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मार  : पुं० [सं०√मृ (मरना)+घञ्] १. कामदेव। २. जहर। विष। ३. धतूरा। ४. बाधा। विघ्न। स्त्री० [हिं० मारना] १. मारने अर्थात् चोट पहुँचाने या पीटने की क्रिया या भाव। जैसे—मार के आगे भूत भागता है। पद—मार-काट, मारधाड़, मार-पीट, मार-मार। (दे० स्वतन्त्र पद)। क्रि० प्र०—खाना।—पड़ना।—पिटना। २. किसी प्रकार अथवा किसी रूप में होनेवाला आघात या प्रहार। कोई ऐसा काम या बात जो कष्ट पहुँचानेवाला अथवा नाशया हानि करनेवाला हो। जैसे—गरीबी कीमार, रोटी की मार। उदाहरण—बड़ी मार कबीर की चित्त से दिया उतार।—कबीर। विशेष—ऐसा अवसरों पर मार का आशय यही होती है कि उसके फलस्वरुप मनुष्य की दशा बहुत ही दीन-हीन तथा शोचनीय हो जाती है अक्ल की मार, शामत की मार सरीखे प्र्योगों में मार का आशय यही होती है कि चाहे किसी चीज या बात के अभाव से हो, चाहे आधिक्य से मनुष्य की दशा बहुत बुरी हो जाती है। गरीबी की मार में गरीबों के आधिक्य का भाव है, और रोटी की मार मे रोटी के अबाव का ईश्वर या खुदा की मार में कोप या प्रकोप का भाव प्रधान है। ३. उतनी दूरी जहाँ तक कोई चलाया या फेंका हुआ अस्त्र जाकर पहुंचता और अपना काम करता या प्रभाव दिखलाता है। (रेंज) जैसे—इस बदूक की मार एक हजार गज है। ४. निशाना। लक्ष्य। ५. दे० मार-पीट। जैसे—गाँववालों में अकसर मारपीट होती रहती है। ६. किसी प्रकार का प्रभाव या फल नष्ट करनेवाली चीज या बात। मारक तत्त्व। जैसे—खुजली की मार घी हैं अर्थात् घी से खुजली दब या मिट जाती है। अव्य० १. बहुत अधिकता से। अत्यन्त। जैसे—तुमने तो सबेरे से मार आफत मचा रखी हैं। स्त्री० [देश] काली मिट्टी की जमीन। स्त्री०=माला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारकंडेय  : पुं० =मार्कंडेय।
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मारक  : वि० [सं०√मृ+णिच्+ण्वुल्-अक] १. जान से मार डालनेवाला। २. पीड़क। ३. प्रभाव, वेग विष आदि को दबाने या नष्ट करनेवाला। (एन्टीडोट)।
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मारका  : पुं० [अं० मार्क] १. चिन्ह। निशान। २. किसी प्रकार की पहचान के लिए लगाया जानेवाला चिन्ह या निशान। ३. वह विशिष्ट चिन्ह या निशान जो बड़े व्यापारी अपने बनवाये हुए पदार्थों पर उसकी विशिष्टता की पहचान के लिए लगाते हैं। छाप। पुं० [अ० मारिकः] १. युद्ध। लड़ाई। कोई बहुत बड़ी और महत्त्व पूर्ण घटना। ३. कोई बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण काम। पद—मारके का=बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण।
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मार-काट  : स्त्री० [हिं० मारना+काटना] १. एक-दूसरे को मारने और काटने की क्रिया या भाव। २. युद्ध या लड़ाई जिसमें आदमी मारे और काटे जाते हैं।
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मारकीन  : स्त्री० [अं० नैनकिन्] एक तरह का साधारण कपड़ा।
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मारकुवा  : वि० =मरकहा (मारनेवाला)।
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मारकेश  : पुं० [सं० मारक-ईश, कर्म० स०] किसी की जन्म-कुंडली में पड़नेवाला ग्रहों का एक योग जो व्यक्ति के लिए घातक होता है। (ज्यों०)।
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मारखोर  : पुं० [फा०] बहुत बड़े सीगोंवाली एक प्रकार की बहुत सुन्दर जंगली बकरी जो काश्मीर और अफगानिस्तान में होती है। इसके नर के शरीर से बहुत तेज गन्ध निकलती है।
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मारग  : पुं० [सं० मार्ग] मार्ग। रास्ता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा—मारग मारना=किसी राह चलते आदमी को लूटना। मारग लगना या लेना=(क) रास्ते पर चलना। (ख) चले जाना। दूर हो जाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मारगन  : पुं० [सं० मार्गण] १. बाण। तीर। २. भिक्षुक। याचक। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मारगी  : स्त्री० [सं० मार्ग] राह चलतों को लूटने की क्रिया। बटमारी। उदाहरण—चोरी कराँ न मारगी।—मीराँ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारजन  : पुं० =मार्जन।
