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पुष  : वि० [सं०√पुष् (पुष्ट करना)+क] १. पोषण प्रदान करनेवाला। २. दिखलाने या प्रदर्शित करनेवाला।
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पुषा  : स्त्री० [सं० पुष+टाप्] कलियारी का पौधा।
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पुषित  : भू० कृ० [सं० पुष्ट] १. पोषित। २. वर्द्धित।
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पुष्कर  : पुं० [सं०√पुष्+क, कित्व, पुष्क√रा (देना)+ क] १. जल। पानी। २. जलाशय। पोखरा। ३. कमल। ४. कलछी के आगे लगी हुई कटोरी। ५. ढोल, मृदंग आदि का मुँह। ६. हाथी की सूँड़ का अगला भाग। ७. आकाश। आसमान। ८. तीर। वाण। ९. तलवार का फल। १॰. म्यान। ११. पिंजड़ा। १२. पद्यकंद। १३. नृत्यकला। १४. सर्प। १५. युद्ध। लड़ाई। १६. अंश। भाग। १७. नशा। मद। १८. भग्नपाद नक्षत्र का एक अशुभ योग जिसकी शांति का विधान किया गया है। १९. पुष्कर-मूल। २॰. कुष्ठौषधि। कुट। २१. एक तरह का ढोल। २२. एक प्रकार का रोग। २३. एक दिग्गज। २४. सारस पक्षी। २५. विष्णु का एक रूप। २६. शिव। २७. भरत के एक पुत्र। २८. कृष्ण के एक पुत्र। २९. एक असुर का नाम। ३॰. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३१. पुराणानुसार ब्रह्मांड के सात लोकों में से एक। ३२. मेघों का एक नायक। ३३. आधुनिक अजमेर के पास का एक प्रसिद्ध तीर्थ।
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पुष्कर-कर्णिका  : स्त्री० [सं० पुष्कर√कर्ण+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] १. स्थलपद्मिनी। २. सूँड़ की नोक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुष्कर-चूड़  : पुं० [सं०] लोलार्क पर्वत पर स्थित दिग्गज का नाम।
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पुष्कर-जटा  : स्त्री० [सं०] १. कुट नामक औषधि। २. कमल की जड़। भसींड।
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पुष्कर-नाड़ी  : स्त्री० [सं० पुष्कर√नड् (नष्ट करना)+ णिच्+अच्—ङीष्] स्थल पर होनेवाला एक तरह का कमल। स्थलपद्मिनी।
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पुष्कर-नाभ  : पुं० [ब० स०, अच्] विष्णु।
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पुष्कर-पर्ण  : पुं० [ष० त०] १. कमल का पत्ता। २. यज्ञ के वेदी बनाने के काम में आनेवाली एक प्रकार की ईंट।
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पुष्कर-प्रिय  : पुं० [ब० स०] मधुमक्षिका। मधुमक्खी।
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पुष्कर-बीज  : पुं० [ष० त०] कमल का बीज। कमल-गट्टा।
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पुष्कर-मुख  : पुं० [ब० स०] सूँड़ का विवर। वि० सूँड़ जैसे मुँहवाला।
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पुष्कर-मूल  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार की वनस्पति की जड़, जिसके संबंध में कहा जाता है कि यह कश्मीर के सरोवरों में उत्पन्न होती है। यह ओषधि आजकल नहीं मिलती, वैद्य लोग इसके स्थान पर कुष्ठ या कुट का व्यवहार करते हैं।
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पुष्कर-व्याघ्र  : पुं० [स० त०] घड़ियाल।
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पुष्कर-शिफा  : स्त्री० [ष० त०] पुष्कर-मूल।
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पुष्कर-सागर  : पुं० [उपमि० स०] पुष्कर-मूल।
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पुष्कर-सारी  : स्त्री० [ष० त०+ङीष्] एक प्राचीन लिपि।
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पुष्कर-स्थपति  : पुं० [ष० त०] शिव।
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पुष्करस्रक् (ज्)  : पुं० [ब० स०] अश्विनीकुमार। स्त्री० कमलों की गूँथी हुई माला।
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पुष्कराक्ष  : वि० [पुष्कर-अक्षि, ब० स०, अच्] कमल- नयन। पुं० विष्णु।
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पुष्कराख्य  : पुं० [सं० पुष्कर-आख्या, ब० स०] सारस पक्षी।
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पुष्कराग्र  : पुं० [सं० पुष्कर-अग्र, ष० त०] सूँड़ का अगला भाग।
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पुष्करावती  : स्त्री० [सं० पुष्कर+मतुप्, वत्व, दीर्घ] एक प्राचीन नदी।
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पुष्करावर्तक  : पुं० [सं० पुष्कर-आ√वृत्त (बरतना)+ णिच्+ण्वुल्—अक] मेघों के एक अधिपति।
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पुष्कराह्व  : पुं० [सं० पुष्कर-आह्वा, ब० स०] सूँड़ का अग्र भाग।
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पुष्करिका  : स्त्री० [सं० पुष्कर+ठन्—इक्+टाप्] लिंग का एक रोग।
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पुष्करिणी  : स्त्री० [सं० पुष्कर+इनि+ङीष्] १. हथिनी। २. छोटा जलाशय। ३. ऐसा जलाशय, जिसमें कमल खिले हों। ४. कमल का पौधा। ५. एक प्राचीन नदी। ६. चाक्षुष मनु की पत्नी। ७. भूमन्यु की पत्नी और ऋचीक की माता।
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पुष्करी (रिन्)  : पुं० [सं० पुष्कर+इनि] हाथी। वि० जिसमें कमल हों।
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पुष्कल  : पुं० [सं०√पुष्+कलच्, कित्व] १. वह भिक्षा जो केवल चार गाँवों से लाई जाती थी। २. अनाज नापने का एक प्राचीन मान, जो ६४ मुट्ठियों के बराबर होता था। ३. शिव। ४. वरुण के एक पुत्र। ५. राम के भाई भरत का एक पुत्र। ६. एक बुद्ध का नाम। ७. एक प्रकार का ढोल। ८. एक प्रकार की वीणा। वि० १. बहुत। अधिक। ढेर-सा। प्रचुर। २. भरा-पूरा परिपूर्ण। ३. श्रेष्ठ। ४. उपस्थित। प्रस्तुत। ५. पवित्र।
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पुष्कलक  : पुं० [सं० पुष्कल+कन्] १. कस्तूरी-मृग। २. अर्गला। सिटकनी। ३. कील।
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पुष्कलावती  : स्त्री० [सं० पुष्कल+मतुप्, वत्व, दीर्घ] पुराणानुसार भरत के पुत्र पुष्कल की बसाई हुई गांधार देश की प्राचीन नगरी।
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पुष्ट  : वि० [सं०√पुष्+क्त] [भाव.पुष्टता, पुष्टि] १. जिसका अच्छी तरह पोषण हुआ हो; फलतः दृढ़ या मजबूत। २. मोटा-ताजा और बलवान। पद—हृष्टपुष्ट (देखें)। ३. जिसमें कोई कचाई या कोर-कसर न हो, और इसी लिए जिसका भरोसा किया जा सके। पक्का। ४. (कथन या बात) जो प्रमाणों से सत्य सिद्ध होती हो, फलतः जिसके ठीक या सत्य होने में कोई संदेह न रह गया हो। ५. सब तरह से पूरा। परिपूर्ण। ६. प्रमुख। मुख्य। ७. दे० ‘पौष्टिक’। पुं० विष्णु।
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पुष्टई  : स्त्री० [सं० पुष्ट+ई (प्रत्य०)] १. पुष्टता। २. वह ओषधि या खाद्य-वस्तु, जो शरीर को पुष्ट करने के लिए खाई जाय।
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पुष्टता  : स्त्री० [सं० पुष्ट+तल्+टाप्] पुष्ट होने की अवस्था या भाव। पुष्टि।
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पुष्टि  : स्त्री० [सं०√पुष+क्तिन] १. पुष्ट अर्थात् दृढ़ या मजबूत होने की अवस्था या भाव। दृढ़ता। मजबूती। २. पुष्ट करने की क्रिया या भाव। पोषण। ३. धन, संतान आदि की होनेवाली वृद्धि। बढ़ती। ४. वह उदाहरण, तर्क या प्रमाण, जिसमें कोई बात पुष्ट की जाय। ५. किसी कही हुई बात का ऐसा अनुमोदन या समर्थन जिससे वह और भी अधिक या पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाय। जैसे—आपकी इस बात से मेरे मत (या संदेह) की पुष्टि होती है। ६. सोलह मातृकाओं में से एक। ७. मंगला, विजया आदि आठ प्रकार की चारपाइयों में से एक। ८. धर्म की पत्नियों में से एक। ९. एक योगिनी का नाम। १॰. असगंध नामक ओषधि। अश्वगंध। ११. दे० ‘पुष्टिमार्ग’।
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पुष्टि-कर  : वि० [ष० त०] १. पुष्ट करनेवाला। २. पुष्टि करनेवाला। ३. बल या वीर्य्यवर्द्धक।
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पुष्टिकरी  : स्त्री० [सं० पुष्टिकर+ङीष्] गंगा। (काशी-खंड)
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पुष्टि-कर्म (र्मन्)  : पुं० [ष० त०] अभ्युदय के लिए किया जानेवाला एक धार्मिक कृत्य।
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पुष्टिका  : स्त्री० [सं० पुष्टि+कन्—टाप्] जल की सीप। सुतही सीपी।
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पुष्टि-काम  : वि० [ब० स०] अभ्युदय का इच्छुक।
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पुष्टि-कारक  : वि० [ष० त०] पुष्टिकर। (दे०)
