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बाई  : स्त्री० [सं० वायु] बात, जो त्रिदोषों में से एक है। वि० दे० बात। क्रि० प्र०—आना।—उतरना।—चढ़ना। पद—बाई की झोंक=(क) वायु का प्रकोप। (ख) किसी मनोवेग का बहुत ही तीव्र या प्रबल आवेग। मुहावरा—बाई चढ़ना=(क) वायु का प्रकोप होना। (ख) किसी प्रकार का बहुत ही प्रबल या मनोवेग उत्पन्न होना। बाई पचाना=(क) वायु का प्रकोप शान्त होना (ख) उग्र या तीव्र मनोवेग शान्त होना। (ग) व्यर्थ का घमंड टूटना या नष्ट होना। (किसी की) बाई पचाना=अभिमान नष्ट करना। घमंड तोड़ना। स्त्री० [हिं० बावा] १. स्त्रियों के लिए एक आदर सूचक शब्द। जैसे—लक्ष्मी बाई। २. उत्तर भारत में प्रायः नाचने-गानेवाली वेश्याओं के साथ लगनेवाला शब्द। जैसे—जानकी बाई, मोती बाई। पद—बाईजी=नाचने-गानेवाली वेश्या।
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बाईस  : वि० [सं० द्वाविंशति, प्रा० बाइसा] जो गिनती में बीस से दो अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो अंकों में इस प्रकार (२२) लिखी जाती है।
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बाईसवाँ  : वि० [हिं० बाईस+वाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० बाईसवी] क्रम के विचार से बाईस के स्थान पर पड़नेवाला।
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बाईसी  : स्त्री० [हिं० बाईस+ई (प्रत्यय)] १. एक ही प्रकार की बाईस वस्तुओं का समूह। जैसे—खटमल बाईसी। २. मुगल सम्राटों के काल में वह सेना जो उसके बाई सूत्रों के सैनिकों से बनायी जाती थी। ३. बाईस हजार सैनिकों की सेना। मुहावरा—(किसी पर) बाईसी टूटना=पूरी शक्ति से आक्रमण होना।
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