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शब्द का अर्थ

शक्त  : वि० [सं०√शक् (सकना)+क्त] १. शक्ति। सम्पन्न। समर्थ। २. पठु। ३. मधुरभाषी।
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शक्तव  : पुं० [सं० सक्त] सत्तू।
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शक्ति  : स्त्री० [सं०√शक् (सकना)+क्तिन्] १. वह शारीरिक गुण या धर्म जिसके द्वारा अंगों का संचालन आत्म-रक्षा, बल-प्रयोग और ऐसे ही दूसरे काम होते हैं। पराक्रम। ताकत। जोर (स्ट्रेन्थ)। जैसे—रोग के कारण उसमें उठने-बैठने की भी शक्ति नहीं रह गई है। २. कोई ऐसा गुण, तत्त्व या धर्म जो कोई विशिष्ट कार्य करता, कराता अथवा क्रियात्मक रूप में अपना परिणाम या प्रभाव दिखाता हो। ताकत। बल। जैसे— (क) बातें याद रखने या सोचने-समझने की शक्ति। (ख) ओषधियों में होनेवाली रोगनाशक शक्ति। ३. कोई ऐसा तत्व जो निश्चित रूप में और बलपूर्वक किसी से कोई काम कराने में समर्थ हो। (फोर्स) जैसे— (क) उसमें उसका मुँह बन्द करने की शक्ति है। (ख) इस इंजन में सौ घोड़ों की शक्ति है। (ग) मंत्रों में आज-कल वह शक्ति नहीं रह गई है। ४. कोई ऐसा तत्त्व या साधन जो अभीष्ट या कार्य की सिद्धि में सहायक होती है। जैसे—आर्थिक शक्ति, सैनिक शक्ति। ५. आधुनिक राजनीति में, वह बड़ा पराक्रमी और बलशाली राज्य जिसके पास यथेष्ट धन, सेना आदि का साधन हो और जिसका दूसरे राज्यों की नीति आदि पर प्रभाव पड़ता हो। (पावर)। जैसे—आज-कल अमेरिका और रूस ही संसार की सबसे बड़ी शक्तियाँ है। ६. धार्मिक क्षेत्रों में ईश्वर, देवी-देवता आदि में माना जानेवाला वह गुण या तत्त्व जिसके फलस्वरूप वे अपना कार्य करते या प्रभाव दिखाते हैं। जैसे—दैवी शक्ति, रौद्री शक्ति। विशेष-हमारे यहाँ कुछ देवताओं की उक्त प्रकार की शक्तियाँ उनकी पत्नी और देवी के रूप में मानी गई है। जैसे—दुर्गा पार्वती लक्ष्मी आदि। ७. तंत्र के अनुसार किसी पीठ की अधिष्ठाती देवी जिसकी उपासना करनेवाले शाक्त कहे जाते हैं। ८. तांत्रिकों की परिभाषा में वह नटी, कापालिकी, वेश्या, धोबिन, नाउन, ब्राह्मणी, शूद्रा, ग्वालिन या मालिन जो युवती रूपवती और सौभाग्यवती हो। ९. स्त्रियों की भग। योनि (तांत्रिक)। १॰. न्याय और साहित्य में, वह तत्त्व जो शब्द और उसके अर्थ से संबंध स्थापित करता अथवा शब्द का अर्थ प्रकट करता है। ११. बोल-चाल में अधिकार या वश। जैसेउसे मनाना तुम्हारी शक्ति के बाहर है। १२. प्रकृति १३. माया। १४. बरछी या साँग नामक अस्त्र। पुं० एक प्राचीन ऋषि जो पराशर के पिता थे।
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शक्ति-ग्रह  : पुं० [सं० शक्ति√ग्रह् (ग्रहण करना)+अच्] १. शिव। महादेव। २. कार्तिकेय। ३. भाला-बरदार। ४. साहित्य में वह वृत्ति या शक्ति जिससे शब्द के अर्थ का ज्ञान होता है।
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शक्ति-धर  : पुं० [सं० ष० त०] स्कंद। कार्तिकेय।
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शक्ति-पाणि  : पुं० [सं० ब० स०] कार्तिकेय। स्कंद।
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शक्ति-पूजक  : वि० [ष० त०] १. शक्ति का उपासक। २. वाममार्गी।
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शक्ति-पूजा  : स्त्री० [सं० ष० त०] शाक्तों द्वारा होनेवाली शक्ति की पूजा।
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शक्ति-बोध  : पुं० [सं० तृ० त०] शब्द शक्तियों से प्राप्त होनेवाले अर्थों का ज्ञान।
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शक्ति-मत्ता  : स्त्री० [सं० शक्ति+मतुप्, शक्तिमत्+तल्+टाप्] १. शक्ति सम्पन्न होने की अवस्था या भाव। २. शक्ति का होनेवाला घमंड।
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शक्ति-मान् (मतृ)  : वि० [सं० शक्ति+मतुप्] [स्त्री० शक्तिमती] जिसमें यथेष्ट शक्ति हो। बलवान्। बलिष्ठ। ताकतवर।
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शक्तिवादी (दिन्)  : वि० [सं० शक्ति√वद् (कहना)+णिनि] १. शक्ति संबंधी। २. शक्ति का उपासक तथा अनुयायी। शाक्त।
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शक्ति-वीर  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो शक्ति की उपासना करता हो। वाममार्गी। शाक्त।
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शक्ति-वैकल्य  : पुं० [सं० ष० त०] १. शक्ति का अभाव। कमजोरी। दुर्बलता। २. असमर्थता।
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शक्ति-शोधन  : पुं० [सं० ष० त०] शाक्तों का एक संस्कार जिसमें वे किसी स्त्री को शक्ति की प्रतिनिधि या प्रतीक बनाने से पहले कुछ विशिष्ट कृत्य करके उसे शुद्ध करते हैं।
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शक्तिष्ठ  : वि० [सं० शक्ति√स्था (ठहरना)+क] शक्ति संपन्न।
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शक्ती  : पुं० [सं० शक्ती] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १८ मात्राएँ होती हैं और इसकी रचना ३+३+४+३+५ होती है। अंत में सगण, रगण या नगण में से कोई एक और आदि में एक लघु होना चाहिए। वि० शक्ति संपन्न।
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शक्तु  : पुं० [सं०√शच् (एकत्रित होना)+तुन्] सत्तू।
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शक्तुक  : पुं० [सं० शक्तु√कै (मालूम होना)+क] भावप्रकाशानुसार एक प्रकार का बहुत तीव्र और उग्र विष।
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शक्तिमान् (मत्)  : [सं० शुक्तिमत्—नुम्—दीर्घ] एक पर्वत जो आठ कुल-पर्वतों में से है।
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