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पुष्टिद  : वि० [सं० पुष्टि√दा (देना)+क] पुष्टिकर। (दे०)
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पुष्टिदग्धयत्न  : पुं० [सं० दग्ध-यत्न, ष० त०, पुष्टिदग्धयत्न, मध्य० स०] चिकित्सा का एक प्रकार जिसमें आग में जले हुए अंग को आग से सेंक कर या किसी प्रकार का गरम-गरम लेप करके अच्छा किया जाता है।
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पुष्टिदा  : स्त्री० [सं० पुष्टिद+टाप्] १. अश्वगंधा। असगंध। २. वृद्धि नाम की ओषधि।
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पुष्टिपति  : पुं० [सं० ष० त०] अग्नि का एक भेद।
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पुष्टि-मत  : पुं०=पुष्टि-मार्ग।
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पुष्टि-मार्ग  : पुं० [ष० त०] भक्ति-क्षेत्र में, श्री वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैत मन की साधना-व्यवस्था जो श्रीमद्भागवत के ‘पोषणं तदनुग्रहः’ वाले तत्त्व पर आधारित है। इसमें भक्त कर्म-निरपेक्ष होकर भगवान श्रीकृष्ण को आत्म-समर्पण करके ही सुखी रहता है; और अपने कर्मों के फल की कामना नहीं करता।
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पुष्टीकरण  : पुं० [सं० पुष्ट+च्वि, ईत्व√कृ+ल्युट—अन] किसी कही हुई बात या किये हुए काम को ठीक मानते हुए उसकी पुष्टि करना। (कन्फर्मेशन)
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पुष्पंधय  : वि० [सं० पुष्प√धे (पीना)+श, मुम्] मकरंद पान करनेवाला। पुं० भौंरा। भ्रमर।
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पुष्प  : पुं० [सं०√पुष्प (खिलना)+अच्] १. पेड-पौधों के फूल। कुसुम। २. मधु। शहद। ३. पुष्पराग नामक मणि। पुखराज। ४. आँख का फूली नामक रोग। ५. ऋतुमती या रजस्वला स्त्री का रज। ६. घोडों के शरीर पर का एक चिह्न या लक्षण। चित्ती। ७. खिलने और फैलने की क्रिया। विकास। ८. आँख में लगने का एक प्रकार का अंजन या सुरमा। ९. रसौत। १॰. पुष्कर-मूल। ११. लौंग। १२. वाम-मार्गियों की परिभाषा में खाया जानेवाला मांस। गोश्त। १३. पुष्पक विमान।
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पुष्पक  : पुं० [सं० पुष्प+कन् या पुष्प√कै (भासित होना)+क] १. फूल। कुसुम। पुष्प। २. कुबेर का विमान। ३. जड़ाऊ कंगन। ४. रसांजन। रसौत। ५. आँख का फूली नामक रोग। ६. हीरा कसीस। ७. पीतल लोहे आदि की मैल। ८. पीतल। ९. एक प्रकार का बिना विष का साँप। १॰. एक प्राचीन पर्वत। ११. प्रासाद बनाने में एक प्रकार का मंडप। १२. वह खंभा जिसके कोने आठ भागों में बँटें हों।
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पुष्प-करंडक  : पुं० [सं० ब० स०] १. उज्जयिनी का एक प्राचीन शिवोद्यान। २. डलिया, जिसमें तोड़े हुए फूल रखे जाते हैं।
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पुष्प-करंडिनी  : स्त्री० [सं० पुष्प-करंड, ष० त०, इनि+ ङीप्] उज्जयिनी।
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पुष्प-काल  : पुं० [ष० त०] १. वसंतऋतु। २. स्त्रियों का ऋतु काल।
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पुष्प-कासीस  : पुं० [उपमि० स०] एक तरह का कसीस। हीरा कसीस।
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पुष्प-कीट  : पुं० [मध्य० स०] १. फूल का कीड़ा। २. भौंरा।
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पुष्प-कृच्छ्र  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का व्रत जिसमें केवल फूलों का क्वाथ पीकर निर्वाह किया जाता है।
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पुष्प-केतन  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-केतु  : पुं० [ब० स०] १. पुष्पांजन। २. कामदेव। ३. बुद्ध।
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पुष्प-गंडिका  : स्त्री० [ष० त०] लास्य के दस भेदों में से एक।
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पुष्प-गंधा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] जूही।
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पुष्प-गवेधुका  : स्त्री० [स० त०] नागवला।
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पुष्प-घातक  : पुं० [ष० त०] बाँस।
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पुष्प-चयन  : पुं० [ष० त०] पुष्प तोड़ना। फूल चुनना।
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पुष्प-चाप  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-चामर  : पुं० [ब० स०] १. दौना। २. केवड़ा।
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पुष्पज  : वि० [सं० पुष्प√जन् (उत्पन्न होना)+ड] फूल से उत्पन्न होनेवाला। पुं० फूल का मकरंद या रस।
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पुष्पजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पुष्प√जीव् (जीना)+ णिनि] माली।
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पुष्प-दंड  : पुं० [ष० त०] पेड़-पौधों की वह डंडी जिसमें फूल या फल लगते हैं।
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पुष्प-दंत  : पुं० [ब० स०] १. वायुकोण का दिग्गज। २. प्राचीन भारत में एक प्रकार का नगरद्वार। ३. शिव का अनुचर एक गंधर्व, जिसका रचा हुआ महिम्नस्तोत्र कहा जाता है। ४. एक विद्याधर। ५. कार्तिकेय का एक अनुचर।
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पुष्पद  : वि० [सं० पुष्प√दा (देना)+क] पुष्प या फूल देनेवाला। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पुष्पध  : पुं० [सं० पुष्प√धा (धारण करना)+क] व्रात्य ब्राह्मण से उत्पन्न एक जाति।
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पुष्पधनु  : पुं०=पुष्प-धन्वा।
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पुष्प-धनुस्  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-धन्वा (न्यन्)  : पुं० [ब० स०] १. कामदेव। २. वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध जो रससिंदूर, सीसे अभ्रक और वंग में धतूरा भाँग जेठी मधु आदि मिलाने से बनता है और जो कामोद्दीपक तथा शक्तिवर्द्धक माना जाता है।
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पुष्प-ध्वज  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्पनिक्ष  : पुं० [सं० पुष्प√निक्ष् (चूसना)+अण्] भ्रमर। भौंरा।
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पुष्प-निर्यास  : पुं० [ष० त०] फूलों का रस। मकरंद।
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पुष्प-नेत्र  : पुं० [मध्य० स०] वस्ति की पिचकारी की सलाई।
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पुष्प-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. फूल की पँखड़ी। २. दे० ‘पत्र-पुष्प’। ३. एक प्रकार का बाण।
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पुष्प-पत्री (त्तिन्)  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-पथ  : पुं० [ष० त०] स्त्रियों के रज के निकलने का मार्ग अर्थात् भग। योनि।
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पुष्प-पदवी  : स्त्री० [ष० त०] भग। योनि।
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पुष्प-पांडु  : पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार साँप।
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पुष्प-पिंड  : पुं० [ब० स०]=पिंड पुष्प (अशोक वृक्ष)।
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पुष्प-पुट  : पुं० [ष० त०] १. फूल की पंखड़ियों का वह आधार, जो कटोरी के आकार का होता है। २. हाथ का चंगुल जो उक्त आकार का होता है।
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पुष्प-पुर  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन पाटलिपुत्र। आधुनिक पटना का एक नाम।
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पुष्प-पेशल  : वि० [उपमि० स०] फूल की तरह सुकुमार।
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पुष्प-प्रचाय  : पुं० [सं० पुष्प-प्र√चि (चुनना)+घञ्] फूलों का चुना या तोड़ा जाना।
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पुष्प-प्रस्तार  : पुं० [ष० त०] फूलों का बिछावन। पुष्पशय्या।
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पुष्प-फल  : पुं० [ब० स०] १. कुम्हड़ा। २. कैथ। ३. अर्जुन वृक्ष।
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पुष्प-बाण  : पुं० [ब० स०] १. कामदेव। २. कुश द्वीप का एक पर्वत। ३. एक दैत्य।