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मारजनी  : स्त्री०=मार्जनी।
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मारजार  : पुं० =मार्जार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारजित्  : पुं० [सं० मार√जि (जीतना)+क्विप्, तुक्] १. वह जिसने कामदेव को जीत लिया हो। २. शिव। ३. बुद्ध।
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मारण  : पुं० [सं०√मृ (मारना)+णिच्+ल्युन—अन] १. मार डालने अर्थात प्राण लेने की क्रिया या भाव। २. वह तांत्रिक प्रयोग जो किसी के प्राण लेने या मार डालने के उद्देश्य से किया जाता है।
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मारतंड  : पुं० =मार्तड।
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मारते खाँ  : पुं० [हिं० मारना+फा० खान] वह जो अपने बल के गर्व मे दूसरों को जरा-सी बात पर मार बैठता हो।
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मारतौल  : पुं० [पुं० मार्टेली] एक प्रकार का बड़ा हथौड़ा।
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मार-धाड़  : स्त्री० [हिं०] १. बहुत से लोगों के तेजी से आगे बढ़कर किसी पर आक्रमण करना। जैसे—मुगल सेना मार-धाड़ करती हुई बढ़ती चली आ रही थी। २. गड़बड़ी की वह स्थिति जिसमें लोग बहुत जल्दी अपने काम मे या इधर-उधर दौड़ने-धूपने मे लगे हों।
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मारना  : स० [सं० मारण] १. ऐसा आघात या क्रिया करना जिससे किसी के प्राण निकल जायँ। आयु या जीवन का अंत करना। जैसे—(क) यह दवा कई तरह के जहरीले कीड़े मारती है। (ख) इसने कल एक सांप मारा था। मुहावरा—(किसी को) मार गिराना=आघात या प्रहार करके प्राण लेकर अथवा मृतप्राय करके जमीन पर गिराना जैसे—सिपाहियों ने चार डाकू मार गिराये। संयो० क्रि०—डालना।—देना। २. क्रोध में आकर दंड देने या बदला चुकाने के लिए किसी के शरीर पर थप्पड़, मुक्का, लात आदि से या छड़ी, बेंत आदि से बार-बार आघात या प्रहार करना। जैसे—उसने नौकर को मारते-मारते बेहोश कर दिया। पद—मारना-पीटना। ३. कोई चीज किसी दूसरी चीज पर इस प्रकार जोर से गिराना या फेकना कि वह जाकर टकरा जायँ और स्वयं क्षतिग्रस्त हो अथवा दूसरी चीज को क्षतिग्रस्त करे। जैसे—चिड़ियों को ढेले-पत्थर मारना। मुहावरा—किसी के दे मारना=उठाकर जोर से गिराना, पटकना या फेंकना। उदाहरण—मेरा दिल लेके शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा।—कोई शायर। ४. साधारण रूप से कोई चीज किसी दूसरी चीज पर पटकना। जैसे—यही बात पक्की रही, लाओ मारो हाथ। (अर्थात् पक्का वचन दो) ५. आखेट में किसी जीव या जंतु के प्राण लेना। शिकार करना। जैसे—कबूतर, मछली, शेर या हिरन मारना। ६. जीव-जंतुओं के अपने किसी अंग से किसी पर आघात या प्रहार करना अथवा घाव या जख्म करना। जैसे—बर्रे या बिच्छू डंक मारता है, घोड़ा लात मारता है, बैल सींग मारता है, कुत्ता दाँत मारता है आदि। ७. किसी क्रिया से किसी चीज का आगे बढ़ा हुआ अंश या अंग काटना, निकालना या मोड़ना। जैसे—(क) बढ़ई ने रंदे से इसका किनारा मार दिया है। (ख) तुमने कागज काटते-काटते कैंची (या चाकू) की धार मार दी। ८. किसी प्रकार का परिणाम या फल उत्पन्न करने के लिए कोई अंग इधर-उधर या ऊपर-नीचे हिलाना। जैसे—(क) चिड़ियों के उड़ने के लिए पर मारना। (ख) बंधन से छूटने के लिए हाथ-पैर मारना अर्थात् यथा-साध्य प्रयत्न करना। ९. किसी पदार्थ के तत्त्व का सार-भाग कम या नष्ट करके उसे निरर्धक या निर्बल करना। जैसे—यह दवा कई तरह के जहर मारती है। १॰. वैद्यक में रासायनिक प्रक्रियाओं से धातु आदि का