शब्द का अर्थ
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परिषद् :
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स्त्री० [सं० परि√सद् (गति)+क्विप्] १. चारों ओर से घेर कर या घेरा बनाकर बैठाना। २. वैदिक युग में विद्वानों की वह सभा जो राजा किसी विषय पर व्यवस्था देने के लिए बुलाता था। ३. बौद्ध-काल में वह निर्वाचित राजकीय संस्था या सभा जो राज्य या शासन से संबंध रखनेवाली सब बातों पर विचार तथा निर्णय करती थी। विशेष—प्राचीन काल में परिषदें तीन प्रकार की होती थीं—(क) शिक्षा-संबंधी। (ख) सामाजिक गोष्ठी-सम्बन्धी। और (ग) राज-शासन-सम्बन्धी। ४. आधुनिक राजनीति विज्ञान में, निर्वाचित या मनोनीत विधायकों की वह सभा जो स्थायी या बहुत-कुछ स्थायी होती है। (काउंसिल) ५. सभा। जैसे—संगीत परिषद्। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
परिषद :
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पुं० [सं० परि√सद्+अच्] १. सवारी या जुलूस में चलनेवाले वे अनुचर जो स्वामी को घेर कर चलते हैं। परिषद। २. दरबारी। मुसाहब। ३. सदस्य। सभासद। स्त्री०=परिषद्। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
परिषद्य :
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पुं० [सं० परिषद्+यत्] १. परिषद् या सदस्य। २. सभासद। सदस्य। ३. दर्शक। प्रेक्षक। |
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समानार्थी शब्द-
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परिषद्वल :
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पुं० [सं० परिषद्+वलच्] सभासद। सदस्य। |
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परिषद् :
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स्त्री० [सं० परि√सद् (गति)+क्विप्] १. चारों ओर से घेर कर या घेरा बनाकर बैठाना। २. वैदिक युग में विद्वानों की वह सभा जो राजा किसी विषय पर व्यवस्था देने के लिए बुलाता था। ३. बौद्ध-काल में वह निर्वाचित राजकीय संस्था या सभा जो राज्य या शासन से संबंध रखनेवाली सब बातों पर विचार तथा निर्णय करती थी। विशेष—प्राचीन काल में परिषदें तीन प्रकार की होती थीं—(क) शिक्षा-संबंधी। (ख) सामाजिक गोष्ठी-सम्बन्धी। और (ग) राज-शासन-सम्बन्धी। ४. आधुनिक राजनीति विज्ञान में, निर्वाचित या मनोनीत विधायकों की वह सभा जो स्थायी या बहुत-कुछ स्थायी होती है। (काउंसिल) ५. सभा। जैसे—संगीत परिषद्। |
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पुं० [सं० परि√सद्+अच्] १. सवारी या जुलूस में चलनेवाले वे अनुचर जो स्वामी को घेर कर चलते हैं। परिषद। २. दरबारी। मुसाहब। ३. सदस्य। सभासद। स्त्री०=परिषद्। |
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परिषद्य :
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पुं० [सं० परिषद्+यत्] १. परिषद् या सदस्य। २. सभासद। सदस्य। ३. दर्शक। प्रेक्षक। |
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परिषद्वल :
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पुं० [सं० परिषद्+वलच्] सभासद। सदस्य। |
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