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पुष्प-भद्र  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत की वास्तु-रचना में, एक प्रकार का मंडप जिसमें ६२ खंभे होते थे।
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पुष्प-भद्रक  : पुं० [ब० स०+कप्] देवताओं का एक उपवन।
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पुष्पभद्रा  : स्त्री० [सं० पुष्पभद्र+टाप्] पुराणानुसार मलय पर्वत के पश्चिम की एक नदी।
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पुष्प-भव  : पुं० [ष० त०] फूलों का रस। मकरंद।
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पुष्प-भाजन  : पुं० [ष० त०] तोड़े हुए फूल रखने का पात्र।
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पुष्प-भूति  : पुं० [ब० स०] १. सम्राट हर्षवर्द्धन के एक पूर्व पुरुष, जो शैव थे। २. ईसवीं सातवीं शताब्दी के कांबोज (आधुनिक काबुल) के एक हिन्दू राजा।
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पुष्प-मंजरिका  : स्त्री० [ष० त०] १. नील कमलिनी। २. फूल की मंजरी।
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पुष्प-मंजरी  : स्त्री० [ष० त०] १. फूल का मंजरी। २. घृतकरंज।
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पुष्प-मास  : पुं० [मध्य० स०] १. चैत्रमास। चैत का महीना। २. बसंत काल।
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पुष्पमित्र  : पुं० दे० ‘पुष्पमित्र’ (शुंग वंश के राजा का नाम)।
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पुष्प-मृत्यु  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का नरकट। बड़ा नरसल। देव नल।
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पुष्प-मेघ  : पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार फूलों की वर्षा करनेवाला बादल।
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पुष्प-रक्त  : पुं० [ब० स०] सूर्य्यमणि नामक पौधा और उसका फूल।
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पुष्प-रचन  : पुं० [ष० त०] फूलों की माला गूँथने, गुच्छे आदि बनाने की क्रिया या भाव।
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पुष्प-रज (स्)  : पुं० [ष० त०] पराग।
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पुष्प-रथ  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का रथ, जिस पर चढ़कर लोग हवा खाने निकलते थे।
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पुष्प-रस  : पुं० [ष० त०] पराग।
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पुष्परसाह्वय  : पुं० [पुष्परस-आह्वय, ब० स०] मधु। शहद।
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पुष्प-राग  : पुं० [ब० स०] पुखराज नामक रत्न।
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पुष्पराज  : पुं० [सं० पुष्प√राज् (शोभित होना)+अच्] पुखराज या पुष्पराग नामक रत्न।
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पुष्प-रेणु  : पुं० [ष० त०] फूल की धूल। पुष्परज।
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पुष्प-रोचन  : पुं० [ब० स०] नाग-केसर।
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पुष्पलक  : पुं० [सं० पुष्पकलंक] १. कस्तूरी मृग। २. बौद्ध भिक्षु।
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पुष्पलाव  : पुं० [सं० पुष्प√लू (काटना)+अण्] [स्त्री० पुष्पलावी] १. वह जो फूल चुनता हो। २. माली।
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पुष्पलावन  : पुं० [सं० पुष्प√लू+णिच्+ल्यु—अन] उत्तर दिशा का एक देश। (वृहत्संहिता)
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पुष्पलिक्ष  : पुं० [सं० पुष्प√लिह् (स्वाद लेना)+क्स] भ्रमर। भौंरा।
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पुष्पलिट् (ह्)  : पुं० [सं० पुष्प√लिह्+क्विप्] भौंरा।
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पुष्प-लिपि  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार की पुरानी लिपि। (ललित विस्तर)
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पुष्पवती  : स्त्री० [सं० पुष्प+मतुप्, वत्व+ङीष्] १. ऋतुमती या रजस्वला। २. एक तीर्थ (महा०)
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पुष्प-वर्ग  : पुं० [ष० त०] वैद्यक में अगस्त्य, कचनार, सेमल आदि वृक्षों के फूलों का एक विशिष्ट समाहार।
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पुष्पवर्त्म (न्)  : पुं० [सं०] द्रुपद।
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पुष्प-वर्ष  : पुं० [मध्य० स०] १. पुराणानुसार एक वर्षा पर्वत का नाम। २. [ष० त०] फूलों की वर्षा। पुष्पवर्षण।
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पुष्प-वर्षण  : स्त्री० [ष० त०] फूलों का बरसना। पुष्पवृष्टि।
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पुष्प-वर्षा  : स्त्री० [ष० त०] बहुत से फूलों की ऊपर से होनेवाली या की जानेवाली वर्षा।
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पुष्प-वसंत  : पुं० [उपमि० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पुष्प-वाटिका  : स्त्री० [ष० त०] ऐसा छोटा उद्यान जिसमें फूलोंवाले अनेक पौधे तथा वृक्ष हों। फुलवारी।
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पुष्प-वाटी  : स्त्री० [ष० त०] पुष्पवाटिका। (दे०)
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पुष्प-वाण  : पुं० [ष० त०] १. फूलों का वाण। २. कामदेव। ३. कुशद्वीप के एक राजा। ४. एक दैत्य।
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पुष्प-वाहिनी  : स्त्री० [ष० त०] पुराणानुसार एक प्राचीन नदी।
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पुष्प-विचित्रा  : स्त्री० [उपमि० स०] एक प्रकार का वृत्त।
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पुष्प-विशिख  : पुं० [ब० स०] कामदेव। २. कुशद्वीप का एक पर्वत। ३. एक राक्षस।
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पुष्प-वृष्टि  : स्त्री० [ष० त०] फूलों का बरसना या बरसाया जाना। फूलों की वर्षा।
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पुष्प-वेणी  : स्त्री० [ष० त०] फूलों को गूँथकर बनाई हुई माला।
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पुष्प-शकटिका  : स्त्री [ष० त०] आकाशवाणी।
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पुष्प-शकटी  : स्त्री०=पुष्प-शकटिक।
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पुष्प-शकली (लिन्)  : पुं० [सं० पुष्पशकल, ष० त०,+इनि] एक तरह का विषहीन साँप। (सुश्रुत)
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पुष्प-शय्या  : स्त्री० [मध्य० स०] वह शय्या जिस पर फूल बिछे हों। फूलों का बिछौना।
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पुष्प-शर  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शरासन  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शाको  : पुं० [मध्य० स०] ऐसे फूल जिनकी तरकारी बनाई जाती हो। जैसे—अगस्त, कचनार, खैर, नीम, रासना, सहिंजन, सेमल आदि।
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पुष्प-शिलीमुख  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शून्य  : वि० [तृ० त०] जिसमें पुष्प न हों। बिना फूल का। पुं० गूलर।
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पुष्प-शेखर  : पुं० [ष० त०] फूलों की माला।
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पुष्प-श्रेणी  : स्त्री० [ब० स०] मूसाकानी नामक जमीन पर फैलनेवाला क्षुप।
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पुष्प-समय  : पुं० [ष० त०] वसंत काल
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पुष्प-साधारण  : पुं० [ब० स०] वसंत काल।
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पुष्प-सायक  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-सार  : पुं० [ष० त०] १. फूल या मधु का रस। २. फूलों का इत्र।
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पुष्प-सारा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] तुलसी।
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पुष्प-सिता  : स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह की चीनी।
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पुष्प-सूत्र  : पुं० [मध्य० स०] गोभिल के सूत्र ग्रन्थ का नाम।