भस्म तैयार करना। जैसे—पारा मारना, सोना मारना। ११. किसी को किसी प्रकार से या किसी रूप में अक्रिय, अयोग्य या निकम्मा करके किसी काम या बात के योग्य न रहने देना। बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करना। जैसे—(क) हमें तो रात-दिन की चिंता ने मारा है। (ख) उन्हें तो ऐयाशी (या शराबखोरी) ने मारा है। १२. बहुत अधिक मानसिक या शारीरिक कष्ट देकर तंग, दुःखी या परेशान करना। (प्रायः किसी दूसरी क्रिया के साथ संयोज्य क्रिया के रूप में) जैसे—(क) इस लड़के की नायालकी ने तो हमें जला मारा (या सता मारा) है। (ख) आज तो तुमने नौकर को दिन भर दौड़ा मारा। पद—किसी चीज या बात का मारा=किसी चीज या बात के कारण बहुत अधिक त्रस्त या दुःखी। जैसे—आफत का मारा, भूख का मारा, रोटियों का मारा आदि। १३. द्वेष या वैरमूलक लड़ाई-झगड़ा, विवाद आदि के प्रसंग में विपक्षी या विरोधी को परास्त करते हुए नीचा दिखाना या वश में करना। जैसे—इस चुनाव में इन्होंने उसे ऐसा मारा है कि अब वह कभी इनके मुकाबले में खड़ा होने का नाम न लेगा। पद—वह मारा=बस अब परास्त करके वश में कर लिया। पूरी तरह से जीत लिया और हरा दिया। उदाहरण—वह मारा अब कहाँ जाती है। आज का शिकार तो बहुत नफीस है।—राधाकृष्णदास। १४. खेल, प्रतियोगिता आदि के प्रसंग में विपक्षी को हराकर विजय प्राप्त करना। (स्वयं खेल के सम्बन्ध में भी और खेलाड़ी के सम्बन्ध में भी। जैसे—(क) कुश्ती या बाजी मारना=जीतना। (ख) एक पहलवान को दूसरे पहलवान का मारना=पछाड़ना। १५. गंजीफे, ताश, शतरंज आदि खेलों में विपक्षी के पत्ते, गोट आदि जीतना। जैसे—(क) प्यादे से हाथी मारना। (ख) दहले से नहला मारना। १६. किसी प्रकार का मानसिक या शारीरिक वेग दबाना या रोकना। जैसे—(क) मन मारना=मन में होनेवाली इच्छाएँ दबाना। (ख) प्यास या भूख मारना=प्यास या भूख लगने पर भी पानी भी न पीना या भोजन न करना। उदाहरण—रिस उर मारि रंक जिमि राजा।—तुलसी। १७. अनुचित रूप से, चालबाजी से या बलपूर्वक किसी का धन, संपत्ति या कोई चीज प्राप्त करके अपने अधिकार में करना। जैसे—(क) किसी को गठरी मारना। (ख) किसी का माल या रुपया मारना। मुहावरा—मार खाना=उक्त प्रकार से प्राप्त करके अधिकार मे कर लेना। जैसे—स सौदे में उसने सौ रुपये मार खाये। मार रखना= अनुचित रूप से दबाकर अपने पास रख लेना। जैसे—अभी तो यह किताब मार रखो, फिर देखा जायगा। मार लेना=अनुचित रूप से प्राप्त करके अपने अधिकार में कर लेना। जैसे—इस सौदे में उसने भी सौ रूपये मार लिये। १८. कुछ विशिष्ट क्रियाओं के संबंध मेंपूरा या सम्पन्न करना। जैसे—पानी मे गोता मारना, किसी के चारों ओर चक्कर मारना। सिलाई करने के लिए टाँका मारना। १९. किवाड़े या ताले के संबंध में ऐसी क्रिया करना कि वह बंद हो जाय, खुला न रहे। जैसे—(क) कोठरी का दरवाजा मारना। (ख) दरवाजे में ताला मारना। (पश्चिम) २॰.मैथुन या सम्भोग करना। (बाजारू)। विशेष—अनेक क्रियाओं के साथ संयो०क्रिया के रूप में भी और अनेक संज्ञाओं के साथ क्रि० प्र० के रूप में भी मारना का प्रयोग अनेक प्रकार के भाव प्रकट करने के लिए होता है। उनमें मुख्य भाव तीन हैं- (क) किसी प्रकार के आघात या क्रिया से उपेक्षापूर्वक अंत या समाप्त करना। जैसे—किसी के लिखे हुए लकीर मारना। किसी चीज को लात मारना, किसी काम या बात की गोली मारना आदि। (ख) किसी प्रकार का प्रभाव विशेषतः दूषित प्रभाव उत्पन्न करना। जैसे—जादू या मंतर मारना, किसी आदमी को पीस मारना। (ग) कोई क्रिया कष्ट रूप से या बुरी तरह से पूरी या सम्पन्न करना। जैसे—गाल मारना, डींग मारना, दम मारना, कोई चीज किसी के सिर मारना (उपेक्षापूर्वक देना या फेंकना) २१. किसी काम या बात के लिए मगज या सिर मारना अर्थात् बहुत अधिक मानसिक परिश्रम करना आदि। २२. कुछ अवस्थाओं में इसका प्रयोग (मुहावरे के प्रयोग में) अकर्मक क्रिया के रूप में भी होता है। जैसे—(क)यह सुनते ही उसे काठ मार गया, अर्थात् वह काष्ठ के समान स्तब्ध हो गया। (ख) सारी फसल को पाला मार गया (लग गया है) (ग) उसके भाई को लकवा मार गया, (अर्थात् हो गया) है। ऐसे प्रयोगों के ठीक अर्थों के लिए सम्बद्ध क्रियाएँ या संज्ञाएँ देखनी चाहिए।
