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विभाँति  : स्त्री० [सं० वि+हिं० भाँति] प्रकार। किस्म। वि० अनेक प्रकार का। अव्य० अनेक प्रकार से।
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विभा  : स्त्री० [सं० वि√भा (प्रकाश करना)+क्विप्] १. प्रभा। कान्ति। २. किरण। रश्मि। ३. छवि। शोभा।
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विभाकर  : वि० [सं०] प्रकाश करने या फैलानेवाला। पुं० १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. चित्रक। चीता। ४. अग्नि। आग। ५. राजा।
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विभाग  : पुं० [सं० वि+भज् (भाग करना)+घञ्] १. कोई चीज कई टुकड़ों या भागों में बाँटना। २. उक्त प्रकार से अलग किया हुआ अंश या टुकड़ा। ३. ग्रन्थ का परिच्छेद या प्रकरण। ४. कोई विशिष्ट कार्य करने के लिए अलग किया हुआ क्षेत्र (डिपार्टमेंट)। जैसे— न्याय विभाग। ५. कार्य-संचालन के सुभीते के लिए किसी कार्य-क्षेत्र के कई छोटे-छोटे हिस्सों में से हर एक (सेक्सन)। ६. किसी विशिष्ट कार्य के लिए निश्चित किया हुआ क्षेत्र या खंड (डिविजन)।
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विभागक  : पुं० [सं० विभाग+कन्] १. विभाग करनेवाला। विभाजक। २. विभागीय। (दे०)।
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विभागात्मक-नक्षत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वस्, मघा, चित्रा, स्वाती, ज्येष्ठा और श्रवण आदि आठ प्रकाशमान् नक्षत्र।
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विभागी (गिन्)  : वि० [सं० वि√भज् (भाग करना)+णि] १. विभाग। २. हिस्सेदार।
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विभागीय  : वि० [सं०] किसी विशिष्ट विभाग में होने या उससे संबंध रखनेवाला (डिपार्टमेंटल) जैसे—विभागीय कार्रवाई।
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विभाजक  : वि० [सं० वि्√भज् (भाग करना)+ण्वुल्-अक] १. विभाजन करनेवाला। २. बाँटने वाला। पुं० वह संख्या या राशि जिससे दूसरी संख्या को भाग दिया जाय (गणित)।
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विभाजन  : पुं० [सं० वि√भज् (भाग करना)+णिच्+ल्युट-अन] १. हिस्से लगाना। विभाग करना। २. संयुक्त संपत्ति आदि को उसके स्वामियों द्वारा आपस में बाँटना। ३. पात्र। बरतन।
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विभाजित  : भू० कृ० [सं० वि√भज् (भाग करना)+णिच्+क्त] १. जिसका विभाजन हो चुका हो। २. विभाजन द्वारा जिसका अंश अलग या निकाल लिया गया हो। खंडित। जैसे— विभाजित भारत।
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विभाज्य  : वि० [सं० वि√भज् (भाग करना)+ण्यत्] जिसका विभाजन हो सके या होने को हो।
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विभात  : पुं० [सं० वि√भा (प्रकाश करना)+क्त] सबेरा। प्रभात।
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विभाति  : पुं० [सं० वि√भा (प्रकाश करना)+क्तिन्] शोभा। सुंदरता।
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विभाना  : अ० [सं० विभा+हिं० ना (प्रत्यय)] १. चमकना। शोभित होना। फबना। स० १. चमकाना। सुशोभित करना।
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विभाव  : पुं० [सं०] साहित्य में, वह निमित्त या हेतु जो आश्रय में भाव जाग्रत या उद्दीप्त करता हो। इसके दो भेद है—आलंबन और उद्दीपन।
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विभावक  : वि० [सं० विभाव+कन्] १. अभिव्यक्त करनेवाला। २. तर्क करनेवाला।
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विभावन  : पुं० [वि√भू (होना)+णिच्+युच्-अन] १. सोचने की क्रिया या भाव। २. अनुभूति। ३. परीक्षण। ४. तर्क। ५. साहित्य में वह स्थिति जिसमें कविता या नाटक के पात्र के साथ पाठक या दर्शक का तादात्म्य होता है।