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पुष्प-सौरभा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] कलिहारी का पौधा। करियारी।
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पुष्प-स्नान  : पुं० दे० ‘पुष्पस्नान’।
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पुष्प-स्नेह  : पुं० [ष० त०] १. मकरंद। २. मधु शहद।
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पुष्प-स्वेद  : पुं० [ष० त०] १. मकरंद २. मधु।
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पुष्प-हास  : पुं० [ष० त०] १. फूलों का खिलना। २. विष्णु।
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पुष्पहासा  : स्त्री० [सं० पुष्पहास+टाप्] रजस्वला स्त्री। ऋतुमती स्त्री।
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पुष्पहीन  : वि० [ब० स०] [स्त्री० पुष्पहीना] (पेड़) जिसमें फूल न लगते हों। पुं० गूलर का वृक्ष।
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पुष्पहीना  : वि० स्त्री० [सं० पुष्पहीन+टाप्] १. (स्त्री) जिसे रजोदर्शन न हो। २. बाँझ। वंध्या। ३. (स्त्री) जिसकी बच्चे पैदा करने की अवस्था बीत चुकी हो।
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पुष्पांक  : पुं० [पुष्प-अंक, ष० त०] माधवी लता।
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पुष्पांजन  : पुं० [पुष्प-अंजन, ष० त०] वैद्यक में एक प्रकार का अंजन जो पीतल के हरे कसाव में कुछ औषधियों को मिलाकर बनाया जाता है।
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पुष्पांजलि  : स्त्री० [पुष्प-अंजलि, ष० त०] फूलों से भरी हुई अंजलि जो किसी देवता या महापुरुष को अर्पित की जाती है।
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पुष्पांबुज  : पुं० [सं० पुष्प-अंबु, ष० त०, पुष्पांबु√जन् (उत्पन्न होना)+ड] मकरंद।
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पुष्पांभस्  : पुं० [ब० स०] एक प्राचीन तीर्थ।
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पुष्पा  : स्त्री० [सं०√पुष्प+अच्+टाप्] आधुनिक चम्पारन का प्राचीन नाम जहाँ किसी जमाने में अंगदेश की राजधानी थी।
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पुष्पाकर  : पुं० [पुष्प-आकार, ष० त०] वसंत ऋतु।
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पुष्पागम  : पुं० [पुष्प-आगम, ब० स०] वसन्त ऋतु।
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पुष्पाजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पुष्प+आ√जीव्+णिनि] माली।
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पुष्पानन  : पुं० [पुष्प-आनन, ब० स०] एक तरह की शराब।
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पुष्पापीड  : पुं० [पुष्प-आपीड़, ष० त०] १. सिर पर धारण की जानेवाली फूलों की माला आदि। २. फूलों का मुकुट या सेहरा।
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पुष्पाभिषेक  : पुं० [पुष्प-अभिषेक, तृ० त०] दे० ‘पुण्य-स्नान’।
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पुष्पायुध  : पुं० [पुष्प-आयुध, ब० स०] वह जिसका फूल अस्त्र हो; कामदेव।
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पुष्पाराम  : पुं० [पुष्प-आराम, ष० त०] फुलवारी। पुष्पवाटिका।
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पुष्पावचय  : पुं० [पुष्प-अवचय, ष० त०] फूल चुनना।
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पुष्पावचायी (यिन्)  : पुं० [सं० पुष्प+अव√चि (चुनना) +णिनि] माली।
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पुष्पासव  : पुं० [पुष्प-आसव, मध्य० स०] १. मधु। शहद। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के फूलों को सड़ाकर बनाई जानेवाली एक तरह की शराब।
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पुष्पासार  : पुं० [पुष्प-आसार, ष० त०] फूलों की वर्षा।
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पुष्पास्तरक  : पुं० [पुष्प-आस्तरक, ष० त०] १. फूल बिखेरनेवाला। २. फूलों का बिछौना तैयार करनेवाला।
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पुष्पास्तरण  : पुं० [पुष्प-आस्तरण, ष० त०] १. फूल बिखेरने की क्रिया या भाव। २. शय्या पर फूल बिछाने का काम।
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पुष्पास्त्र  : पुं० [पुष्प-अस्त्र, ब० स०] पुष्पायुध (कामदेव)।
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पुष्पाह्वा  : स्त्री० [सं० पुष्प+आ√ह्वे+क+टाप्, ब० स०, प्] सौंफ।
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पुष्पिका  : स्त्री० [सं०√पुष्प+ण्वुल्—अक+टाप्, इत्व] १. दाँत की मैल। २. लिंग की मैल। ३. अधिकतर प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों या उनके अध्यायों के अन्त में वह वाक्य या पद्य जिससे कहे हुए प्रसंग की समाप्ति सूचित होती है और जिसमें प्रायः लेखक का नाम और रचना-संवत् भी रहता है।
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पुष्पिणी  : स्त्री० [सं० पुष्प+इनि+ङीष्] रजस्वला स्त्री०। ऋतुमती स्त्री।
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पुष्पित  : वि० [सं० पुष्प+इतच्] [स्त्री० पुष्पिता] १. (वृक्ष या पौधा) जिसमें फूल निकले हों। पुष्पों से युक्त। फूलों से लदा हुआ। २. उन्नत और समृद्ध। पुं० १. कुशद्वीप का एक पर्वत। २. एक बुद्ध का नाम।
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पुष्पिता  : वि० स्त्री० [सं० पुष्पित+टाप्] रजस्वला (स्त्री)।
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पुष्पिताग्रा  : स्त्री० [सं० पुष्पित-अग्र, ब० स०+टाप्] एक प्रकार का अर्द्धसम वृत्त जिसके पहले और तीसरे चरणों में दो नगण, एक रगण और एक यगण होता है तथा दूसरे और चौथे चरणों में एक नगण, दो जगण, एक रगण और गुरु होता है।
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पुष्पी (ष्पिन्)  : वि० [सं० पुष्प+इनि] (पौधा या वृक्ष) जिसमें फूल लगें हों।
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पुष्पेषु  : पुं० [पुष्प-इषु, ब० स०] कामदेव।
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पुष्पोत्कटा  : स्त्री० [पुष्प-उत्कटा, तृ० त०] रावण, कुंभकरण आदि राक्षसों की माता जो सुमाली राक्षस की कन्या थी।
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पुष्पोद्गम  : पुं० [पुष्प-उदगम, ष० त०] पौधे, वृक्षों आदि में फूल निकलना आरंभ होना।
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पुष्पोद्यान  : पुं० [पुष्प-उद्यान, ष० त०] फुलवारी। पुष्पवाटिका। बगीचा।
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पुष्पोपजीवी (दिन्)  : पुं० [सं० पुष्प+उप√जीव् (जीना)+णिनि] माली।
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पुष्य  : पुं० [सं०√पुष् (पुष्टि)+क्यप्] १. पुष्टि। पोषण। २. पौष का महीना। ३. सत्ताईसे नक्षत्रों में से ८वाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे हैं तथा जिसकी आकृति वाण की सी कही गई है, और जो अनेक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। इसे ‘तिष्य’ और ‘सिध्य’ भी कहते हैं।
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पुष्प-नेत्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०, अच,+टाप्] ऐसी रात्रि जिसमें पुष्य नक्षत्र दिखाई पड़ता हो।
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पुष्यमित्र  : पुं० [सं०] मगध में मौर्य शासन समाप्त करके शुंगवंशीय राज्य स्थापित करनेवाला एक प्रतापी राजा।
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पुष्यरथ  : पुं०=पुष्प-रथ।
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पुष्यलक  : पुं० [सं०√पुष्+कि, पुषि√अल् (पर्याप्ति)+ अच्+क] १. कस्तूरी मृग। २. वह जैन साधु जो हाथ में चँवर लिए रहता हो। ३. बड़ी और मोटी कील या खूँटा।
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पुष्य-स्नान  : पुं० [स० त०] राजाओं या राज्य के विध्नों की शांति के लिए एक विशिष्ट स्नान जो पूस के महीने में चन्द्रमा के पुष्य नक्षत्र में होने पर किया जाता है।
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पुष्याभिषेक  : पुं०=पुष्य-स्नान।
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पुष्यार्क  : पुं० [सं० पुष्य-अर्क, स० त०] १. फलित ज्योतिष में, एक योग जो कर्क की संक्राति में सूर्य के पुष्य नक्षत्र में होने पर होता है। यह प्रायः श्रावण में दस दिन के लगभग रहता है। २. रविवार के दिन होनेवाला पुष्य-नक्षत्र।
