शब्द का अर्थ
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पुश्ता :
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पुं० [फा० पुश्तः] १. ईंट, पत्थर मिट्टी आदि की वह ढालुईं वास्तु-रचना जो (क) नदियों के किनारे पानी की बाढ़ रोकने अथवा (ख) बड़ी और भारी दीवारों या ऊँची सड़कों को गिरने से बचाने के लिए उनके पार्श्व में खड़ी की जाती है। (एम्बैंकमेन्ट) २. किताब की जिल्द के पीछे, अर्थात् पुट्ठे पर लगा हुआ चमड़ा या ऐसी ही और कोई चीज। ३. संगीत में पौने चार मात्राओं का एक प्रकार का ताल जिसमें तीन आघात होते हैं और एक खाली रहता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्तापुश्त :
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अव्य० [फा०] १. कई पीढ़ियों से। २. कई पीढ़ियों तक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्ताबंदी :
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स्त्री० [फा०] पुश्ता उठाने, खड़ा करने या बाँधने की क्रिया या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्तारा :
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पुं० [फा० पुश्तवारः] वह बोझ जो पीठ पर उठाया जाय, या उठाया जा सके। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्ता :
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पुं० [फा० पुश्तः] १. ईंट, पत्थर मिट्टी आदि की वह ढालुईं वास्तु-रचना जो (क) नदियों के किनारे पानी की बाढ़ रोकने अथवा (ख) बड़ी और भारी दीवारों या ऊँची सड़कों को गिरने से बचाने के लिए उनके पार्श्व में खड़ी की जाती है। (एम्बैंकमेन्ट) २. किताब की जिल्द के पीछे, अर्थात् पुट्ठे पर लगा हुआ चमड़ा या ऐसी ही और कोई चीज। ३. संगीत में पौने चार मात्राओं का एक प्रकार का ताल जिसमें तीन आघात होते हैं और एक खाली रहता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्तापुश्त :
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अव्य० [फा०] १. कई पीढ़ियों से। २. कई पीढ़ियों तक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्ताबंदी :
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स्त्री० [फा०] पुश्ता उठाने, खड़ा करने या बाँधने की क्रिया या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुश्तारा :
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पुं० [फा० पुश्तवारः] वह बोझ जो पीठ पर उठाया जाय, या उठाया जा सके। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |