शब्द का अर्थ
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व्यासंग :
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पुं० [सं०वि+आ√सञ्ज (साथ रहना)+घञ्] १. घनिष्ठ संपर्क। २. आसक्ति। ३. मनोयोग। ४. जोड़। योग। ५. पार्थक्य। |
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व्यासंगी (गिन्) :
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वि० [सं० व्यासंग+इनि] मनोयोगपूर्वक कार्य में लगा रहनेवाला। |
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व्यास :
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पुं० [सं० वि√अस्+घञ्] १. पराशर के पुत्र कृष्ण द्वैपायन जिन्होंने वेदों का संकलन, विभाग और संपादन किया था। कहा जाता है कि अठारहों, पुराणों, महाभारत, भागवत और वेदांत आदि की रचना भी इन्होंने ही की थी। २. कथावाचक (ब्राह्मण)। ३. किसी वृत्त में की वह सीधी रेखा जो उसके केन्द्र से होकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधा जाती हो। ४. फैलाव। |
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व्यासकूट :
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पुं० [सं० ष० त०] १. महाभारत में आए हुए वेदव्यास के कूट श्लोक। २. वह कूट श्लोक जो सीता हरण होने पर रामचन्द्र जी ने माल्यवान् पर्वत पर कहे थे और जिनसे उन्हें कुछ शांति मिली थी। |
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व्यासक्त :
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वि० [सं० वि+आ√सञ्ज् (संग रहना)+क्त] बहुत अधिक आसक्त। |
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व्यासक्ति :
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स्त्री० [सं० वि+आ√सञ्ज्+क्तिन्] विशेष रूप से होनेवाली आसक्ति। |
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व्यास-गद्दी :
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स्त्री० [सं०+हिं०] ऊँची चौकी या आसन जिस पर बैठकर पंडित या व्यास कथा-वार्ता कहते हैं। व्यास पीठ। |
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व्यास-गीता :
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स्त्री० [सं० ष० त०] एक उपनिषद् का नाम। |
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व्यासता :
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स्त्री० [सं० व्यास+तल्+टाप्] व्यास होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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व्यासत्व :
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पुं० [सं० व्यास+त्व]=व्यासता। |
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व्यास-पीठ :
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पुं० [सं० ष० त०] वह ऊँचा आसन जिस पर बैठकर व्यास लोग पौराणिक कथाएँ कहते हैं। व्यास की गद्दी। |
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व्यास-वन :
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पुं० [सं०] एक प्राचीन वन या जंगल। |
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व्यास-सूत्र :
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पुं० [सं०] वेदांत सूत्र। |
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व्यासारण्य :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] व्यास-वन नामक प्राचीन वन। |
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व्यासार्द्ध :
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पुं० [सं० ष० त०] ज्यामिति में वृत्त के केन्द्र से उसकी परिधि तक खींची जानेवाली सीधी रेखा जो मान में व्यास की आधी होती है। |
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व्यासासन :
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पुं० [सं० ष० त०] व्यास गद्दी। व्यास पीठ। |
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व्यासिद्ध :
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वि० [सं० वि+आ√सिध् (मांगल्यप्रद)+क्त] दे० ‘प्रारक्षित’। |
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व्यासीय :
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वि० [सं० व्यास+छ-ईय] व्यास का। |
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व्यासेध :
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पुं० [सं० वि+आ√सिध् (मांगल्यप्रद)+घञ्] दे० ‘प्रारर्क्षण’। |
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