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पुष  : वि० [सं०√पुष् (पुष्ट करना)+क] १. पोषण प्रदान करनेवाला। २. दिखलाने या प्रदर्शित करनेवाला।
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पुषा  : स्त्री० [सं० पुष+टाप्] कलियारी का पौधा।
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पुषित  : भू० कृ० [सं० पुष्ट] १. पोषित। २. वर्द्धित।
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पुष्कर  : पुं० [सं०√पुष्+क, कित्व, पुष्क√रा (देना)+ क] १. जल। पानी। २. जलाशय। पोखरा। ३. कमल। ४. कलछी के आगे लगी हुई कटोरी। ५. ढोल, मृदंग आदि का मुँह। ६. हाथी की सूँड़ का अगला भाग। ७. आकाश। आसमान। ८. तीर। वाण। ९. तलवार का फल। १॰. म्यान। ११. पिंजड़ा। १२. पद्यकंद। १३. नृत्यकला। १४. सर्प। १५. युद्ध। लड़ाई। १६. अंश। भाग। १७. नशा। मद। १८. भग्नपाद नक्षत्र का एक अशुभ योग जिसकी शांति का विधान किया गया है। १९. पुष्कर-मूल। २॰. कुष्ठौषधि। कुट। २१. एक तरह का ढोल। २२. एक प्रकार का रोग। २३. एक दिग्गज। २४. सारस पक्षी। २५. विष्णु का एक रूप। २६. शिव। २७. भरत के एक पुत्र। २८. कृष्ण के एक पुत्र। २९. एक असुर का नाम। ३॰. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३१. पुराणानुसार ब्रह्मांड के सात लोकों में से एक। ३२. मेघों का एक नायक। ३३. आधुनिक अजमेर के पास का एक प्रसिद्ध तीर्थ।
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पुष्कर-कर्णिका  : स्त्री० [सं० पुष्कर√कर्ण+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] १. स्थलपद्मिनी। २. सूँड़ की नोक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुष्कर-चूड़  : पुं० [सं०] लोलार्क पर्वत पर स्थित दिग्गज का नाम।
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पुष्कर-जटा  : स्त्री० [सं०] १. कुट नामक औषधि। २. कमल की जड़। भसींड।
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पुष्कर-नाड़ी  : स्त्री० [सं० पुष्कर√नड् (नष्ट करना)+ णिच्+अच्—ङीष्] स्थल पर होनेवाला एक तरह का कमल। स्थलपद्मिनी।
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पुष्कर-नाभ  : पुं० [ब० स०, अच्] विष्णु।
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पुष्कर-पर्ण  : पुं० [ष० त०] १. कमल का पत्ता। २. यज्ञ के वेदी बनाने के काम में आनेवाली एक प्रकार की ईंट।
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पुष्कर-प्रिय  : पुं० [ब० स०] मधुमक्षिका। मधुमक्खी।
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पुष्कर-बीज  : पुं० [ष० त०] कमल का बीज। कमल-गट्टा।
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पुष्कर-मुख  : पुं० [ब० स०] सूँड़ का विवर। वि० सूँड़ जैसे मुँहवाला।
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पुष्कर-मूल  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार की वनस्पति की जड़, जिसके संबंध में कहा जाता है कि यह कश्मीर के सरोवरों में उत्पन्न होती है। यह ओषधि आजकल नहीं मिलती, वैद्य लोग इसके स्थान पर कुष्ठ या कुट का व्यवहार करते हैं।
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पुष्कर-व्याघ्र  : पुं० [स० त०] घड़ियाल।
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पुष्कर-शिफा  : स्त्री० [ष० त०] पुष्कर-मूल।
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पुष्कर-सागर  : पुं० [उपमि० स०] पुष्कर-मूल।
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पुष्कर-सारी  : स्त्री० [ष० त०+ङीष्] एक प्राचीन लिपि।
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पुष्कर-स्थपति  : पुं० [ष० त०] शिव।
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पुष्करस्रक् (ज्)  : पुं० [ब० स०] अश्विनीकुमार। स्त्री० कमलों की गूँथी हुई माला।
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पुष्कराक्ष  : वि० [पुष्कर-अक्षि, ब० स०, अच्] कमल- नयन। पुं० विष्णु।
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पुष्कराख्य  : पुं० [सं० पुष्कर-आख्या, ब० स०] सारस पक्षी।
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पुष्कराग्र  : पुं० [सं० पुष्कर-अग्र, ष० त०] सूँड़ का अगला भाग।
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पुष्करावती  : स्त्री० [सं० पुष्कर+मतुप्, वत्व, दीर्घ] एक प्राचीन नदी।
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पुष्करावर्तक  : पुं० [सं० पुष्कर-आ√वृत्त (बरतना)+ णिच्+ण्वुल्—अक] मेघों के एक अधिपति।
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पुष्कराह्व  : पुं० [सं० पुष्कर-आह्वा, ब० स०] सूँड़ का अग्र भाग।
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पुष्करिका  : स्त्री० [सं० पुष्कर+ठन्—इक्+टाप्] लिंग का एक रोग।
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पुष्करिणी  : स्त्री० [सं० पुष्कर+इनि+ङीष्] १. हथिनी। २. छोटा जलाशय। ३. ऐसा जलाशय, जिसमें कमल खिले हों। ४. कमल का पौधा। ५. एक प्राचीन नदी। ६. चाक्षुष मनु की पत्नी। ७. भूमन्यु की पत्नी और ऋचीक की माता।
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पुष्करी (रिन्)  : पुं० [सं० पुष्कर+इनि] हाथी। वि० जिसमें कमल हों।
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पुष्कल  : पुं० [सं०√पुष्+कलच्, कित्व] १. वह भिक्षा जो केवल चार गाँवों से लाई जाती थी। २. अनाज नापने का एक प्राचीन मान, जो ६४ मुट्ठियों के बराबर होता था। ३. शिव। ४. वरुण के एक पुत्र। ५. राम के भाई भरत का एक पुत्र। ६. एक बुद्ध का नाम। ७. एक प्रकार का ढोल। ८. एक प्रकार की वीणा। वि० १. बहुत। अधिक। ढेर-सा। प्रचुर। २. भरा-पूरा परिपूर्ण। ३. श्रेष्ठ। ४. उपस्थित। प्रस्तुत। ५. पवित्र।
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पुष्कलक  : पुं० [सं० पुष्कल+कन्] १. कस्तूरी-मृग। २. अर्गला। सिटकनी। ३. कील।
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पुष्कलावती  : स्त्री० [सं० पुष्कल+मतुप्, वत्व, दीर्घ] पुराणानुसार भरत के पुत्र पुष्कल की बसाई हुई गांधार देश की प्राचीन नगरी।
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पुष्ट  : वि० [सं०√पुष्+क्त] [भाव.पुष्टता, पुष्टि] १. जिसका अच्छी तरह पोषण हुआ हो; फलतः दृढ़ या मजबूत। २. मोटा-ताजा और बलवान। पद—हृष्टपुष्ट (देखें)। ३. जिसमें कोई कचाई या कोर-कसर न हो, और इसी लिए जिसका भरोसा किया जा सके। पक्का। ४. (कथन या बात) जो प्रमाणों से सत्य सिद्ध होती हो, फलतः जिसके ठीक या सत्य होने में कोई संदेह न रह गया हो। ५. सब तरह से पूरा। परिपूर्ण। ६. प्रमुख। मुख्य। ७. दे० ‘पौष्टिक’। पुं० विष्णु।
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पुष्टई  : स्त्री० [सं० पुष्ट+ई (प्रत्य०)] १. पुष्टता। २. वह ओषधि या खाद्य-वस्तु, जो शरीर को पुष्ट करने के लिए खाई जाय।
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पुष्टता  : स्त्री० [सं० पुष्ट+तल्+टाप्] पुष्ट होने की अवस्था या भाव। पुष्टि।
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पुष्टि  : स्त्री० [सं०√पुष+क्तिन] १. पुष्ट अर्थात् दृढ़ या मजबूत होने की अवस्था या भाव। दृढ़ता। मजबूती। २. पुष्ट करने की क्रिया या भाव। पोषण। ३. धन, संतान आदि की होनेवाली वृद्धि। बढ़ती। ४. वह उदाहरण, तर्क या प्रमाण, जिसमें कोई बात पुष्ट की जाय। ५. किसी कही हुई बात का ऐसा अनुमोदन या समर्थन जिससे वह और भी अधिक या पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाय। जैसे—आपकी इस बात से मेरे मत (या संदेह) की पुष्टि होती है। ६. सोलह मातृकाओं में से एक। ७. मंगला, विजया आदि आठ प्रकार की चारपाइयों में से एक। ८. धर्म की पत्नियों में से एक। ९. एक योगिनी का नाम। १॰. असगंध नामक ओषधि। अश्वगंध। ११. दे० ‘पुष्टिमार्ग’।
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पुष्टि-कर  : वि० [ष० त०] १. पुष्ट करनेवाला। २. पुष्टि करनेवाला। ३. बल या वीर्य्यवर्द्धक।
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पुष्टिकरी  : स्त्री० [सं० पुष्टिकर+ङीष्] गंगा। (काशी-खंड)
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पुष्टि-कर्म (र्मन्)  : पुं० [ष० त०] अभ्युदय के लिए किया जानेवाला एक धार्मिक कृत्य।
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पुष्टिका  : स्त्री० [सं० पुष्टि+कन्—टाप्] जल की सीप। सुतही सीपी।
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पुष्टि-काम  : वि० [ब० स०] अभ्युदय का इच्छुक।
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पुष्टि-कारक  : वि० [ष० त०] पुष्टिकर। (दे०)