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मार-पीट  : स्त्री० [हिं० मारना+पीटना] वह लड़ाई जिसमें लड़नेवाले एक-दूसरे को मारते-पीटते हैं।
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मार-पेंच  : पुं० [हिं० मारना+पेंच] धूर्त्तता। चाल-बाजी।
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मारफत  : अव्य० [अ० मारफ़त] १. किसी व्यक्ति के माध्यम से। जैसे—मैं कुछ रुपये श्री कृष्णचंद की मारफत तुम्हें भेंजूँगा। २. पत्रों पर पता लिखते समय, किसी अमुक के द्वारा। स्त्री० [अ०] अध्यात्म। २. इस्लाम विशेषतः सूफी संप्रदाय में साधना की चार स्थितियों में से तीसरी स्थिति जिसमें साधक अपने गुरु या पीर के उपदेश और शिक्षा से ज्ञानी हो जाता है। विशेष—शेष तीन स्थितियाँ शरीअत, तरीकत और हकीकत कहलाती हैं। ३. उर्दू कविता का वह प्रकार जिसमें साधारण रूप में तो लौकिक प्रेम का उल्लेख होता है, परन्तु ध्वनि या श्लेष मे वस्तुतः ईश्वर के प्रति प्रेम प्रकट होता है। (अन्योक्ति का एक प्रकार) जैसे—अगर कोई मारफत की गजल याद हो तो सुनाओ।
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मारसा  : पुं० [देश] १. एक प्रकार का संकर राग, जो परज, विभास और गौरी के मेल से बनता है। इसके गाने का समय सायंकाल है। २. संगीत में एक प्रकार का खयाल।
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मारवाड़  : पुं० [सं० मरुवर्त] १. मेवाड़ प्रदेश। २. मेवाड़ और उसके आस-पास के अनेक प्रदेश जो अब राजस्थान के रुप में परिणत हो गये हैं।
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मारवाड़ी  : पुं० [हिं० मारवाड़] [स्त्री० मारवाड़िन] मारवाड़ देश का निवासी। स्त्री० मारवाड़ देश की बोली। वि० मारवाड़ देश का। मारवाड़-सम्बन्धी।
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मारा  : वि० [हिं० मारना] १. जो मारा गया हो। २. जिस पर मार पड़ी हो। मुहावरा—मारा फिरना, या मारा-मारा फिरना=बहुत ही दुर्दशा भोगते हुए इधर-उधर घूमना। ३. जो किसी प्रकार के आघात या प्रकोप से त्रस्त या पीड़ित हो। जैसे—आफत का मारा, किस्मत का मारा, बीमारी का मारा आदि। स्त्री०=माला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारात्मक  : वि० [सं० मार-आत्मन्, ब० स०+कप्] १. हिंसक। २. प्राणनाशक। ३. दुष्ट।
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माराभिभू  : पुं० [सं० मार-अभि√भू (होना)+ड] गौतम बुद्ध।
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मारामार  : क्रि० वि० [हिं० मारना] बहुत अधिस तेजी से या इतने वेग से चलना कि मानो किसी को मारने जा रहे हों। स्त्री० १. मार-पीट। २. बहुत अधिक जल्दी। जैसे—इतनी मारा-मार करना ठीक नहीं। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारा-मारी  : स्त्री० [हिं० मारना] १. ऐसी लड़ाई जिसमे मार-काट हो रही हो २. जबरदस्ती। बल-प्रयोग। क्रि० वि० =मारामार।
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मारि  : स्त्री० १. मार। २. मरी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मारिच  : पुं० १. मारीच (राक्षस)। २. मार्च (महीना)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारित  : भू० कृ० [सं०√मृ+णिच्+क्त] १. जो मार डाला गया हो। २. भस्म के रूप में किया या लाया हुआ। (वैद्यक) जैसे—मारित स्वर्ण। ३. नष्ट किया हुआ। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मारिष  : पुं० [सं०√मृष् (सहन करना)+अच्, निपा० सिद्धि, या मा√रिष्+क] १. नाटक का सूत्रधार। २. नाटकों में आदरणीय या मान्य व्यक्ति के लिए सम्बोधन। ३. मरसा नाम का साग।
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मारिषा  : स्त्री० [सं० मारिष+टाप्] दक्ष की माता का नाम।
