शब्द का अर्थ
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तब :
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अव्य० [सं० तदा] १. किसी उल्लिखित या विशिष्ट परिस्थिति या समय में। जैसे–(क) तब हम वहाँ रहते थे। (ख) इतना हो जाय, तब तुम्हारा काम करूँगा। २. इसके पश्चात् या तुंरत बाद। जैसे–वहाँ तब निस्तब्धता छा गई। ३. इस कारण या वजह से। जैसे–मुझे जरूरत थी, तब तो मैंने माँगा था। |
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तबक :
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पुं० [अ०] १. परत। तह। २. चाँदी, सोने आदि धातुओं को खूब कूटकर बनाया हुआ बहुत पतला पत्तर जो औषधों आदि में मिलाया और शोभा के लिए मिठाइयों आदि पर लगाया जाता है। वरक। ३. एक प्रकार की चौड़ी और छिछली थाली। ४. वह उपचार जो मुसलमान स्त्रियाँ भूत-प्रेत और परियों की बाधा से बचने के लिए करती है। क्रि० प्र०–छोड़ना। ४. इस्लामी, पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी के ऊपर और नीचे के तल या लोक। ५. रक्त-विकार आदि के कारण शरीर पर पड़नेवाला चकत्ता। ६. घोड़ो का एक रोग जिसमें उनके शरीर के किसी भाग में सूजन हो जाती और चकता पड़ जाता है। |
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तबकगर :
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पुं० [अ० तबक+फा० गर] वह व्यक्ति जो सोने-चाँदी आदि के वरक बनाता हो। तबकिया। |
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तबकड़ी :
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स्त्री० [अ० तबक+डी (प्रत्यय)] छोटी रिकाबी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तबक-फाड़ :
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पुं० [अ० तबक+हिं० फाड़] कुश्ती का एक पेंच। |
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तबका :
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पुं० [अ० तबकः] १. पृथ्वी या भूमि का कोई बड़ा खंड या विभाग। भू-खंड। २. पृथ्वी के ऊपर और नीचे के तल या लोक। ३. परत। तह। ४. मनुष्यों का वर्ग या समूह। |
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तबकिया :
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वि० [हिं० तबक] तबक संबंधी। जिसमें तबक या परतें हों। जैसे–तबकिया हरताल। पुं०=तबकगर। (देखें)। |
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तबकिया-हरताल :
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पुं० [हिं० तबकिया+सं० हरताल] एक प्रकार की हरताल जिसके टुकड़ों में तबक या परतें होती हैं। |
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तबदील :
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वि० [अ०] [भाव० दबदीली] १. (पदार्थ) जिसे परिवर्तित कर या बदल दिया गया हो। २. (व्यक्ति) जो एक स्थान या पद से दूसरे स्थान या पद पर भेजा गया हो। |
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तबदीली :
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स्त्री० [अ०] १. तबदील होने की अवस्था या भाव। परिवर्तन। २. एक स्थान या पद से दूसरे स्थान या पद पर जाना दबादला। |
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तबद्दल :
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पुं=तबदीली। |
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तबर :
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पुं० [फा०] १. कुल्हाड़ी। टाँगी। २. कुल्हाड़ी के आकार का लड़ाई का एक हथियार। परशु। पुं० [देश०] मस्तूल के ऊपरी भाग में लगाया जानेवाला पाल (लश०)। |
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तबरदार :
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वि० [फा०] (व्यक्ति) जिसके पास तबर (कुल्हाड़ी) हो या जो तबर चलाना जानता हो। |
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तबरदारी :
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स्त्री० [फा०] तबर या कुल्हाड़ी चलाने की क्रिया या भाव। |
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तबर्रा :
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पुं० [अ०] १. घृणा। नफरत। २. वे घृणा सूचक दुर्वचन जो शीया लोग मुहम्मद साहब के कुछ मित्रों के संबंध में (सुन्नियों की ‘यदहे सहाबा’ के उत्तर में) कहते हैं। ३. उक्त दुर्वचनों के पद या गीत। |
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तबल :
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पुं० [फा०] १. बड़ा ढोल। २. डंका। नगाड़ा। उदाहरण–तबल बाज तिण ही समै, निथ से सुभट अपार।-जटमल। |
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तबलची :
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पुं० [अ० तबलः+ची (प्रत्यय)] वह व्यक्ति जो तबला बजाने का काम करता हो। तबलिया। |
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तबला :
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पुं० [अ० तबलः] १. ताल देने का एक प्रसिद्ध बाजा जिस पर चमड़ा मढ़ा होता है, और जो साधारणतः डुग्गी या बायाँ नामक दूसरे बाजे के साथ बजाया जाता है। विशेष–तबला और बा० याँ दोनों पास-पास रखेजाते हैं, और तबला दाहिने हाथ से और बायां बाएँ हाथ से बजाया जाता है। मुहावरा–तबला खनकना या ठनकना=ऐसा नाच-गाना होना जिसके साथ तबला भी बजता हो। तबला मिलाना-तबले का बंधन या बद्धी आवश्यकतानुसार कसकर या ढीली करके ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिसमें तबले के ठीक स्वर निकलें। |
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तबलिया :
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पुं० [अ० तबलः+इया (प्रत्यय)] दे० ‘तबलची’। |
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तबलीग :
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पुं० [अ०] १. किसी के पास कुछ पहुँचाना। २. अपने धर्म का प्रचार करना। ३. दूसरों को दीक्षित करके अपने धर्म का अनुयायी बनाना। |