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पुष्टिद  : वि० [सं० पुष्टि√दा (देना)+क] पुष्टिकर। (दे०)
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पुष्टिदग्धयत्न  : पुं० [सं० दग्ध-यत्न, ष० त०, पुष्टिदग्धयत्न, मध्य० स०] चिकित्सा का एक प्रकार जिसमें आग में जले हुए अंग को आग से सेंक कर या किसी प्रकार का गरम-गरम लेप करके अच्छा किया जाता है।
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पुष्टिदा  : स्त्री० [सं० पुष्टिद+टाप्] १. अश्वगंधा। असगंध। २. वृद्धि नाम की ओषधि।
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पुष्टिपति  : पुं० [सं० ष० त०] अग्नि का एक भेद।
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पुष्टि-मत  : पुं०=पुष्टि-मार्ग।
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पुष्टि-मार्ग  : पुं० [ष० त०] भक्ति-क्षेत्र में, श्री वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैत मन की साधना-व्यवस्था जो श्रीमद्भागवत के ‘पोषणं तदनुग्रहः’ वाले तत्त्व पर आधारित है। इसमें भक्त कर्म-निरपेक्ष होकर भगवान श्रीकृष्ण को आत्म-समर्पण करके ही सुखी रहता है; और अपने कर्मों के फल की कामना नहीं करता।
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पुष्टीकरण  : पुं० [सं० पुष्ट+च्वि, ईत्व√कृ+ल्युट—अन] किसी कही हुई बात या किये हुए काम को ठीक मानते हुए उसकी पुष्टि करना। (कन्फर्मेशन)
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पुष्पंधय  : वि० [सं० पुष्प√धे (पीना)+श, मुम्] मकरंद पान करनेवाला। पुं० भौंरा। भ्रमर।
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पुष्प  : पुं० [सं०√पुष्प (खिलना)+अच्] १. पेड-पौधों के फूल। कुसुम। २. मधु। शहद। ३. पुष्पराग नामक मणि। पुखराज। ४. आँख का फूली नामक रोग। ५. ऋतुमती या रजस्वला स्त्री का रज। ६. घोडों के शरीर पर का एक चिह्न या लक्षण। चित्ती। ७. खिलने और फैलने की क्रिया। विकास। ८. आँख में लगने का एक प्रकार का अंजन या सुरमा। ९. रसौत। १॰. पुष्कर-मूल। ११. लौंग। १२. वाम-मार्गियों की परिभाषा में खाया जानेवाला मांस। गोश्त। १३. पुष्पक विमान।
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पुष्पक  : पुं० [सं० पुष्प+कन् या पुष्प√कै (भासित होना)+क] १. फूल। कुसुम। पुष्प। २. कुबेर का विमान। ३. जड़ाऊ कंगन। ४. रसांजन। रसौत। ५. आँख का फूली नामक रोग। ६. हीरा कसीस। ७. पीतल लोहे आदि की मैल। ८. पीतल। ९. एक प्रकार का बिना विष का साँप। १॰. एक प्राचीन पर्वत। ११. प्रासाद बनाने में एक प्रकार का मंडप। १२. वह खंभा जिसके कोने आठ भागों में बँटें हों।
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पुष्प-करंडक  : पुं० [सं० ब० स०] १. उज्जयिनी का एक प्राचीन शिवोद्यान। २. डलिया, जिसमें तोड़े हुए फूल रखे जाते हैं।
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पुष्प-करंडिनी  : स्त्री० [सं० पुष्प-करंड, ष० त०, इनि+ ङीप्] उज्जयिनी।
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पुष्प-काल  : पुं० [ष० त०] १. वसंतऋतु। २. स्त्रियों का ऋतु काल।
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पुष्प-कासीस  : पुं० [उपमि० स०] एक तरह का कसीस। हीरा कसीस।
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पुष्प-कीट  : पुं० [मध्य० स०] १. फूल का कीड़ा। २. भौंरा।
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पुष्प-कृच्छ्र  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का व्रत जिसमें केवल फूलों का क्वाथ पीकर निर्वाह किया जाता है।
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पुष्प-केतन  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-केतु  : पुं० [ब० स०] १. पुष्पांजन। २. कामदेव। ३. बुद्ध।
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पुष्प-गंडिका  : स्त्री० [ष० त०] लास्य के दस भेदों में से एक।
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पुष्प-गंधा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] जूही।
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पुष्प-गवेधुका  : स्त्री० [स० त०] नागवला।
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पुष्प-घातक  : पुं० [ष० त०] बाँस।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुष्प-चयन  : पुं० [ष० त०] पुष्प तोड़ना। फूल चुनना।
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पुष्प-चाप  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-चामर  : पुं० [ब० स०] १. दौना। २. केवड़ा।
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पुष्पज  : वि० [सं० पुष्प√जन् (उत्पन्न होना)+ड] फूल से उत्पन्न होनेवाला। पुं० फूल का मकरंद या रस।
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पुष्पजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पुष्प√जीव् (जीना)+ णिनि] माली।
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पुष्प-दंड  : पुं० [ष० त०] पेड़-पौधों की वह डंडी जिसमें फूल या फल लगते हैं।
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पुष्प-दंत  : पुं० [ब० स०] १. वायुकोण का दिग्गज। २. प्राचीन भारत में एक प्रकार का नगरद्वार। ३. शिव का अनुचर एक गंधर्व, जिसका रचा हुआ महिम्नस्तोत्र कहा जाता है। ४. एक विद्याधर। ५. कार्तिकेय का एक अनुचर।
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पुष्पद  : वि० [सं० पुष्प√दा (देना)+क] पुष्प या फूल देनेवाला। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पुष्पध  : पुं० [सं० पुष्प√धा (धारण करना)+क] व्रात्य ब्राह्मण से उत्पन्न एक जाति।
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पुष्पधनु  : पुं०=पुष्प-धन्वा।
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पुष्प-धनुस्  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-धन्वा (न्यन्)  : पुं० [ब० स०] १. कामदेव। २. वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध जो रससिंदूर, सीसे अभ्रक और वंग में धतूरा भाँग जेठी मधु आदि मिलाने से बनता है और जो कामोद्दीपक तथा शक्तिवर्द्धक माना जाता है।
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पुष्प-ध्वज  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्पनिक्ष  : पुं० [सं० पुष्प√निक्ष् (चूसना)+अण्] भ्रमर। भौंरा।
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पुष्प-निर्यास  : पुं० [ष० त०] फूलों का रस। मकरंद।
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पुष्प-नेत्र  : पुं० [मध्य० स०] वस्ति की पिचकारी की सलाई।
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पुष्प-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. फूल की पँखड़ी। २. दे० ‘पत्र-पुष्प’। ३. एक प्रकार का बाण।
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पुष्प-पत्री (त्तिन्)  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-पथ  : पुं० [ष० त०] स्त्रियों के रज के निकलने का मार्ग अर्थात् भग। योनि।
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पुष्प-पदवी  : स्त्री० [ष० त०] भग। योनि।
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पुष्प-पांडु  : पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार साँप।
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पुष्प-पिंड  : पुं० [ब० स०]=पिंड पुष्प (अशोक वृक्ष)।
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पुष्प-पुट  : पुं० [ष० त०] १. फूल की पंखड़ियों का वह आधार, जो कटोरी के आकार का होता है। २. हाथ का चंगुल जो उक्त आकार का होता है।
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पुष्प-पुर  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन पाटलिपुत्र। आधुनिक पटना का एक नाम।
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पुष्प-पेशल  : वि० [उपमि० स०] फूल की तरह सुकुमार।
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पुष्प-प्रचाय  : पुं० [सं० पुष्प-प्र√चि (चुनना)+घञ्] फूलों का चुना या तोड़ा जाना।
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पुष्प-प्रस्तार  : पुं० [ष० त०] फूलों का बिछावन। पुष्पशय्या।
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पुष्प-फल  : पुं० [ब० स०] १. कुम्हड़ा। २. कैथ। ३. अर्जुन वृक्ष।
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पुष्प-बाण  : पुं० [ब० स०] १. कामदेव। २. कुश द्वीप का एक पर्वत। ३. एक दैत्य।
