शब्द का अर्थ
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मत्स्य :
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पुं० [सं०√मद्+स्यन्] १. मछली। २. विष्णु के दस अवतारों में से पहला अवतार जो मछली के रूप में हुआ था। ३. ज्योतिष में मीन नामक राशि। ४. नारायण। ५. प्राचीन विराट् देश का दूसरा नाम। ६. पुराणानुसार सुनहले रंग की एक प्रकार की शिला जिसका पूजन करने से मुक्ति होना माना जाता है। ७. छप्पय छंद के २३वें भेद का नाम। ८. दे० ‘मत्स्य-पुराण’। |
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मत्स्य-गंधा :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] १. सत्यवती (व्यास की माता। २. जल-पीपल। |
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मत्स्यजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० मत्स्य√जीव (जीना)+णिनि, उप० स०] मछुआ। धीवर। |
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मत्स्य-द्वादशी :
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स्त्री० [मध्य० स०] अगहन सुदी द्वादसी। |
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मत्स्य-नारी :
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स्त्री० [कर्म० स०] १. वह जो आकृति में आधी मछली हो और आधी नारी। विशेषतः जिसका धड़ से ऊपरी भाग नारी का हो और शेष भाग मछली है। (एक प्रकार का काल्पनिक प्राणी) २. सत्यवती। |
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मत्स्यनाशक :
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पुं० [ष० त०] कुरर पक्षी। |
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मत्स्यनी :
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स्त्री० [सं०] देशों की पाँच प्रकार की सीमाओं में से वह सीमा जो नदी या जलाशय आदि के द्वारा निर्धारित हो। |
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मत्स्य-न्याय :
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पुं० [ष० त०] १. यह मान्यता कि छोटों को बड़े अथवा दुर्बलों को सबल उसी प्रकार खा जाते हैं या नष्ट कर देते हैं जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं। २. अराजकों या आततायियों का राज्य। |
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मत्स्य-पालन :
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पुं० [ष० त०] मछलियाँ पालकर उनकी पैदावार बढ़ाने का काम (पिसीकल्चर)। |
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मत्स्य-पुराण :
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पुं० [मध्य० स०] अठारह पुराणों में से एक पुराण जो महापुराण माना जाता है। |
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मत्स्य-बंध :
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पुं [ष० त०] मछलियाँ पकड़नेवाला। मछुआ। धीवर। |
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मत्स्य-बंधन :
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पुं० [ष० त०] मछली पकड़ने की बंशी। कँटिया। |
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मत्स्य-मुद्रा :
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स्त्री० [मध्य० स०] तांत्रिकों की एक मुद्रा। |
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मत्स्य-राज :
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पुं० [ष० त०] १. रोहू मछली। रोहित। २. विराट्-नरेश। |
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मत्स्य-वेधनी :
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स्त्री० [ष० त०] मछली फँसाने की बंसी। कँटिया। |
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मत्स्य-संवर्धन :
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पुं० [ष० त०] मत्स्य-पालन। |
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मत्स्याक्षी :
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स्त्री० [मत्स्य-अक्षि, ब० स०,+षच्,+ङीष्] १. सोम लता। ब्राह्मी बूटी। ३. गाँडर। दूब। |
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मत्स्यादिनी :
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स्त्री० [मत्स्य-आदिनी, सुप्सुपा स०] १. जल पीपल। ३. दे० ‘मत्स्याक्षी’। |
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मत्स्यावतार :
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पुं० [मत्स्य-अवतार, ष० त०] भगवान् विष्णु का पहला अवतार जिसमें उन्होंने मत्स्य का रूप धारण किया था। |
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मत्स्याशन :
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वि० [सं० मत्स्य√अश् (खाना)+ल्यु-अन] मछली खानेवाला। पुं० मछरंग नामक पक्षी। |
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मत्स्यासन :
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पुं० [मत्स्य-आसन, मध्य० स०, ष० त०] तांत्रिकों के अनुसार योग का एक आसन। |
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मत्स्येन्द्रनाथ :
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पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध हठयोगी महात्मा जो गोरखनाथ के गुरु थे। |
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मत्स्योदरी :
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स्त्री० [मत्स्य-उदरी, ब० स०,+ङीष्] सत्यवती। मत्स्यगंधा। |
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मत्स्योपजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० मत्स्य,+उप√जीव् (जीना)+णिनि] मछुआ धीवर। |
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