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तबस्सुम :
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पुं० [अ०] मधुर या हलकी हंसी। मुस्कराहट। |
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तबाख :
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पुं० [अ० तबाक] बड़ी काली परात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तबाखी :
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पुं० [हिं० तबाख] थाल या परात में रखकर सौदा बेचनेवाला। |
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तबाखी-कुत्ता :
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पुं० [हिं०] ऐसा साथी जो अपना स्वार्थ सिद्ध होने के समय तक साथ दे और दुर्दिन में साथ छोड़ दे। |
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तबादला :
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पुं० [अ० तबादलः] १. लेन-देन के क्षेत्र में होनेवाला चीजों का विनिमय। २. रूप आदि में होनेवाला परिवर्तन ३. व्यक्ति को एक स्थान या पद से दूसरे स्थान या पद पर भेजा जाना। अंतरण। बदली। |
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तबाबत :
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स्त्री० [अ०] तबीब अर्थात् चिकित्सक काम या पेशा। चिकित्सा का व्यवसाय। |
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तबाशीर :
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पुं० [सं० तवक्षीर] बंसलोचन। |
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तबाह :
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वि० [फा०] [भाव० तबाही] १. जो बिलकुल नष्ट-भ्रष्ट या ध्वस्त हो गया हो। जैसे–भूकंप ने नगरी को तबाह कर डाला। २. (व्यक्ति) जिसकी बहुत बड़ी हानि हुई हो अथवा जिसका सर्वस्य लुट गया हो। |
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तबाही :
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स्त्री० [फा०] १. तबाह करने या होने की अवस्था या भाव। २. बरबादी। विनाश। मुहावरा–तबाही खाना=जहाज का टूट-फूट कर रद्दी होना। (लश०)। |
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तबिअत :
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स्त्री०=तबियत। |
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तबीअत :
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स्त्री० [अ०] १. स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी की शारीरिक या मानसिक स्थिति। मिजाज। मुहावरा–तबीअत खराब होना=शरीर अस्वथ्य या रोगी होना। बीमार होना। जैसे–इधर महीनों से उनकी तबीयत खराब है। तबीअत बिगड़ना=(क) कै या मिचली मालूम होना। (ख) अस्वस्थता या रोग का आक्रमण होता हुआ जान पड़ना। २. आचरण या व्यवहार की दृष्टि से किसी की प्रवृत्ति या मनोवृत्ति। मन की रूझान। ३. जी। मन। हृदय। मुहावरा–(किसी पर) तबीअत आना=मन में किसी के प्रति अनुराग या प्रेम उत्पन्न होना। (किसी चीज पर) तबीअत आना=मन में कोई चीज पाने या लेने की इच्छा होना। तबीअत फड़क उठना या जाना=कोई अच्छी चीज या बात देखकर चित्त या मन बहुत अधिक प्रसन्न होना। तबीयत पाना-अच्छे स्वभाववाला होना। जैसे–उन्होंने अच्छी तबीअत पाई है। (किसी काम या बात से) तबीअत भर जाना=मन में अनुराग, कामना आदि न रह जाना और विरक्ति सी उत्पन्न होना। (अपनी) तबीअत भरना=अपनी तसल्ली या समाधान करना। जैसे–पहले मकान देखकर अपनी तबीअत भर लो, तब उसे लेने का विचार करना। (किसी की) तबीयत भरना=किसी का पूरा संतोष या समाधान करना। (किसी काम में) तबीयत लगाना=कोई काम करने में चित्त, ध्यान या मन लगना। जैसे–लिखने-पढ़ने में तो उसकी तबीअत ही नहीं लगती। (किसी से) तबीअत लगाना=अनुराग या प्रेम करना। ४. बुद्धि। समझ। मुहावरा–तबीअत पर जोर डालना या देना=अच्छी तरह मन लगाते हुए समझादारी से काम लेना। जैसे–जरा तबीयत पर जोर डालोगे तो कोई न कोई रास्ता निकल ही आवेगा। तबीअत लड़ाना-तबीअत पर जोर डालना। |
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तबीअतदार :
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वि० [अ० तबीयत+फा० दार] [भाव० तबीअतदारी] १. अच्छी तबीयत या बुद्धिवाला। २. सहज में औरों से मेल-मिलाप करने और रसपूर्ण कामों या बातों में सम्मिलित होनेवाला। भावुक। रसिक। |
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तबीअतदारी :
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स्त्री० [अ०तबीअत+फा०दारी] १.तबीअतदार होने की अवस्था या भाव। २. समझदारी। ३. भावुकता। रसिकता। |
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तबीब :
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पुं० [अ०] १. यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार जड़ी-बूटियों आदि के द्वारा इलाज कनरे वाला चिकित्सक। हकीम। २. चिकित्सक। वैद्य। |
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तबीयत :
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स्त्री=तबीअत। |
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तबेला :
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पुं० [अ० तवेलः] वह घिरा हुआ स्थान जहाँ पशु बाँधे जाते हों। अस्तबल। मुहावरा–तबेले में लत्ती चलना=कोई विशिष्ट काम करनेवाले व्यक्तियों मे आपस में लड़ाई-झगड़ा होना। पुं० [हिं० ताँबा] ताँबे का बना हुआ एक प्रकार का बड़ा पात्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तबोरी :
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स्त्री० [सं० तांबोल या हिं० तंबूल] लगाया हुआ पान। उदाहरण–-अधर अधर सों बीज तबोरी।–जायसी। |
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तब्बर :
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पुं० १.=तबर। २.=टावर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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