शब्द का अर्थ
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निहंग :
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वि० [सं० निःसंग] १. एकाकी। अकेला। २. जो घर-गृहस्थी की झंझटों में न पड़ा हो अर्थात् अविवाहित और परिवारहीन। ३. नंगा। ४. निर्लज्ज। बेशरम। पुं० १. एक प्रकार के वैष्णव साधु। २. अकेला रहनेवाला विरक्त या साधु। ३. सिक्खों का एक संप्रदाय जो ‘कूका’ भी कहलाता है। |
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निहंगम :
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वि०=निहंग। |
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निहंग-लाडला :
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वि० [हिं० निहंग+लाडला] जो माता पिता के दुलार के कारण बहुत ही उद्दंड और लापरवाह हो गया हो। |
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निहंता (तृ) :
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वि० [सं० नि√हन् (मारना)+तृच्] [स्त्री० निहंत्री] १. विनाशक। नाश करनेवाला। २. मार डालने या हत्या करनेवाला। |
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निह :
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उप० [सं० निस्] नहिक भाव का सूचक एक उपसर्ग या पूर्व प्रत्यय। जैसे–निहकर्मा, निहकलंक,निहपाप आदि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहकर्मा :
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वि० [सं० निष्कर्म] कर्म न करनेवाला। |
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निहकलंक :
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वि०=निष्कलंक। |
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निहकाम :
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वि०=निष्काम। |
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निहकामी :
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वि०=निष्काम। |
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निहचक :
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पुं० [सं० नेमि+चक्र] पहिए के आकार का काठ का वह गोल चक्कर जिसके ऊपर कूएँ की कोठी खड़ी की जाती है। निवार। जमवट। जाखिम। |
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निहचय :
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पुं०=निश्चय। |
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निहचल :
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वि०=निश्चल। |
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निहचिंत :
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वि०=निश्चिंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहठ, निहठा :
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स्त्री० [सं० निष्ठा] लकड़ी का वह टुकड़ा जिस पर रखकर बढ़ई, गढ़ने की चीजें बसूले से गढ़ते हैं। |
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निहत :
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भू० कृ० [सं० नि√हन्+क्त] १. चलाया या फेंका हुआ। २. नष्ट किया हुआ। विनष्ट। ३. जो मार डाला गया हो। |
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निहतार्थ :
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पुं० [सं० निहत-अर्थ, ब० स०] काव्य में एक प्रकार का दोष। |
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निहत्था :
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वि० [हिं० नि+हाथ] १. जिसके हाथ में कोई अस्त्र न हो। शस्त्रहीन। २. जिसके हाथ में कुछ या कोई साधन न हो। |
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निहनन :
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पुं० [सं० नि√हन्+ल्युट्–अन] वध। मारण। |
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निहनना :
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स० [सं० निहनन] मारना। मार डालना। |
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निहपाप :
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वि०=निष्पाप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहफल :
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वि०=निष्फल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहल :
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पुं० दे० ‘गंग-बरार’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहव :
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पुं० [सं० नि√ह्वे (बुलाना)+अप्] पुकारना। बुलाना। |
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निहषरना :
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अ० [सं० नि+क्षरण] बाहर आना या निकलना (राज०) उदा०–निहषरता नखरै नर।–प्रिथीराज। |
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निहस :
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पुं० [?] चोट। प्रहार। (डि०) उदा०–नीसाने पड़ती निहस।–पृथीराज। |
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निहसना :
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स० [सं० निघोषण] शब्द करना। अ० शब्द होना। अ० [सं० विलसन] सुशोभित होना। लसना। उदा०–नासा अग्रि मुताहल निहसति।–प्रिथीराज। |
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निहाई :
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स्त्री० [सं० निघाति, मि० फा० निहाली] लोहारों और सुनारों का जमीन में गड़ा या लकड़ी आदि में जुड़ा हुआ लोहे का वह टुकड़ा जिस पर वे धातु के टुकड़ों को रखकर हथौड़े से कूटते या पीटते हैं। |
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निहाऊ :
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पुं० [सं० निघाति] लोहे का घन। |
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निहाका :
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स्त्री० [सं०] १. गोह नामक जंतु। २. घड़ियाल। |
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निहाना :
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स० [सं० नि+घात] १. नष्ट करना। मारना। २. दबाना। |
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निहानी :
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स्त्री० [सं० निखनित्री] नक्काशी करने का एक उपकरण। |
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निहाय :
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पुं०=निहाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहायत :
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अव्य० [अ०] बहुत अधिक। अत्यन्त। |
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निहार :
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स्त्री० [हिं० निहारना] निहारने की क्रिया या भाव। पुं० [सं० निस्सरण] निकलने का मार्ग। निकास। पुं० [?] लट्ट। पुं०=नीहार (देखें)। वि०=निहाल। |
