शब्द का अर्थ
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परिघ :
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पुं० [सं० परि√हन् (हिंसा)+अप्, घ—आदेश] १. लकड़ी, लोहे आदि का ब्योंड़ा। अर्गल। २. आड़ या रुकावट के लिए खड़ी की हुई कोई चीज। ३. कोई ऐसा तत्त्व या बात जो किसी काम को यथा-साथ्य पूरी तरह से रोकने में समर्थ हो। (बेरियर) ४. वह दंडा जिसके सिरे पर लोहा जड़ा हुआ हो। लोहाँगी। ५. बरछा। भाला। ६. मुद्गर। ७. कलश। घड़ा। ८. गोपुर। फाटक। ९. घर। मकान। १॰. तीर। वाण। ११. पर्वत। पहाड़। १२. वज्र। १३. जल का घड़ा। १४. चंद्रमा। १५. सूर्य। १६. नदी। १७. स्थल। १८. एक प्रकार का मूढ़ गर्भ। १९. कार्तिकेय का एक अनुचर। २॰. ज्योतिष के २६ योगों में से १९वाँ योग। २१. शेषनाग। २२. अविद्या जो मनुष्य को आनंद और सुख से दूर रखती है। २३. वे बादल जो सूर्य के उदय या अस्त होने के समय उसके सामने आ जायँ। |
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परिघट्टन :
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पुं० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० परिघट्टित] तरल पदार्थ को चलाना। |
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परिघ-मूढ़-गर्भ :
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पुं० [सं० मूढ़-गर्भ कर्म० स०, परिघ-मूढ़ा—गर्भ, उपमि० स०] वह बालक जो प्रसव के समय अर्गल या परिध की तरह अटक जाय। |
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परिघात :
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पुं० [सं० परि+हन् (मारना)+घञ्, वृद्धि—न, त] १. मारडालना। हत्या। हनन। २. ऐसा अस्त्र जिससे किसी की हत्या हो सकती हो। |
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परिघातन :
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पुं० [सं० परि√हन्+णिच्+ल्युट्—अन] मार डालने की क्रिया या भाव। वध। हत्या। |
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परिघाती (तिन्) :
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वि० [सं० परि√हन्+णिच्+णिनि] हत्यारा। |
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परिघृष्ट :
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वि० [सं० प्रा० स०] बहुत अधिक या चारों ओर से घिरा हुआ। |
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परिघृष्टिक :
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पुं० [सं० परिघृष्ट+तन्—इक] एक प्रकार का वानप्रस्थ। |
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परिघोष :
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पुं० [सं० प्रा० स०] १. जोर का शब्द। घोर आवाज। २. [प्रा० ब० स०] बादल की गरज। मेघ-गर्जन। |
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