पुं० [सं० तृ० त०] किसी भाषा का वह शब्द जो किसी दूसरी भाषा में अपने मूल रूप में (बिना विकृत हुए) चलता हो, ‘तद्भव’ से भिन्न। जैसे–हिन्दी में प्रयुक्त होनेवाले कृपा, महत्व, सेवा आदि संस्कृत के और खराब मिजाज, हाजिर आदि अरबी-फारसी के शब्द तत्सम रूप में ही चलते हैं।