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निहारना :
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स० [सं० निभालन=देखना] १. अच्छी तरह और ध्यानपूर्वक अथवा टक लगाकर देखना। २. ताकना। |
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निहारनि :
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स्त्री० [हिं० निहारना] निहारने की क्रिया या भाव। निहार। |
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निहारिका :
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स्त्री०=नीहारिका। |
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निहारुआ :
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पुं०=नहरुआ (रोग)। |
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निहाल :
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वि० [फा०] १. जिस पर किसी की बहुत अधिक या विशेष कृपा हुई हो और इसी लिए जो प्रफुल्लित तथा संतुष्ट हो। २. धन, दौलत आदि मिलने पर जो मालामाल या समृद्ध हुआ हो। पूर्ण-काम। सफल-मनोरथ। पुं० पौधा। |
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निहालचा :
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पुं० [फा० निहालचः] बच्चों के सोने की छोटी गद्दी। |
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निहालना :
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स०=निहारना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहाल लोचन :
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पुं० दे० ‘निहालचा’। |
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निहाली :
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स्त्री० [फा०] बिस्तर पर बिछाने का गद्दा। स्त्री०=निहाई। |
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निहाव :
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पुं० [सं० निघाति] निहाई। |
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निहिंसन :
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पुं० [सं० नि√हिंस् (मारना)+ल्युट्–अन] मार डालना। वध करना। |
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निहि :
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उप० सं० ‘निस्’ उपसर्ग का एक विकृत रूप। जैसे–निहिचय, निहिचिंत। |
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निहिचय :
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पुं०=निश्चय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहिचिंत :
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वि०=निश्चिंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहित :
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वि० [सं० नि√धा(धारण)+क्त, हि आदेश] १.(चीज) जो किसी दूसरी चीज के अन्दर स्थित हो और बाहर न दिखाई देती हो। अन्दर छिपा या दबा हुआ। (लेटेन्ट) २. स्थापित किया हुआ। ३. दिया या सौंपा हुआ। |
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निहीन :
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वि० [सं० नि-हीन, प्रा० स०] परमहीन। बहुत क्षुद्र या तुच्छ। |
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निहुँकना :
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अ०=निहुरना (झुकना)। |
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निहुड़ना :
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अ०=निहुरना (झुकना)। स०=निहुराना (झुकाना)। |
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निहुरना :
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अ० [हिं० नि+होड़न] १. झुकना। नवना। २. नम्र होना। |
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निहुराई :
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स्त्री० [हिं० निहुरना] झुकने की क्रिया या भाव। स्त्री०=निठुराई (निष्ठुरता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहुराना :
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स० [हिं० निहुरना का प्रे०] १.झुकना। नवाना। २. नम्र होने के लिए विवश करना। |
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निहोर :
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पुं०=निहोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निहोरना :
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अ० [हिं० निहोरा] प्रार्थना या विनती करना। स० किसी पर अनुग्रह करके उसे उपकृत या कृतज्ञ करना। उदा०–सोइ कृपालु केवटहि निहोरे।–तुलसी। |
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निहोरा :
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पुं० [सं० मनोहार,हिं० मनुहार] १. किसी के किए हुए अनुग्रह या उपकार के बदले में प्रकट की या मानी जानेवाली कृतज्ञता। एहसान। क्रि० प्र०–मानना। मुहा०–(किसी का) निहोरा लेना=ऐसी स्थिति में होना कि कोई उपकार करे और इसके लिए उसका कृतज्ञ होना पड़े। २. निवेदन। विनय। ४. आसरा। भरोसा। क्रि० प्र०—लगना। अव्य० के लिए। वास्ते। दे० ‘निहोरे’। |
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निहोरे :
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अव्य० [हिं० निहोरा] किसी के किए हुए अनुग्रह या उपकार के आधार पर अथवा उसके कारण। जैसे–हम किस निहोरे उनके यहाँ जाएँ, अर्थात् उन्होंने हमारी कौन सी भलाई या कौन-सा सद्व्यवहार किया है जिसके लिए हम उनके यहाँ जायँ। उदा०–धरहुँ देह नहि आन निहोरे।–तुलसी। |
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निह्नव :
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पुं० [सं० नि√ह्नु (छिपाना)+अप्] १. निहित अर्थात् छिपे हुए होने की अवस्था या भाव। २. अविश्वास। ३. शुद्धता। पवित्रता। ४. एक प्रकार का साम-गान। |
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निह्नुवन :
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पुं० [सं० नि√ह्नु+ल्युट्—अन] १. इनकार। २. बहाना। |
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निह्नवोत्तर :
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पुं० [सं० निह्नव-उत्तर-मध्य० स०] टाल, मटोलवाला उत्तर। बहानेबाजी। |
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निह्नुत :
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भू० कृ० [सं० नि√ह्नु+क्त] [भाव० निह्नुति] १. अस्वीकृत किया हुआ। २. छिपाया हुआ। |
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निह्नुति :
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स्त्री० [सं० नि√ह् नु+क्तिन्] अस्वीकार। इन्कार। २. छिपाव। दुराव। गोपन। |
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निह्रद :
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पुं० [सं० नि√ह्रद् (शब्द)+घञ्] ध्वनि। शब्द। |
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