शब्द का अर्थ
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निबंध :
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पुं० [सं० नि√बन्ध (बाँधना)+घञ्] १. कोई चीज किसी के साथ जोड़ने, बाँधने या लगाने की क्रिया या भाव। २. अच्छी तरह गठा या बँधा हुआ पदार्थ। ३. वह जिससे कोई चीज किसी के साथ जोड़ी, बाँधी लगाई जाय। बंधन। ४. प्राचीन भारत में, राज्य या शासन की ओर से निकलनेवाली आज्ञा या आदेश। (कौ०) ५. किसी के साथ बाँधकर रखनेवाला अनुराग या संपर्क। ६. ग्रंथ लेख आदि लिखने की क्रिया या भाव। ७. आज-कल साहित्यिक क्षेत्र में, वह विचारपूर्ण विवरणात्मक और विस्तृत लेख जिसमें किसी विषय के सब अंगों का मौलिक और स्वतंत्र रूप से विवेचन किया गया हो। (एसे) विशेष–हमारे यहाँ के प्राचीन साहित्यिक ऐसी व्यवस्था को निबंध कहते थे, जिसमें सब प्रकार के मतों का उल्लेख और गुण-दोष आदि की आलोचना या विवेचन होता था। आज-कल पाश्चात्य साहित्यशास्त्र के आधार पर उसकी व्याख्या और स्वरूप का कुछ परिमार्जन हुआ है। ८. गीत। ९. ऐसी चीज जिसे किसी दूसरे को देने का वचन दिया जा चुका हो। १॰. आनाह नामक रोग जिसमें पेशाब बंद हो जाता है। ११. नीम का पेड़। |
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निबंधक :
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पुं० [सं० नि√बंध्+ण्लुल्–अक] १. निबंधन करनेवाला व्यक्ति। २. वह अधिकारी जो लेख आदि की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए उन्हें राजकीय पंजी में प्रतिलिपि के रूप में निबंधित करता या लिखता है। (रजिस्ट्रार, न्याय और शासन विभाग का) ३. इसी से मिलता-जुलता वह अधिकारी जो किसी विभाग या संस्था के सब प्रकार के लेख रखता या निबंधित करता है। जैसे–विश्वविद्यालय या सहयोग-समितियों का निबंधक। |
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निबंधन :
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पुं० [सं० नि√बंध्+ल्युट्–अन्] [वि० निबद्ध] १. निबंध के रूप में लाने की क्रिया या भाव। २. बाँधने की क्रिया या भाव। ३. वह जिसमें कोई चीज बाँधी जाय। बंधन। ४. नियमों आदि में बाँध कर रखना। व्यवस्था। ५. कर्तव्य आदि के रूप में होनेवाला बंधन। ६. कारण। हेतु। ७. लेखों आदि के प्रामाणिक होने के लिए किसी राजकीय पंजी में लिखा या चढ़ाया जाना। (रजिस्ट्रेशन) ८. वीणा, सारंगी, सितार आदि की खूटियाँ जिनमें तार बँधे होते हैं। उपनाह। कान। |
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निबंधनी :
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स्त्री० [सं० निबंधन+ङीप्] १ बाँधनेव की वस्तु २. बेड़ी। |
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निबंधी (धिन) :
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स्त्री० [सं० निबंधन+इनि] १. बाँधनेवाला। २. किसी के साथ जुड़ा हुआ। संबद्ध। ३. कारण के रूप में रहकर कुछ करने या बनानेवाला। पुं०=निबंधक। |
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निब :
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स्त्री० [अं०] लोहे आदि का वह छोटा तथा चोंच के आकार का उपकरण जो कलम के अगले भाग में लगा रहता है और जिसे स्याही में डुबोकर लोग लिखते हैं। |
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निबकौरी :
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स्त्री०=निमकौड़ी। |
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निबटना :
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अ०=निपटना। |
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निबटाना :
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स०=निपटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबटारा :
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पुं०=निपटारा। |
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निबटाव :
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पुं०=निपटारा। |
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निबटेरा :
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पुं०=निपटारा। |
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निबड़ना :
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अ०=निपटना। |
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निबड़ा :
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पुं० [?] एक तरह का घड़ा। |
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निबद्ध :
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भू० कृ० [सं० नि√बंध्+क्त] १. बँधा हुआ। २. रुका हुआ। निरुद्ध। ३. गुथा हुआ। गुंफित। ४. कहीं जड़ा, बैठाया या किसी में लगाया हुआ। ५. किसी पर अच्छी तरह ठहरा या लगा हुआ। जैसे–भगवान पर दृष्टि निबद्ध होना। ६. (आज-कल लेख या लेख्य) जो प्रामाणिक या यथार्थ सिद्ध करने के लिए सरकारी पंजी में विधिवत् चढ़वा या लिखवा दिया गया हो। जिसका निबंधन हो चुका हो। (रजिस्टर्ड) पुं० ऐसा गीत जो संगीत-शास्त्र के नियमों के अनुसार हर तरह से ठीक हो और जिसमें ताल, पद, रस, समय आदि के विधानों का पूरा पालन हुआ हो। |
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निबर :
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वि०=निर्बल। |
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निबरना :