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मारी  : स्त्री० [सं०√मृ+णिच्+इन+ङीष्] १. चंडी नाम की देवी। २. माहेश्वरी शक्ति। ३. महामारी। मरी।
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मारीच  : पुं० [सं०] १. एक राक्षस जिसने रावण के कहने पर सीताहरण कराने के लिए सोने के हिरन का रूप धारण किया था। २. हाथी। ३. मिर्च के पौधों का समूह। वि० [सं० मरीचि+अण्] मरीचि द्वारा रचित।
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मारीची  : स्त्री० [सं०] बुद्ध की माता का नाम। माया देवी।
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मारु  : पुं० १. मार (कामदेव)। २. मारवाड़ (देश)। स्त्री०=मार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मारुत  : पुं० [सं० मरुत+अण्] १. वायु। पवन। २. वायु या पवन के अधिपति देवता।
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मारुत-सुत  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीम।
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मारुतात्मज  : पुं० [सं० मारुत-आत्मज, ष० त०] हनुमान्।
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मारुतापह  : पुं० [सं० मारुत-अप√हन् (मारना)+ड] वरुण वृक्ष।
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मारुताशन  : पुं० [सं० मरुत-अशन, ब० स०] १. कार्तिकेय का एक अनुचर। २. साँप।
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मारुति  : पुं० [सं० मारुत+इञ्] १. हनुमान। २. भीम।
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मारुध  : पुं० [सं०] एक प्राचीन देश।
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मारू  : वि० [हिं० मारना] १. मार डालने या जान लेनेवाला। २. हृदय या मर्म स्थल पर आघात करनेवाला। ३. मारने-पीटनेवाला। पुं० १. उन गीतों या रागों का वर्ग जो युद्द के समय वीरों को उत्तेजित तथा उत्साहित करने के लिए गाये जाते है। २. युद्ध में बजाया जानेवाला बहुत बड़ा डंका या नगाड़ा। पुं० [देश] १. एक प्रकार का शाहबलूत जो शिमले और नैनीताल मे अधिकता से पाया जाता है। २. काकरेजी रंग। पुं० =मारवाड़ी।
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मारूज  : वि० [अ० मारूज] १. अर्ज किया हुआ। निवेदित २. उक्त। कथित। पुं० १. निवेदन। प्रार्थना। २. उक्ति। कथन।
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मारूत  : स्त्री० [हिं० मारना] घोड़ों के पिछले पैरों की एक भौरी जो मनहूस समझी जाती है। पुं० =मारुति।
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मारे  : अव्य० [हिं० मारना] वजहसे। कारण। (विवशतासूचक) जैसे—जल्दी के मारे वह अपनी पुस्तक यहीं भूल गया।
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मार्कंड  : पुं० =मार्कंडेय।
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मार्कंडेय  : पुं० [सं० मृकंड+ढक्-एय] मृकंड ऋषि के पुत्र एक प्राचीन मुनि जिन्होंने अपने तपोबल से अमरत्व प्राप्त किया था। इनके नाम पर एक पुराण भी प्रचलित है।
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मार्क  : पुं० [अ०] १. चिन्ह। छाप। २. मारका। ३. लक्षण।
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मार्का  : पुं० =मारका (चिन्ह)।
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मार्क्विस  : पुं० [अ०] इंग्लैड के सुछ सामंतो की परम्पराहत एक उपाधि।
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मार्क्स  : पुं० एक प्रसिद्ध जर्मन क्रान्तिकारी समाजवादी नेता जिसने दर्शन, राजनीति आदि के कई प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे हैं, और जिसके नाम पर मार्क्सवाद (देखें) नाम का मत या वाद आजकल विशेष प्रचलित हैं। इसका पूरा नाम हैनरिच मार्क्स था (सन् १८१८-१८८३ ई०)।