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पुष्प-भद्र  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत की वास्तु-रचना में, एक प्रकार का मंडप जिसमें ६२ खंभे होते थे।
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पुष्प-भद्रक  : पुं० [ब० स०+कप्] देवताओं का एक उपवन।
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पुष्पभद्रा  : स्त्री० [सं० पुष्पभद्र+टाप्] पुराणानुसार मलय पर्वत के पश्चिम की एक नदी।
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पुष्प-भव  : पुं० [ष० त०] फूलों का रस। मकरंद।
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पुष्प-भाजन  : पुं० [ष० त०] तोड़े हुए फूल रखने का पात्र।
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पुष्प-भूति  : पुं० [ब० स०] १. सम्राट हर्षवर्द्धन के एक पूर्व पुरुष, जो शैव थे। २. ईसवीं सातवीं शताब्दी के कांबोज (आधुनिक काबुल) के एक हिन्दू राजा।
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पुष्प-मंजरिका  : स्त्री० [ष० त०] १. नील कमलिनी। २. फूल की मंजरी।
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पुष्प-मंजरी  : स्त्री० [ष० त०] १. फूल का मंजरी। २. घृतकरंज।
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पुष्प-मास  : पुं० [मध्य० स०] १. चैत्रमास। चैत का महीना। २. बसंत काल।
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पुष्पमित्र  : पुं० दे० ‘पुष्पमित्र’ (शुंग वंश के राजा का नाम)।
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पुष्प-मृत्यु  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का नरकट। बड़ा नरसल। देव नल।
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पुष्प-मेघ  : पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार फूलों की वर्षा करनेवाला बादल।
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पुष्प-रक्त  : पुं० [ब० स०] सूर्य्यमणि नामक पौधा और उसका फूल।
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पुष्प-रचन  : पुं० [ष० त०] फूलों की माला गूँथने, गुच्छे आदि बनाने की क्रिया या भाव।
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पुष्प-रज (स्)  : पुं० [ष० त०] पराग।
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पुष्प-रथ  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का रथ, जिस पर चढ़कर लोग हवा खाने निकलते थे।
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पुष्प-रस  : पुं० [ष० त०] पराग।
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पुष्परसाह्वय  : पुं० [पुष्परस-आह्वय, ब० स०] मधु। शहद।
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पुष्प-राग  : पुं० [ब० स०] पुखराज नामक रत्न।
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पुष्पराज  : पुं० [सं० पुष्प√राज् (शोभित होना)+अच्] पुखराज या पुष्पराग नामक रत्न।
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पुष्प-रेणु  : पुं० [ष० त०] फूल की धूल। पुष्परज।
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पुष्प-रोचन  : पुं० [ब० स०] नाग-केसर।
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पुष्पलक  : पुं० [सं० पुष्पकलंक] १. कस्तूरी मृग। २. बौद्ध भिक्षु।
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पुष्पलाव  : पुं० [सं० पुष्प√लू (काटना)+अण्] [स्त्री० पुष्पलावी] १. वह जो फूल चुनता हो। २. माली।
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पुष्पलावन  : पुं० [सं० पुष्प√लू+णिच्+ल्यु—अन] उत्तर दिशा का एक देश। (वृहत्संहिता)
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पुष्पलिक्ष  : पुं० [सं० पुष्प√लिह् (स्वाद लेना)+क्स] भ्रमर। भौंरा।
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पुष्पलिट् (ह्)  : पुं० [सं० पुष्प√लिह्+क्विप्] भौंरा।
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पुष्प-लिपि  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार की पुरानी लिपि। (ललित विस्तर)
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पुष्पवती  : स्त्री० [सं० पुष्प+मतुप्, वत्व+ङीष्] १. ऋतुमती या रजस्वला। २. एक तीर्थ (महा०)
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पुष्प-वर्ग  : पुं० [ष० त०] वैद्यक में अगस्त्य, कचनार, सेमल आदि वृक्षों के फूलों का एक विशिष्ट समाहार।
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पुष्पवर्त्म (न्)  : पुं० [सं०] द्रुपद।
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पुष्प-वर्ष  : पुं० [मध्य० स०] १. पुराणानुसार एक वर्षा पर्वत का नाम। २. [ष० त०] फूलों की वर्षा। पुष्पवर्षण।
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पुष्प-वर्षण  : स्त्री० [ष० त०] फूलों का बरसना। पुष्पवृष्टि।
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पुष्प-वर्षा  : स्त्री० [ष० त०] बहुत से फूलों की ऊपर से होनेवाली या की जानेवाली वर्षा।
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पुष्प-वसंत  : पुं० [उपमि० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पुष्प-वाटिका  : स्त्री० [ष० त०] ऐसा छोटा उद्यान जिसमें फूलोंवाले अनेक पौधे तथा वृक्ष हों। फुलवारी।
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पुष्प-वाटी  : स्त्री० [ष० त०] पुष्पवाटिका। (दे०)
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पुष्प-वाण  : पुं० [ष० त०] १. फूलों का वाण। २. कामदेव। ३. कुशद्वीप के एक राजा। ४. एक दैत्य।
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पुष्प-वाहिनी  : स्त्री० [ष० त०] पुराणानुसार एक प्राचीन नदी।
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पुष्प-विचित्रा  : स्त्री० [उपमि० स०] एक प्रकार का वृत्त।
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पुष्प-विशिख  : पुं० [ब० स०] कामदेव। २. कुशद्वीप का एक पर्वत। ३. एक राक्षस।
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पुष्प-वृष्टि  : स्त्री० [ष० त०] फूलों का बरसना या बरसाया जाना। फूलों की वर्षा।
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पुष्प-वेणी  : स्त्री० [ष० त०] फूलों को गूँथकर बनाई हुई माला।
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पुष्प-शकटिका  : स्त्री [ष० त०] आकाशवाणी।
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पुष्प-शकटी  : स्त्री०=पुष्प-शकटिक।
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पुष्प-शकली (लिन्)  : पुं० [सं० पुष्पशकल, ष० त०,+इनि] एक तरह का विषहीन साँप। (सुश्रुत)
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पुष्प-शय्या  : स्त्री० [मध्य० स०] वह शय्या जिस पर फूल बिछे हों। फूलों का बिछौना।
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पुष्प-शर  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शरासन  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शाको  : पुं० [मध्य० स०] ऐसे फूल जिनकी तरकारी बनाई जाती हो। जैसे—अगस्त, कचनार, खैर, नीम, रासना, सहिंजन, सेमल आदि।
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पुष्प-शिलीमुख  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-शून्य  : वि० [तृ० त०] जिसमें पुष्प न हों। बिना फूल का। पुं० गूलर।
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पुष्प-शेखर  : पुं० [ष० त०] फूलों की माला।
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पुष्प-श्रेणी  : स्त्री० [ब० स०] मूसाकानी नामक जमीन पर फैलनेवाला क्षुप।
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पुष्प-समय  : पुं० [ष० त०] वसंत काल
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पुष्प-साधारण  : पुं० [ब० स०] वसंत काल।
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पुष्प-सायक  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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पुष्प-सार  : पुं० [ष० त०] १. फूल या मधु का रस। २. फूलों का इत्र।
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पुष्प-सारा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] तुलसी।
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पुष्प-सिता  : स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह की चीनी।
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पुष्प-सूत्र  : पुं० [मध्य० स०] गोभिल के सूत्र ग्रन्थ का नाम।
