शब्द का अर्थ
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द्वै :
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वि० [सं० द्वय] १. दो। २. दोनो। |
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समानार्थी शब्द-
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द्वैक :
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वि० [हिं० द्वै+एक] दो-एक। थोड़े-से। कुछ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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द्वैगुणिक :
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वि० [सं० द्विगुण+ठक्—इक] दूना सूद खानेवाला। (महाजन) |
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द्वैगुण्य :
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पुं० [सं० द्विगुण+ष्यञ्] १. द्विगुण या दूने होने की अवस्था या भाव। २. दूनी रकम या परिमाण। ३. सत्त्व, रज और तम में से दो गुणों से युक्त होने की अवस्था या भाव। ४. दे० ‘द्वैत’। |
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द्वैज :
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स्त्री० [सं० द्वितीया, प्रा० दुइय] द्वितीया तिथि। दूज। |
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द्वैत :
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पुं० [सं० द्वि-इत० तृ त, +अण्] १. दो होने की अवस्था या भाव। २. जोडा़। युग्म। ३. किसी को अन्य या पराया समझने का भाव। ४. असमंजस। ५. अज्ञान। ६. एक वन का नाम। ७. ‘द्वैतवाद’ दे०। |
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द्वैत-चिंतामणि :
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पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति की एक राग। |
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द्वैत-परिपूर्णी :
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स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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द्वैतवन :
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पुं० [सं० द्वि=शोक, मोह—इत= नष्ट ब० स०,+अण्, द्वैतवन कर्म० स०] एक तपोवन जिसमें युधिष्ठिर वनवास के समय कुछ दिनों तक रहे थे। |
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द्वैत-वाद :
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पुं० [ष० त०] १. वह दार्शनिक सिद्धान्त, जिसमें आत्मा-परमात्मा अर्थात् जीव और आत्मा अथवा आत्मा और अनात्मा में भेद माना जाता है। अद्वैतवाद से भिन्न और उसका विरोधी मत या सिद्धान्त। २. उक्त के अंतर्गत वह सूक्ष्म भेद, जिसमें ओर चित्त शक्ति अथवा आत्मा और शरीर दो भिन्न पदार्थ माने जाते हैं। विशेष—उत्तर मीमांसा या वेदान्त का यह मत है कि आत्मा और परमात्मा दोनो एक है; परन्तु शेष पाँचों दर्शन इस मत के विरोधी हैं। ३. दो स्वतंत्र और विभिन्न सिद्धान्त एक साथ माननेवाली विचार-शैली। |
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द्वैतवादी (दिन्) :
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वि० [सं० द्वैतवाद+इनि] [स्त्री० द्वैतवादिनी] ईश्वर और जीव में भेद मानने वाला। द्वैतवाद का अनुयायी। |
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द्वैतानंदी :
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स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति की एक रागिनी। |
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द्वैतानंदी (तिन्) :
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वि० [सं०द्वैत+इनि] द्वैतवादी। |
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द्वैतीयीक :
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वि० [सं० द्वितीय+ईकक्] दूसरा। |
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द्वैध :
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पुं० [सं० द्वि+घमुञ् वा द्विधा+अण्] १. दो प्रकार के होने की अवस्था या भाव। २. दो में होनेवाली भिन्नता या भेद-भाव। ३. दो तरह की चालें चलने या नीतियाँ बरतने की अवस्था, गुण या भाव। विशेष—प्राचीन भारतीय राजनीति में इसे छः गुणों के अंतर्गत माना गया है। ऊपर से कुछ और प्रकार का व्यवहार करने और अंदर-अंदर कुछ और प्रकार का व्यवहार करने की नीति ही द्वैष है। यह आधुनिक डिप्लोमेसी के समकक्ष है। ३. वह शासन-प्रणाली जिसमें कुछ विभाग सरकार के हाथ में और कुछ प्रजा के प्रतिनिधियों के हाथ में हों। (डायार्की) |
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द्वैधीकरण :
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पुं० [सं० द्वैध+च्वि√कृ०+ल्युट—अन] किसी चीज के दो टुकड़े करना। |
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द्वैधीभाव :
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पुं० [सं० द्वैध+च्वि√भू+घञ्] १. द्विधा भाव। अनिश्चय। दुबधा। २. ऊपर से कुछ और मन में कुछ और भाव रखने की अवस्था या गुण। ३. दोनों ओर मिलकर या रहने की अवस्था या भाव। |
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द्वैप :
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वि० [सं० द्वीपिन्+अञ्] १. बात या व्याघ्र से संबंध रखनेवाला। २. व्याघ्र के या बाघ के चमड़े का बना हुआ। पुं० बाघ का चमड़ा। व्याघ्र-चर्म। वि० दे० ‘द्वैव्य’। |
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द्वैपायन :
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वि० [सं० द्वीप-आयन ब० स०+अण्] द्वीप में जन्म लेनेवाला। पुं० १. वेदव्यास जी का एक नाम। २. कुरुक्षेत्र के पास का एक ताल जिसमें युद्ध से भागकर दुर्योधन छिपा था। |
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द्वैप्य :
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वि० [सं० द्वीप्+यञ्] १. द्वीप संबंधी। टापू-का। २. द्वीप में उत्पन्न होने या रहनेवाला। |
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द्वैमातुर :
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वि० [सं० द्विमातु+अण्, उत्व] जिसकी दो माताएँ हो। पुं० १. गणेश। २. जरासंध। |
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द्वैमातृक :
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पुं० [सं० द्वि-मातृ ब० स० कप्,+अण्] वह प्रदेश जहाँ खेती नदी के जल (सिंचाई) द्वारा भी की जाती है और वर्षा से भी होती है। |
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द्वैयह्रिक :
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वि० [सं० द्वि-अहन् द्विगु स०, +ठञ्—इक] १. दो दिन की अवस्थावाला। २. दो दिन में किया जानेवाला। |
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द्वैराज्य :
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पुं० [सं० द्विराज+ष्यञ्] वह शासन-प्रणाली, जिसमें किसी एक दुर्बल या पराजित राज्य पर या अन्य दो शक्तिशाली राज्य मिल-जुल कर शासन करते हों। (कॉन्डोमीनियम)। |
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द्वैवार्षिक :
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वि० [सं० द्विवर्ष+ठक्-इक] प्रति दो वर्षों पर होनेवाला। (बाईनियल) |
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द्वैविध्य :
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वि० [सं० द्विवर्ष+ष्यञ्] १. द्विविध अर्थात् दो प्रकार के होने की अवस्था या भाव। २. असमंजस। दुबधा। |
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द्वैषणीया :
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स्त्री० [सं० द्वैषण+अण्+छ-ईय, टाप्] नागवल्ली का एक भेद। |
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द्वैसमिक :
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वि० [सं० द्विमसा+ठक्-इक] दो वर्षों का। |
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द्वैहायन :
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पुं० [सं० द्विहायन+अण्] [वि० द्वैहायनिक] दो वर्ष का समय। |
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द्वैहायनिक :
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वि० [सं० द्विहायन+ठक्-इक] १. दो वर्षों में होनेवाला। २. प्रति दो वर्षों पर (या में) होनेवाला। |
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