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मार्क्सवाद  : पुं० [जर्मन मार्क्स (नाम)+सं० वाद] जर्मन समाजवादी कार्ल मार्क्स (देखें) का यह सिद्धान्त कि सारी सम्पत्ति श्रम से ही उत्पन्न होती या बनती है, अतः उससे प्राप्त होनेवाला धन श्रमिकों को ही मिलना चाहिए। इसमें पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था का तिरस्कार किया गया है। विशेष—मार्क्स का मत है कि श्रमिको को पूँजीपतियों के साथ संघर्ष करते रहना चाहिए और इस प्रकार पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था का पूरी तरह से नाश करना चाहिए।
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मार्क्सवादी  : वि० [हिं० मार्क्सवाद] मार्क्सवाद-सम्बन्धी। मार्क्सवाद का। जैसे—मार्क्सवादी दृष्टिकोण। पुं० वह जो मार्क्सवाद के सिद्धान्तों का अनुयायी हो।
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मार्केट  : पुं० [अं०] बाजार। हाट।
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मार्ग  : पुं० [सं०√मार्गवा√भृज्+घञ्] १. आने-जाने का रास्ता। पथ। राह। २. कोई ऐसा द्वार माध्यम या साधन जिसका अनुसरण, पालन या व्यवहार करने से कोई अभिप्राय या कार्य सिद्ध होता हो। ३. मलद्वार। गुदा। ४. अभिनय, नृत्य और संगीत की एक उच्च कोटि की शैली। ५. गंधर्व संगीत की वह शाखा जो देशी संगीत के संयोग से निकली थी। ६. मृगशिरा नक्षत्र। ७. मार्गशीर्ष या अगहन नाम का महीना। ८. विष्णु। ९. कस्तूरी। १॰. अपामार्ग। चिचड़ा। वि० मृग-सम्बन्धी। मृग का।
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मार्गक  : स्त्री० [सं० मारण]
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मार्गक  : स्त्री० [सं० मार्ग्+कन्] मार्गशीर्ष या अगहन का महीना।
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मार्ग-कर  : पुं० [सं० ष० त०] वह कर जो यात्री को किसी विशिष्ट मार्ग से होकर जाने के बदले में देना पड़ता है। पथ-कर। (टोल टैक्स)
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मार्गण  : पुं० [सं०√मार्ग् (खोजना)+ल्युट्—अन] १. अन्वेषण। खोज। २. प्रेम। ३. याचना। ४. याचक। भिखमंगा। ५. तीर। बाण।
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मार्गणा  : स्त्री० [√मार्ग+णिच्+यु च्—अन्,+टाप्] १. अन्वेषण। २. याचना।
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मार्गद  : पुं० [सं० मार्ग√दा (देना)+क] केवट। मल्लाह।
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मार्ग-दर्शक  : पुं० [सं० ष० त०] १. मार्ग दिखलानेवाला व्यक्ति २. वह जो यात्रियों, भ्रमण करने वालों का पथ-प्रदर्शन करता हो।
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मार्ग-दर्शन  : पुं० [सं० ष० त०] १. रास्ता दिखलाना। २. पथ-प्रदर्शन।
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मार्ग-देशिक  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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मार्ग-देशी  : पुं० [हिं०] संगीत शास्त्र की दृष्टि से आज-कल का वह प्रचलित संगीत जिसमें ध्रपद, खयाल, टप्पा, ठुमरी आदि सम्मिलित हैं।
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मार्ग-धेनु (क)  : पुं० [सं० ष० त०] चार कोस की दूरी। एक योजन।
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मार्गन  : पुं० [सं० मार्ग√पा (रक्षा करना)+क] मार्ग अर्थात् रास्ते का निरीक्षण करनेवाला अधिकारी। पुं० =मार्गण (तीर)।
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मार्गपति  : पुं० =मार्गप।
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मार्ग-राग  : पुं० [सं०] संगीत-शास्त्र में प्राचीन राग, जिन्हें शुद्धराग भी कहते हैं। जैसे—भैरव, मेघ आदि राग। (देशी रागों से भिन्न)
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मार्गव  : पुं० [सं०] १. अयोगवी माता और निषाद पिता से उत्पन्न एक प्राचीन संकर जाति। २. उक्त जाति का व्यक्ति।