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अ० [सं० निवृन्, प्रा० निबिड्ड] १. बँधी, फँसी या लगी हुई वस्तु का अलग होना। छूटना। २. एक में मिली हुई वस्तुओं का अलग होना। ३. कष्ट, बंधन आदि से मुक्त होना। उबरना। ४. समाप्त होना। ५. दूर होना। न रह जाना। ६. दे० ‘निपटना’। संयो० क्रि०–जाना। |
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निबल :
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वि० [सं० निर्बल] [भाव निबलाई] १. निर्बल। दुर्बल। २. दूसरों की तुलना में घटिया और कम मूल्य या योग्यता का। |
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निबह :
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पुं० [?] समूह। झुंड। उदा०–मनहु उड़गन निबह आए मिलत तम तजि द्वेषु।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १.=निर्वह। २.=निबाह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबहना :
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अ०=निभना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबहुर :
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पुं० [हिं० नि+बहुरना=लौटना] ऐसा स्थान जहाँ से कोई लौटकर न आता हो। यम-द्वार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबहुरा :
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वि० [हिं० नि+बहुरना] १. जो जाकर लौटा न हो। २. ऐसा, जिसका लौटकर आना अभीष्ट न हो। (गाली) |
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निबारना :
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स० [सं० निवारण] निवारण करना। छोड़ना। |
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निबाह :
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पुं० [सं० निर्वाह] १. निभने या निभाने की अवस्था, क्रिया या भाव। निर्वाह। २. ऐसी स्थिति में काम चलाना या दिन बिताना जिसमें साधारणतः निश्चिंतता से और सुख-पूर्वक काम न चलता हो या दिन न बीतते हों। कठिनता से, परंतु सहनशीलता-पूर्वक किया जानेवाला निर्वाह। ३. किसी चले आए हुए क्रम या परंपरा का अथवा अपनी प्रतित्रा, वचन आदि का जैसे-तैसे परंतु बराबर किया जानेवाला। पालन। जैसे–प्रीति या बड़ों की चलाई हुई रीति का निबाह। विशेष–यद्यपि आज-कल ‘निबहना’ और ‘निबाहना’ की जगह ‘निभना’ और ‘निभाना’ रूप ही अधिक प्रशस्त तथा शिष्ट-सम्मत माने जाते हैं फिर भी इन क्रियाओं का भाव-वाचक रूप ‘निबह’ ही अधिक प्रचलित है, ‘निभाव’ नहीं। |
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निबाहक :
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वि० [सं० निर्वाहक] निबाहने या निभानेवाला। निबाह करनेवाला। |
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निबाहना :
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स० [सं० निर्वहण] १. निर्वाह या निबाह करना। २. निस्तार करना। छुड़ाना। उदा०–आजु स्वामि साँकरे निबाहौं।–जायसी। ३. दे० ‘निभाना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबिड़ :
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वि०=निविड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबुआ :
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पुं०=नीबू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबुकना :
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अ०=निपटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबेड़ना :
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स० [सं० निवृत्त, प्रा० निविड्ड] १. बँधी, फँसी या लगी हुई वस्तु को अलग करना। मुक्त करना। छुड़ाना। २. आपस में मिली हुई चीजें अलग-अलग करना। छाँटना। ३. अलग या दूर करना। हटाना। ४. छोड़ना। त्यागना। ५. (काम या झगड़ा) निपटाना। ६. उलझन दूर करना। सुलझाना। ७. निर्णय या फैसला करना। झगडा निपटाना। |
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निबेड़ा :
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पुं० [हिं० निबेड़ना] १. निबेड़ने की क्रिया या भाव। २. कष्ट, विपत्ति आदि से होनेवाला उद्धार। ३. एक में मिली हुई चीजें चुन या छाँटकर अलग-अलग करना। ४. छोड़ देना। त्याग। ५. झगड़े का निर्णय या फैसला। ६. दे० ‘निपटारा’। |
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निबेरना :
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स० १.=निबेड़ना। २.=निपटाना। |
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निबेरा :
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पुं०=निबेड़ा (निपटारा)। |
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निबेहना :
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स० १.=निबेड़ना (निपटारा करना)। २.=निबाहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबेही :
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वि० [सं० निर्वेध] १. जिसका वेधन न किया जा सके। वेधरहित। २. छल-कपट आदि से रहित। उदा०–कोउ न मान मद तजेउ निबेही।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निबोधन :
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पुं० [सं० नि√बुध् (जानना)+ल्युट्–अन] १. कोई काम समझने और सीखने की अवस्था या भाव। २. [नि√बुध्+णिच्+ल्युट्–अन] कोई काम सिखलाने और समझाने की क्रिया या भाव। |
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निबौरी (बौली) :
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स्त्री०=निमकोड़ी (नीम का फल)। |
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