शब्द का अर्थ
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दशांग :
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पुं० [सं० दशन्-अंग, ब० स०] दस प्रकार के सुगंधित द्रव्यों के योग से बननेवाला एक तरह का धूप। |
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दशांग-क्वाथ :
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पुं० [सं० मध्य० स०] दस प्रकार की ओषधियों के योग से बननेवाला काढ़ा। |
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दशांगुल :
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पुं० [सं० दशन्-अंगुलि, ब० स०,+अच्] खरबूजा। |
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दशांत :
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पुं० [सं० दशा-अंत, ष० त०] जीवन की विभिन्न अवस्थाएँ। |
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दशा :
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स्त्री० [सं०√दंश् (काटना)+अङ्, नलोप, टाप्] १. कुछ समय तक बराबर चलने या बनी रहनेवाली कोई घटना अथवा बात हुई हो, होती हो अथवा हो सकती हो। हालत। जैसे—देश की आर्थिक दशा का चित्रण। २. मनुष्य के जीवन में घटित होनेवाली घटनाओं, परिवर्तनों आदि के विचार से भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ जो संख्या में कहीं ४, कहीं ८ (जन्म शैशव, बाल्य, कौमार, पौगंड, यौवन, जरा और मरण) और कहीं १॰ (अभिलाषा, चिंता, स्मृति, गुणकथन, उद्वेग, संताप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरण) कहीं गई है। ३. साहित्य में, रस के अंतर्गत विरही या विरहिणी की अवस्था या हालत। ४. फलित ज्योतिष में, अलग-अलग ग्रहों का नियत या निश्चित भोग-काल जिसका प्रभाव मनुष्य के जीवन-यापन पर पड़ता है। जैसे—आज-कल उनके जीवन पर शनिश्चर(अथवा मंगल, बुध आदि) की दशा चल रहीं है। ५. कपड़े का छोर या सिरा। पल्ला। ६. दीए की बत्ती। उदाहरण—ज्योति बढ़ावति दशा उनारि।—केशव। ७. चित्त या मन। ८. प्रज्ञा। ९. कर्मों का फल। १॰. भाग्य। ११. दे० ‘दशिका’। |
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दशाकर्ष :
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पुं० [सं० दशा+आ√कृष् (खींचना)+अच्] १. कपड़े का छोर या सिरा। २. दीआ। दीपक। |
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दशाकर्षी (र्षिन्) :
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पुं० [सं० दशा+आ√कृष्+णिनि]=दशाकर्ष। |
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दशाक्षर :
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पुं० [सं० दशन्-अक्षर, ब० स०] एक तरह का छंद। |
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दशाधिपति :
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पुं० [सं० दशा-अधिपति, ष० त०] १. दशाओं के अधिपति ग्रह। (ज्योतिष) २. वह अधिकारी जिसके अधीन दस सैनिक रहते थे। |
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दशानन :
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पुं० [सं० दशन्-आनन, ब० स०] रावण। |
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दशानिक :
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पुं० [सं०√अन् (जीना)+घञ् आन+ठक्—इक, दशाआनिक,स० त०] जमाल-गोटा। |
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दशा-पवित्र :
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पुं० [सं० उपमि० स०] वस्त्र के वे टुकड़े जो श्राद्ध आदि में दान दिये जाते हैं। |
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दशाब्द :
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पुं० [सं० दशन्-अब्द, द्विगु स०] दस वर्षों का समूह। दशक। |
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दशार्ण :
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पुं० [सं० दशन्-ऋण, ब० स०, वृद्धि] १. विंध्य पर्वत के पूर्व-दक्षिण के उस प्रदेश का प्राचीन नाम जिससे होकर धसान नदी बहती है। विदिशा। (आधुनिक भिलसा) इसी प्रदेश की राजधानी थी। २. जैन पुराणों के अनुसार उक्त प्रदेश का राजा। जिसका अभिमान तीर्थंकर ने चूर्ण किया था। ३. तंत्र में एक दसाक्षर मंत्र। |
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दशार्द्ध :
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पुं० [सं० दशन्√ऋध् (बढ़ना)+अण्] बुद्धदेव, जो दस बलों से युक्त माने जाते हैं। |
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दशार्ह :
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पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश जिस पर किसी समय वृष्णियों का अधिकार था। २. उक्त देश का राजा वृष्णि। ३. राजा वृष्णि के वंश का व्यक्ति। ४. विष्णु। ५. बौद्ध। |
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दशावतार :
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पुं० [सं० द्विगु स०] विष्णु के दस अवतार। |
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दशावरा :
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स्त्री० [सं० ] दस सदस्यों की शासन-सभा। |
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दशाश्व :
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पुं० [सं० दशन्-अश्व, ब० स०] चंद्रमा (जिसके रथ में दस घोड़े लगते हैं)। |
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दशाश्वमेध :
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पुं० [सं० दशन्-अश्वमेध, ब० स०] १. काशी के अंतर्गत एक प्रसिद्ध घाट और तीर्थ। २. प्रयाग के अंतर्गत एक घाट और तीर्थ। विशेष—कहते हैं कि किसी समय वाकाटकों ने उक्त दोनों स्थानों पर दस-दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। |
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दशास्य :
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पुं० [सं० दशन्-आस्य, ब० स०] दशमुख। रावण। |
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दशाह :
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पुं० [सं० दशन्-अहन्, द्विगु स०, टच् समा०] १. दस दिन। २. मृतक की मृत्यु के दसवें दिन होने वाले कृत्य। |
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