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मार्गवती  : स्त्री० [सं० मार्ग+मतुप, म---व---डीप्] एक देवी जो मार्ग चलनेवालों की रक्षा करनेवाली मानी गयी है।
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मार्गशिर  : पुं० = मार्गशीर्ष।
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मार्गशीर्ष  : पुं० [सं० मृगशीर्ष+अण्+ ङीप्, मार्गशीर्षी+ अण्] अगहन का महीना।
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मार्गाधिकार  : पुं० [सं० मार्ग-अधिकार, ष० त०] वह अधिकार जो किसी मार्ग पर आने-जाने अथवा अपने आदमी या चीजें भेजने-मँगाने आदि के सम्बंध में किसी विशिष्ट व्यक्ति, देश आदि को प्राप्त होता है। (राइट आफ़ पैसेज)
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मार्गिक  : पुं० [सं० मृग+ठक्—इक] १. पथिक। यात्री। २. मृगों को मारनेवाला व्याध।
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मार्गी (गिन)  : पुं० [सं० मार्ग+इनि्] मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति। बटोही। यात्री। स्त्री० संगीत में एक मूर्च्छना जिसका स्वर-ग्राम इस प्रकार है—नि, स, रे,ग, म, प,ध, ।म, प, नि, स, रे, ग, म, प, ध, नि, स।
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मार्च  : पुं० [अं०] १. अंग्रेजी वर्ष का तीसरा मास जो फरवरी के बाद और अप्रैल से पहले पड़ता है और सदा ३१ दिनों का होता है। २. सैनिकों आदि का दल बाँधकर किसी उद्देश्य से आगे बढ़ना या चलना। ३. सेना का कूच या प्रस्थान।
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मार्ज  : पुं० [सं०√मृज् (शुद्ध करना)+णिच्+अच्] १. विष्णु। २. धोबी। ३. [√मृज्+घञ्] मार्जन।
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मार्जक  : वि० [सं०√मृज्+ण्वुल्—अक] मार्जन करनेवाला।
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मार्जन  : स्त्री० [सं०√मृज् (शुद्ध करना)+णिच्+ल्युट्—अन] १. दोष। मल आदि दूर करके साफ करने की किया या भाव। सफाई। २. अपने ऊपर जल छिड़ककर अपने आपको शुद्ध करना। ३. भूल, दोष आदि का परिहार। ४. लोध नामक वृक्ष।
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मार्जना  : स्त्री० [सं०√मृज्+णिच्+युच्—अन,+टाप्] १. मार्जन करने की किया या भाव। सफाई। २. क्षमा। माफी।
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मार्जनी  : स्त्री० [सं० मार्जन+ङीप्] १. झाड़ू। बुहारी। २. संगीत में मध्यम स्वर की एक श्रुति।
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मार्जनीय  : [सं० √मृज्+णिच्+अनीयर] अग्नि। वि० जिसका मार्जन होना आवश्यक या उचित हो। मार्जन के योग्य।
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मार्जार  : पुं० [सं०√मृज्+आरन्, [स्त्री० मार्जनी] १. बिल्ली। २. लाल-चीते का पेड़। ३. पूति सारिवा।
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मार्जारक  : पुं० [सं० मार्जार+कन्] मोर।
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मार्जारकर्षिका  : स्त्री० [सं० मार्जार-कर्ण, ब० स० ङोप्+कन्०+टाप्, ह्नस्व] चामुंडा (दुर्गा का एक रूप) का एक नाम।
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मार्जारपाद  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का बुरे लक्षणोंवाला घोड़ा।
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मार्जाराक्षक  : पुं० [सं० मार्जार-अक्षि, ब, स, षच्+कन्] एक प्रकार का रत्न। (कौ०)
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मार्जारी  : स्त्री० [सं० मार्जार+ङीप्] १. बिल्ली। २. कस्तूरी। ३. गन्धनाकुली।
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मार्जारी टोड़ी  : स्त्री० [सं० मार्जारी+हि० टोड़ी] सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब कोमल स्वर लगते है।
