शब्द का अर्थ
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तृण :
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पुं० [सं०√तृह् (हिंसा करना)+कन, हकारलोप] १. कुछ विशिष्ट प्रकार की वनस्पतियों की एक जाति या वर्ग जिसके कांड या पेड़ी में काठ या लकड़ीवाला अंश नहीं होता, गूदा ही गूदा होता है। इस वर्ग के पौधों में ऐसी लंबी-लंबी पत्तियाँ होती है जिनमें केवल लंबाई के बल नसें होती हैं। जैसे–ऊख, नरकट, सरकंडा आदि। २. घास या उसका डंठल। मुहावरा–(मुँह या दाँतों में) तृण गहना या पकड़ना-उसी प्रकार दीन-हीन बनकर सामने आना जिस प्रकार सीधी-सादी गौ मुँह में घास या उसका डंठल लिये हुए आती है। तृण गहाना या पकड़ाना-पूरी तरह से दीन और नम्र बनाकर वशीभूत करना। तृण तोड़ना-किसी सुंदर वस्तु को देखकर उसे बुरी नजर से बचाने के लिए तिनका तोड़ने का टोटका करना। (किसी से) तृण तोड़ना-सदा के लिए संबंध तोडना। (दे० तिनका के अंतर्गत तिनका तोड़ना मुहा०) पद–तृणवत्=अत्यंत तुच्छ। |
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तृणक :
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पुं० [सं० तृण+कन्] तृण। घास। |
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तृण-कर्ण :
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पुं० [ब० स०] एक ऋषि। |
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तृणकीया :
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स्त्री० [सं० तृण+-ईय, कुक्, टाप्] ऐसी जमीन जहाँ घास उगी हुई हो। |
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तृण-कुंकुम :
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पुं० [मध्य० स०] एकसुंगधित घास। रोहिश घास। |
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तृणकुटी :
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स्त्री० [मध्य० स०] घास-फूस की बनी हुई कुटिया या झोपड़ी। |
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तृण-कूर्म :
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पुं० [मध्य० स०] गोल कद्दू। |
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तृणकेतुक :
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पुं० [सं० तृणकेतु+कन्] तृण-केतु। |
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तृण-ग्रंथी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] स्वर्ण जीवंती। |
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तृणा-ग्राही(हिन्) :
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पुं० [सं० तृण√ग्रह (कपड़ना)+णिनि] १. नीलम। २. कहरुवा। |
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तृणचर :
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वि० [सं० तृण√चर् (गति)+अच्] तृण चरनेवाला। पुं० १. पशु। २. गोमेदक मणि। |
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तृण-जलायुका :
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पुं० [मध्य० स०] तृण-जलौका। (दे०) |
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तृण-जलौका :
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पुं० [मध्य० स०] एक तरह की जोंक। |
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तृण-द्रुम :
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पुं० [उपमि० स०] १. ताड़ का पेड़। २. सुपारी का पेड़। ३. खजूर का पेड़। ४. नारियल का पेड़। ५. हिंताल। ६. केतकी का पौधा। |
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तृण-धान्य :
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पुं० [मध्य० स०] १. तिन्नी का धान या चावल। २. साँवा। |
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तृण-ध्वज :
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पुं० [स० त०] १. बाँस। २. ताड़ का पेड़। |
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तृण-निंब :
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पुं० [मध्य० स०] चिरायता। |
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तृणप :
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पुं० [सं० तृण√पा (रक्षा करना)+क] एक गंधर्व का नाम। |
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तृण-पत्रिका :
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स्त्री० [ब० स० कप्, टाप्, इत्व] इक्षुदर्भ नामक तृण। |
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तृण-पत्री :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्]=तृण-पत्रिका। |
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तृण-पीड़ :
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पुं० [ब० स०] आपस में होनेवाला गुत्थम-गुत्था या हाथा-पाई। |
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तृण-पुष्प :
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पुं० [ष० त०] १. गठिवन। २. सिंदूर पुष्पी। |
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तृण-पूली :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्०] घास-फूस या नरकट की चटाई। |
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तृण-बीज :
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पुं० [ब० स०] साँवाँ। |
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तृण-मणि :
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पुं० [मध्य० स०] तृण को अपनी ओर आकृष्ट करनेवाला। एक तरह के गोंद का डला। कहरुवा। कपूरमणि। विशेष–प्राचीन साहित्यकारों ने इसे पत्थर माना था। |
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तृणमय :
