शब्द का अर्थ
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तुंग :
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वि० [सं०√तुंज् (हिंसा करना)+घञ्, कुत्व] १. बहुत ऊँचा। २. उग्र तीव्र ३. प्रधान। मुख्य। पुं० १. महादेव। शिव। २. बुध नामक ग्रह। ३. ज्योतिष में ग्रहों के उच्च होने की अवस्था। दे० उच्च। ४. चतुर व्यक्ति। ५. पर्वत। पहाड़। ६. पुन्नाग वृक्ष। ७. नारियल। ८. कमल का केसर। किंजल्क। ९. झुंड। समूह। १॰. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और दो गुरु होते हैं। ११. एक प्रकार का झाड़दार पेड़ जो पश्चिमी हिमालय में होता है। इसे आमी और एरंडी भी कहते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
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तुंगक :
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पुं० [सं० तुंग+कन्] १. पुन्नाग वृक्ष। नागकेसर। २. एक प्राचीन तीर्थ जहाँ सारस्वत मुनि ऋषियों को वेद पढ़ाते थे। |
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तुंग-नाथ :
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पुं० [मध्य० स०] हिमालय पर एक शिवलिंग और तीर्थस्थान। |
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तुंग-नाभ :
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पुं० [ब० स०] एक तरह का कीड़ा जिसके काट लेने पर शरीर में जलन होती है। |
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तुंग-बाहु :
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पुं० [ब० स०] तलवार चलाने का एक पुराना ढंग या प्रकार। |
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तुंग-बीज :
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पुं० [ष० त०] पारद। पारा। |
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तुंग-भद्र :
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पुं० [कर्म० स०] मतावाला हाथी। |
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तुंगभद्रा :
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स्त्री० [सं० तुंग-भद्र+टाप्] दक्षिण भारत की एक प्रसिद्ध नदी जो सह्याद्रि पर्वत से निकलती है और कृष्णा नदी में मिलती है। |
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तुंग-मुख :
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पुं० [ब० स०] गैंडा। |
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तुंगरस :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का गंध-द्रव्य। |
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तुंगला :
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पुं० [देश०] एक तरह की छोटी झाड़ी। |
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तुंगवेणा :
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स्त्री० [सं०] तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम। |
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तुंग-शेखर :
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पुं० [ब० स०] पर्वत। पहाड़। |
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तुंगा :
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स्त्री० [सं० तुंग+टाप्] १. वंशलोचन। २. शमी वृक्ष। ३. तुंग नामक वर्णवृत्त। |
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तुंगारण्य :
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पुं० [तुंग-अरण्य, कर्म० स०] झाँसी, ओड़छा आदि प्रदेशों के आस-पास के जंगलों का पुराना नाम। |
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तुंगारन्न :
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पुं०=तुंगारण्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तुंगारि :
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पुं० [तुंग-अरि, ष० त०] सफेद कनेर का पेड़। |
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तुंगिनी :
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स्त्री० [सं० तुंग+इनि-ङीष्] महाशतावरी । बड़ी सतावर। |
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तुंगिमा(मन्) :
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स्त्री० [सं० तुग+इमानितच्] ऊँचाई। |
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तुंगी(गिन्) :
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वि० [सं० तुंग+इनि] ऊँचा पुं० उच्चस्थ ग्रह। स्त्री० [सं० तुंग+ङीष्] १. हल्दी। २. रात्रि। रात। ३. वनतुलसी। ममरी। |
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तुंगी-नास :
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पुं० [ब० स०] दे० ‘तुंगनाभ’। |
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तुंगी-पति :
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पुं० [ष० त०] चंद्रमा। |
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तुंगीश :
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पुं० [तुंगि-ईश, कर्म० स०] १. शिव। २. सूर्य। ३. कृष्ण। |
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