटा होता और हर पद के बाद दोहराया जाता है। १॰. स्थल का वह नुकीला लंबोतरा भाग जो जल में कुछ दूर तक चला गया हो। (लश०)। |
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समानार्थी शब्द-
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टेकड़ी :
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स्त्री=टेकरी (छोटी पहाड़ी)। |
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टेकन :
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स्त्री० [हिं० टेकन] वह बड़ी लकड़ी या ऐसी ही और कोई चीज जो किसी दूसरी बड़ी या भारी चीज को गिरने, लुढ़कने आदि से बचाने तथा रोकने के लिए अथवा किसी प्रकार के सहारे के लिए उसके नीचे लगाई जाती हैं। चाँड़। थूनी। |
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टेकना :
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स० [हिं० टिकना का स० रूप] १. किसी चीज को किसी दूसरी चीज के सहारे खड़ा करना, बैठाना या लेटाना। टिकाना। ठहराना। २. किसी चीज को गिरने, लुढ़कने, आदि से बचाने के लिए उसके नीचे या बगल में टेक लगाना। ३. थकावट, दुर्बलता, शिथिलता आदि के समय सीधे खड़े रहने, चलने-फिरने या बैठ सकने के योग्य न रहने पर उठने-बैठने आदि में सहारे के लिए शरीर के बोझ का कुछ अंश किसी चीज पर डालना या स्थित करना। जैसे–उठते समय दीवार टेकना, चलते समय किसी का कंधा टेकना। बैठते समय लकड़ी टेकना। मुहावरा–(किसी के आगे) घुटने टेकना=हार मानकर अधीनता सूचित करना। माथा टेकना-दंडवत् करना। नमस्कार या प्रणाम करना। ४. अपनी टेक या हठ पर दृढ़ रहना। ५. टेक ग्रहण करना। दृढ़ प्रतिज्ञा या हठ करना। जैसे–आज तो तुमने यह नई टेक टेकी है। पुं० [देश०] एक प्रकार का जंगली धान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टेकनी :
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स्त्री०=टेकन। |
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टेकरा :
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पुं० [हिं० टेक] [स्त्री० अल्पा० टेकरी] १. प्राकृतिक रूप से ऊँची उठी हुई भूमि या छोटी सी पहाड़ी। टीला (देंखें)। पु०=टिकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टेकरी :
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स्त्री० [हिं० टेकरा का स्त्री अल्पा० रूप] छोटी सी पहाड़ी। टीला। |
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टेकला :
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स्त्री० [हिं० टेक] १. मन में ठानी हुई बात। टेक। संकल्प। २. धुन। रट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] एक उपकरण जिससे चीजें उठई तथा गिराई जाती हैं। |
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टेकान :
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स्त्री० [हिं० टेकना] १. टेकने या टेके जाने की अवस्था या भाव। २. वह चीज जो किसी दूसरी चीज के साथ उसे सहारा देने के लिए लगाई जाती है। टेक। चाँड़। ३. वह ऊंचा चबूतरा जहाँ बोझ ढोने वाले मजदूर बोझ रखकर थोड़ी देर के लिए सुस्ताते हैं। ४. वह स्थान जहाँ से जुआरियों को जूए के अडडे का पता मिलता है। |
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टेकाना :
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स० [हिं० टेकना का स०] १. किसी चीज का सहारा देने के लिए उसके साथ कोई दूसरी चीज खड़ी करना या लगाना। २. किसी भारी चीज का कुछ अंश किसी आधार पर स्थित करना। ३. चुपचाप या धीरे से कोई चीज किसी को धमाना या देना (दलाल)। |
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टेकानी :
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स्त्री० [हिं० टेकाना] १. वह चीज जो किसी को गिरने से रोकने के लिए उसके नीचे या बगल में लगाई जाय। टेक। २. बैलगाड़ी का जूआ। ३. वह कील जो पहिये को धुरे में पहनाने पर इसलिए जड़ी जाती है कि वह बाहर निकलक गिर न जाय। |
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टेकी :
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वि० [हिं० टेक] १. अपनी टेक या प्रतिज्ञा या हठ पर अड़ा रहनेवाला। २. जिद्दी। |
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टेकुआ :
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पुं०=तकला। पुं०=टेकानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टेकुरा :
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पुं० [देश०] पान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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टेकुरी :
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स्त्री० [सं० तर्कु, हिं० टेकुआ] १. रस्सी बटने या सूत कातने की तकली। २. चरखे में का तकला। ३. चमड़ा सीने का सूआ या सूजा। ४. सुनारों का एक औजार जिससे सोने आदि के तार खींचकर उनमें फंदा लगाया जाता है। ५. संगतराशों का एक औजार जिससे मूर्तियों आदि का तल चिकना किया जाता है। ६. जुलाहों की बाँस की वह फिरकी जिसकी नाभि में रेशम के डोरे अटकाये या फँसाये जाते हैं। |
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