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पकड़  : स्त्री० [हिं० पकड़ना] १. पकड़ने की क्रिया या भाव। २. पकड़ने का ढंग या तरीका। ३.पकड़ या रोककर रखने की शक्ति। उदा०—मैं एक पकड़ हूँ जो कहती ठहरो कुछ सोच-विचार करो।—प्रसाद। ४. किसी काम या बात का वह अंग या पक्ष जिसमें उसकी त्रुटि या दोष का पता चल सकता हो। प्राप्ति या लाभ का डौल या सुभीता। जैसे—कचहरी के मामूली चपरासियों की भी रोज दो-चार रुपयों की पकड़ हो जाती है। ६. दो व्यक्तियों में होनेवाला, कोई ऐसा काम जिसमें दोनों एक दूसरे को पकड़कर गिराने, दबाने आदि का प्रयत्न करते हों। भिडंत। जैसे—(क) आओ, एक पकड़ कुश्ती और हो जाय। (ख) इस विषय में दोनों में कई पकड़ कहा-सुनी (या थुक्का-फजीहत) हो चुकी है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पकड़-धकड़  : स्त्री०=धर-पकड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पकड़ना  : स० [सं० प्रक्रमण या पर्क (मधुपूर्वक की तरह) ?] १. कोई चीज इस प्रकार दृढ़तापूर्वक हाथ में थामना कि वह गिरने, छूटने या इधर-उधर न होने पावे। थामना। धरना। २. वेगपूर्वक आती हुई चीज को आगे बढ़ने से रोकना। जैसे—(क) गेंद पकड़ना। (ख) मारनेवाले का हाथ पकड़ना। ३. जो छिपा या भागा हुआ हो, छिप या भाग सकता हो अथवा छिपने या भागने को हो, उसे इस प्रकार अधिकार या वश में करना कि वह छिप, बच, भाग न सके। गिरफ्तार करना। जैसे—चोर या डाकू को पकड़ना; नादिहन्द आसामी को पकड़ना। ४. जो छिपा हुआ हो या सबके सामने न हो, उसे ढूँढकर इस प्रकार निकालना कि वह सबके सामने आ जाय। जैसे—किसी की चोरी या भूल पकड़ना। ५. किसी प्रकार के जाल या फंदे में फँसाकर पशु-पक्षियों आदि क अपने अधिकार या वंश में करना। जैसे—चिड़िया, मछली या हिरन पकड़ना। ६. जो आगे चलता या बढ़ता जा रहा हो, अथवा आगे निकल जाने को हो, उसकी बराबरी या साथ करने के लिए ठीक समय पर उसके पास तक पहुँचना। जैसे—(क) घुड़-दौड़ में एक घोड़े का दूसरे घोड़े को पकड़ना। (ख) स्टेशन पर पहुँचकर रेलगाड़ी पकड़ना। ७. अनुचित अथवा अवैध काम करते हुए किसी व्यक्ति को ढूँढ निकालना। जैसे—किसी को जूआ खेलते या शराब पीते हुए पकड़ना। ८. किसी को कोई काम करने से रोकना। जैस—बोलनेवाला की जबान पकड़ना। ९. ठीक तरह से किसी चीज को जानना और पहचानना। जैसे—अक्षर पकड़ना, स्वर पकड़ना। १॰. एक वस्तु का दूसरी वस्तु से चिपक जाना। जैसे—दफ्ती का कागज को पकड़ना। ११. रोग या विकार का ऐसा उग्र रूप धारण करना कि शरीर अथवा उसका कोई अंग ठीक तरह से काम न कर सके। जैसे—(क) महीनों से उसे बुखार ने पकड़ रखा है। (ख) गठिया ने उसका घुटना पकड़ लिया है। (ग) जुकाम में कफ बढ़कर कलेजा (या सिर) पकड़ लेता है। १२. किसी फैलनेवाली वस्तु के सम्पर्क में आकर उसके प्रभाव से युक्त होना। जैसे—(क) पत्थर का कोयला देर में आँच पकड़ता है। (ख) रसोई बनाते समय उसकी साड़ी के आँचल ने आग पकड़ ली। (ग) कोरा और खुरदुरा कपड़ा जल्दी रंग नहीं पकड़ता। १३. किसी का आचार-विचार, रंग-ढंग, रीति-वृत्ति आदि ग्रहण करके उसके अनुरूप बनना या होना। जैसे—(क) बाजारू लड़कों के साथ रहकर तुमने यह नई चाल पकड़ी है। (ख) खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है। अ० अच्छी तरह या ठीक रूप से स्थायी या स्थिर होना। जैसे—(क) हवा करने से चीज में आग जल्दी पकड़ती है। (ख) यह पौधा इस जमीन में जड़ नहीं पकड़ेगा।
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पकड़वाना  : स० [हिं० पकड़ना का प्रे०] १. किसी को कुछ पकड़ने में प्रवृत्त करना। किसी के पकड़े जाने में सहायक होना। २. दे० ‘पकड़ाना’। संयों० क्रि०—देना।—लेना।
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पकड़ाना  : स० [हिं० पकड़ना का प्रे० रूप] १. किसी के हाथ या अधिकार में कोई चीज देना। २. दे० ‘पकड़वाना’। अ० पकड़ लिया जाना। पकड़ा जाना।
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