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मार्जारीय  : पुं० सं० मार्जाय+छ—ईय] १. बिल्ली। २. शूद्र। वि० मार्जन करनेवाला।
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मार्जाल  : पुं० =मार्जाय।
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मार्जालीय  : पुं० [सं०√मृज्+अलीयच्] १. बिल्ली। २. शूद्र। ३. शिव। ४. एक प्राचीन ऋषि। वि०=मार्जारीय।
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मार्जित  : भू० कृ० [सं√मृज् (शुद्ध करना)+णिच्=क्त] जिसका मार्जन हुआ हो या किया गया हो। साफ या स्वच्छ किया हुआ। पुं० एक प्रकार का श्रीखण्ड जो दही, कपूर, चीनी शहद और मिर्च आदि मिलाकर बनाया जाता था।
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मार्तंड  : पुं० [सं० मृत-अण्ड, कर्म० स० पररूप,+अण्, वृद्धि] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. सूअर। ४. सोनामक्खी।
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मार्तंड-वल्लभा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. सूर्य की पत्नी। २. छाया।
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मार्तिक  : भू० कृ० [सं० मृत्तिका+ठक्—इक] मिट्टी से बना या बनाया हुआ। पु० १. सकोरा। २. पुरवा।
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मार्तिकावत  : पुं० [सं०] १. पुराणानुसार चेदि राज्य का एक प्राचीन नगर। २. उक्त नगर के आसपास को प्रदेश। ३. उक्त देश का निवासी।
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मार्त्य  : पुं० [सं० मर्त्य+ष्यञ्] १. मर्त्य होने की अवस्था या भाव। मरणशीलता। २. शारीरिक मल।
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मार्दंग  : पुं० [सं० मृत्-अंग, ब० स०,+अण्] १. मृदंग बजानेवाला। २. नगर। शहर।
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मार्दंगिक  : पुं० [सं० मृदंग+ठक्—इक] वह जो मृदंग बजाता हो। मृदंगिया।
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मार्दव  : पुं० [सं० मृदु+अण्] १. मृदु होने की अवस्था या भाव। मृदुता। २. दूसरे को दुःखी देखकर दुःखी होने की वृत्ति। हृदय की कोमलता और सरसता। ३. अहंकार आदि दुर्गुंणों से रहित होने की अवस्था या भाव। ४. एक प्राचीन जाति।
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मार्द्वीक  : वि० [सं० मृद्वीका+अण्, वृद्धि] १. अंगूर-सम्बन्धी। २. अंगूर से बना या बनाया हुआ। स्त्री० [सं०] अंगूरी शराब।
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मार्फत  : अव्य०, स्त्री०=मारफत।
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मार्मिक  : वि० [सं० मर्मन्+टक्—इक] [भाव० मार्मिकता] १. मर्म-सम्बन्धी। मर्म का। २. मर्म स्थान (हृदय) पर प्रभाव डालने अथवा उसे आंदोलित करनेवाला। ३. किसी विषय का मर्म अर्थात् निहित तत्त्व के आधार पर या विचार से होनेवाला। जैसे—मार्मिक विवेचन।
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मार्मिकता  : स्त्री० [सं० मार्मिक तल्+टाप्] १. मार्मिक होने की अवस्था या भाव। २. किसी विषय, शास्त्र आदि के गूढ़ रहस्यों की अभिज्ञता या अच्छी जानकारी।
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मार्शल  : पुं० [अं०] सेना का एक उच्च अधिकारी।
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मार्शल-ला  : पुं० [अं०] १. वह आदेश जिसके द्वारा किसी देश की शासन-व्यवस्था सेना को सौंपी जाती है। २. सैनिक व्यवस्था या शासन। फौजी कानून या हुकूमत। विशेष—जब देश में विशेष उपद्रव आदि की आशंका होती है तब वहाँ से साधारण नागर शासन हटाकर इसी प्रकार का शासन कुछ समय के लिए प्रचलित किया जाता है।
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मार्ष  : पुं० =मारिष।
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