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पुष्प-सौरभा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] कलिहारी का पौधा। करियारी।
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पुष्प-स्नान  : पुं० दे० ‘पुष्पस्नान’।
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पुष्प-स्नेह  : पुं० [ष० त०] १. मकरंद। २. मधु शहद।
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पुष्प-स्वेद  : पुं० [ष० त०] १. मकरंद २. मधु।
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पुष्प-हास  : पुं० [ष० त०] १. फूलों का खिलना। २. विष्णु।
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पुष्पहासा  : स्त्री० [सं० पुष्पहास+टाप्] रजस्वला स्त्री। ऋतुमती स्त्री।
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पुष्पहीन  : वि० [ब० स०] [स्त्री० पुष्पहीना] (पेड़) जिसमें फूल न लगते हों। पुं० गूलर का वृक्ष।
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पुष्पहीना  : वि० स्त्री० [सं० पुष्पहीन+टाप्] १. (स्त्री) जिसे रजोदर्शन न हो। २. बाँझ। वंध्या। ३. (स्त्री) जिसकी बच्चे पैदा करने की अवस्था बीत चुकी हो।
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पुष्पांक  : पुं० [पुष्प-अंक, ष० त०] माधवी लता।
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पुष्पांजन  : पुं० [पुष्प-अंजन, ष० त०] वैद्यक में एक प्रकार का अंजन जो पीतल के हरे कसाव में कुछ औषधियों को मिलाकर बनाया जाता है।
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पुष्पांजलि  : स्त्री० [पुष्प-अंजलि, ष० त०] फूलों से भरी हुई अंजलि जो किसी देवता या महापुरुष को अर्पित की जाती है।
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पुष्पांबुज  : पुं० [सं० पुष्प-अंबु, ष० त०, पुष्पांबु√जन् (उत्पन्न होना)+ड] मकरंद।
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पुष्पांभस्  : पुं० [ब० स०] एक प्राचीन तीर्थ।
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पुष्पा  : स्त्री० [सं०√पुष्प+अच्+टाप्] आधुनिक चम्पारन का प्राचीन नाम जहाँ किसी जमाने में अंगदेश की राजधानी थी।
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पुष्पाकर  : पुं० [पुष्प-आकार, ष० त०] वसंत ऋतु।
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पुष्पागम  : पुं० [पुष्प-आगम, ब० स०] वसन्त ऋतु।
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पुष्पाजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पुष्प+आ√जीव्+णिनि] माली।
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पुष्पानन  : पुं० [पुष्प-आनन, ब० स०] एक तरह की शराब।
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पुष्पापीड  : पुं० [पुष्प-आपीड़, ष० त०] १. सिर पर धारण की जानेवाली फूलों की माला आदि। २. फूलों का मुकुट या सेहरा।
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पुष्पाभिषेक  : पुं० [पुष्प-अभिषेक, तृ० त०] दे० ‘पुण्य-स्नान’।
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पुष्पायुध  : पुं० [पुष्प-आयुध, ब० स०] वह जिसका फूल अस्त्र हो; कामदेव।
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पुष्पाराम  : पुं० [पुष्प-आराम, ष० त०] फुलवारी। पुष्पवाटिका।
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पुष्पावचय  : पुं० [पुष्प-अवचय, ष० त०] फूल चुनना।
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पुष्पावचायी (यिन्)  : पुं० [सं० पुष्प+अव√चि (चुनना) +णिनि] माली।
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पुष्पासव  : पुं० [पुष्प-आसव, मध्य० स०] १. मधु। शहद। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के फूलों को सड़ाकर बनाई जानेवाली एक तरह की शराब।
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पुष्पासार  : पुं० [पुष्प-आसार, ष० त०] फूलों की वर्षा।
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पुष्पास्तरक  : पुं० [पुष्प-आस्तरक, ष० त०] १. फूल बिखेरनेवाला। २. फूलों का बिछौना तैयार करनेवाला।
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पुष्पास्तरण  : पुं० [पुष्प-आस्तरण, ष० त०] १. फूल बिखेरने की क्रिया या भाव। २. शय्या पर फूल बिछाने का काम।
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पुष्पास्त्र  : पुं० [पुष्प-अस्त्र, ब० स०] पुष्पायुध (कामदेव)।
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पुष्पाह्वा  : स्त्री० [सं० पुष्प+आ√ह्वे+क+टाप्, ब० स०, प्] सौंफ।
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पुष्पिका  : स्त्री० [सं०√पुष्प+ण्वुल्—अक+टाप्, इत्व] १. दाँत की मैल। २. लिंग की मैल। ३. अधिकतर प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों या उनके अध्यायों के अन्त में वह वाक्य या पद्य जिससे कहे हुए प्रसंग की समाप्ति सूचित होती है और जिसमें प्रायः लेखक का नाम और रचना-संवत् भी रहता है।
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पुष्पिणी  : स्त्री० [सं० पुष्प+इनि+ङीष्] रजस्वला स्त्री०। ऋतुमती स्त्री।
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पुष्पित  : वि० [सं० पुष्प+इतच्] [स्त्री० पुष्पिता] १. (वृक्ष या पौधा) जिसमें फूल निकले हों। पुष्पों से युक्त। फूलों से लदा हुआ। २. उन्नत और समृद्ध। पुं० १. कुशद्वीप का एक पर्वत। २. एक बुद्ध का नाम।
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पुष्पिता  : वि० स्त्री० [सं० पुष्पित+टाप्] रजस्वला (स्त्री)।
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पुष्पिताग्रा  : स्त्री० [सं० पुष्पित-अग्र, ब० स०+टाप्] एक प्रकार का अर्द्धसम वृत्त जिसके पहले और तीसरे चरणों में दो नगण, एक रगण और एक यगण होता है तथा दूसरे और चौथे चरणों में एक नगण, दो जगण, एक रगण और गुरु होता है।
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पुष्पी (ष्पिन्)  : वि० [सं० पुष्प+इनि] (पौधा या वृक्ष) जिसमें फूल लगें हों।
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पुष्पेषु  : पुं० [पुष्प-इषु, ब० स०] कामदेव।
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पुष्पोत्कटा  : स्त्री० [पुष्प-उत्कटा, तृ० त०] रावण, कुंभकरण आदि राक्षसों की माता जो सुमाली राक्षस की कन्या थी।
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पुष्पोद्गम  : पुं० [पुष्प-उदगम, ष० त०] पौधे, वृक्षों आदि में फूल निकलना आरंभ होना।
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पुष्पोद्यान  : पुं० [पुष्प-उद्यान, ष० त०] फुलवारी। पुष्पवाटिका। बगीचा।
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पुष्पोपजीवी (दिन्)  : पुं० [सं० पुष्प+उप√जीव् (जीना)+णिनि] माली।
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पुष्य  : पुं० [सं०√पुष् (पुष्टि)+क्यप्] १. पुष्टि। पोषण। २. पौष का महीना। ३. सत्ताईसे नक्षत्रों में से ८वाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे हैं तथा जिसकी आकृति वाण की सी कही गई है, और जो अनेक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। इसे ‘तिष्य’ और ‘सिध्य’ भी कहते हैं।
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पुष्प-नेत्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०, अच,+टाप्] ऐसी रात्रि जिसमें पुष्य नक्षत्र दिखाई पड़ता हो।
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पुष्यमित्र  : पुं० [सं०] मगध में मौर्य शासन समाप्त करके शुंगवंशीय राज्य स्थापित करनेवाला एक प्रतापी राजा।
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पुष्यरथ  : पुं०=पुष्प-रथ।
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पुष्यलक  : पुं० [सं०√पुष्+कि, पुषि√अल् (पर्याप्ति)+ अच्+क] १. कस्तूरी मृग। २. वह जैन साधु जो हाथ में चँवर लिए रहता हो। ३. बड़ी और मोटी कील या खूँटा।
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पुष्य-स्नान  : पुं० [स० त०] राजाओं या राज्य के विध्नों की शांति के लिए एक विशिष्ट स्नान जो पूस के महीने में चन्द्रमा के पुष्य नक्षत्र में होने पर किया जाता है।
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पुष्याभिषेक  : पुं०=पुष्य-स्नान।
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पुष्यार्क  : पुं० [सं० पुष्य-अर्क, स० त०] १. फलित ज्योतिष में, एक योग जो कर्क की संक्राति में सूर्य के पुष्य नक्षत्र में होने पर होता है। यह प्रायः श्रावण में दस दिन के लगभग रहता है। २. रविवार के दिन होनेवाला पुष्य-नक्षत्र।
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