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वि० [सं० तृण+मयट्] [स्त्री० तृणमयी] घास-फूस का बना हुआ। |
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तृणवत् :
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वि० [सं० तृण+वति] जिसका महत्त्व तृण के समान कुछ भी न हो अर्थात् नगणय तुच्छ। |
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तृणराज :
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पुं० [ष० त०] १. खजूर का पेड़। २. नारियल का पेड़। ३. ताड़ का पेड़। |
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तृण-वृक्ष :
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पुं०=तृण-द्रुम। |
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तृण-शय्या :
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स्त्री० [ष० त०] १. घास का बिछौना। २. चटाई। |
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तृणशीत :
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पुं० [स० त०] १. रोहिस घास, जिसमें से नीबू की सी सुगंध आती है। २. जल-पिप्पली। |
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तृण-शून्य :
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वि० [तृ० त०] जिसमें तृण न हो। तृण से रहित। पुं० १. चमेली। मल्लिका। २. केतकी। |
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तृण-शूली :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] एक प्रकार की लता। |
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तृणशोषक :
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पुं० [सं० तृण√शुष् (सूखना)+णिच्+ण्वुल्-अक] एक प्रकार का साँप। |
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तृण-षट्पद :
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पुं० [उपमि० स०] बर्रे। भिड़। |
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तृण-संवाह :
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पुं० [सं० तृण-सम्√वह् (ढोना)+णिच्+अच्] वायु। हवा। |
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तृण-सारा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] कदली। केला। |
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तृण-सिहं :
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पुं० [स० त०] कुठार कुल्हाड़ा। |
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तृण-स्पर्श-परीषह :
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पुं० [ष० त०] दभादि कठोर तृणों को बिछाकर उन पर सोने का व्रत। (जैन)। |
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तृण-हर्म्य :
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पुं० [मध्य० स०] कुटिया। झोपड़ी। |
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तृणांजन :
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पुं० [तृण-अजन, उपमि० स०] एक तरह का गिरगिट। |
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तृणाग्नि :
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स्त्री० [तृण-अग्नि, मध्य० स०] तुषानल। (दे०) |
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तृणाढय :
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पुं० [तृण-आढ्य, स० त०] एक तरह का तृण जो औषध के काम में आता है। पर्वतृण। |
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तृणान्न :
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पुं० [तृण-अन्न, ष० त०] तिन्नी का जंगली धान। |
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तृणाम्ल :
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पुं० [तृण-अम्ल, स० त०] नोनिया नामक घास। |
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तृणारणिमणि न्याय :
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पुं० [तृण-अरणि, मणि, द्व० स० तृणारणिमणि-न्याय, ष० त०] तर्क-शास्त्र में तृण, अरणी और मणि की तरह का स्पष्ट निर्देशन। विशेष–इन तीनों चीजों से आग जलाई जाती है परन्तु इन तीनों के जलाने के ढंग अलग-अलग है। |
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तृणावर्त्त :
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पुं० [सं० तृण+आ+वृत्त (घूमना)+णिच्+अण्] १. बवंडर। चक्रवात। २. एक दैत्य जिसे कंस ने कृष्ण को मार डालने के लिए गोकुल भेजा था। |
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तृणेंद्र :
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पुं० [तृण-इंद्र, उपमि० स०] ताड़ का पेड़। |
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तृणोत्तम :
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पुं० [तृण-उत्तम, स० त०] ऊखल तृण। उखर्वल। |
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तृणोद्भव :
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पुं० [सं० तृण+उद्√भू (उत्पन्न होना)+अच्] तिन्नी (धान)। |
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तृणोल्का :
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स्त्री० [तृण-उल्का, मध्य, स०] घास-फूस की झोपड़ी। |
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तृणौषध :
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पुं० [तृण-औषध, मध्य० स०] एलुवा। |
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तृण्या :
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स्त्री० [सं० तृण+य-टाप्] तृणों अर्थात् घास-फूस का ढेर। |
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