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विभावना  : स्त्री० [सं०] १. कल्पना। २. कारण के अभाव में कार्य की होनेवाली कल्पना। ३. उक्त के आधार पर साहित्य में एक विरोध मूलक अर्थालंकार। विशेष—यह पाँच प्रकार का कहा गया है— (क) कारण के अभाव में कार्य होना, (ख) अपर्याप्त कारण से कार्य होना। (ग) प्रतिबंधक तत्त्व के होने पर भी कार्य होना। (घ) विरुद्ध कारण द्वारा कार्य होना और, (ड़) कार्य से कारण की व्युत्पत्ति होना।
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विभावनीय  : वि० [सं० वि√भू (होना)+णिच्+अनीयर्] जिसकी भावना अर्थात् चिंतन या विचार हो सके।
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विभावरी  : स्त्री० [सं० वि√भा (प्रकाश करना)+वनिप्+ङीष्-आदेश] १. रात्रि। रात। २. तारों से जगमगाती हुई रात। चतुर और मुखरा स्त्री। ४. कुटनी। दूती। ५. पतिता स्त्री। ६. रखैल। ७. हलदी। ८. मेदा। ९. प्रचेतस की नगरी का नाम।
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विभावरीश  : पुं० [सं० विभावरी-ईश, ष० त०] निशापति। चन्द्रमा।
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विभावसु  : वि० [सं० ब० स०] जिसमें विशेष प्रकार हो। अधिक प्रभावाला। पुं० १. सूर्य। २. अग्नि। ३. चन्द्रमा। ४. वसुओं के एक पुत्र। ५. नरकासुर का पुत्र एक दानव। ६. एक गंधर्व जिसने गायत्री से वह सोम छीना था जो वह देवताओं के लिए ले जा रही थी। ७. आक। मदार। ८. चित्रक। चीता। ९. गले में पहनने का एक प्रकार का हार।
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विभावित  : भू० कृ० [सं० तृ० त०] १. जिसकी विभावना हुई हो। कल्पित। २. निश्चित। ३. गृहीत या स्वीकृत।
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विभावी (विन्)  : वि० [सं० वि√भू (होना)+णिनि] १. भावों का उदय करनेवाला। २. प्रकट करने वाला। ३. शक्तिशाली।
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विभाव्य  : वि० [सं० वि√भू (होना)+ण्यत्] जिसके संबंध में विभावना या विचार हो सकता हो। विभावना के लिए उपयुक्त।
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विभाषा  : स्त्री० [सं०] [वि० वैभाषिक] १. यह कहना कि ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। २. व्याकरण में, ऐसा प्रयोग जिसके संबंध में उक्त प्रकार के दोहरे मत, विचार या सिद्धान्त मिलते हों। ३. उक्त मतों नियमों आदि के चुनाव के संबंध में होनेवाली स्वतंत्रता। ४. भाषा विज्ञान में किसी भाषा की कोई ऐसी बड़ी शाखा जो उसके विशिष्ट विभाग के अन्तर्गत हो और जिसके कई स्थानिक भेद, प्रभेद भी हों। बोली (डायलेक्ट)।
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विभाषित  : वि० [सं० विभाषा+इतच्] जो इस रूप में कहा गया हो कि ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता।
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विभास  : पुं० [सं० वि√भास् (प्रकाश करना)+अप्] १. चमक। दीप्ति। २. संगीत में सबेरे गाया जानेवाला एक प्रकार का राग। पुराणानुसार एक देव-योनि। ३. तैत्तरीय आरण्यक के अनुसार सप्तर्षियों में से एक।
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विभासक  : वि० [सं० विभास+कन्] [स्त्री० विभासिका] १. चमकने या चमकानेवाला। प्रकाशयुक्त। २. प्रकट या व्यक्त करनेवाला।
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विभासना  : अ० [सं० विभास+हि० ना (प्रत्यय)] १. चमकाना। २. विभासित होना। जान पड़ना।
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विभासा  : स्त्री० [सं० विभास+टाप्] १. प्रकाश। २. चमक। कांति।
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विभासित  : भू० कृ० [सं०] १. प्रकाशित। २. चमकता हुआ। ३. कांति से युक्त।
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