शब्द का अर्थ
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शूद्र :
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पुं० [सं० शुच्+रक्, पृषो० च=द-दीर्घ] [स्त्री० शूद्रा] १. हिन्दुओं में चार प्रकार के प्रमुख वर्णों या जातियों में से एक जिसका मुख्य आचरण अन्य तीन वर्णों (अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) की सेवा करना कहा गया है। २. उक्त वर्ण का व्यक्ति। ३. दास। सेवक। ४. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश। वि० [भाव० शूद्रता] बहुत खराब या बुरा। निकृष्ट। |
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शूद्रक :
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पुं० [सं० शूद्र+कन्] १. संस्कृत के प्रसिद्ध ‘मृच्छकटिक’ के रचयिता। २. शूद्र। ३. दे० ‘शंबुक’। |
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शूद्रक्षेत्र :
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पुं० [सं० उपमि० स०] काले रंग की ऐसी भूमि जिसमें अनेक प्रकार की घास, तृण तथा अनेक प्रकार के धान उत्पन्न होते हैं। |
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शूद्रता :
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स्त्री० [सं० शूद्र+तल्—टाप्] शूद्र होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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शूद्र-द्युति :
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पुं० [सं० उपरि, ब० स०] नीला रंग जो रंगों में शूद्र वर्ण का माना जाता है। |
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शूद्र-प्रेष्य :
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पुं० [सं० ष० त० स०] ऐसा ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य जो किसी शूद्र की नौकरी करता हो। |
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शूद्रा :
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स्त्री० [सं० शूद्र—टाप्] शूद्र जाति की स्त्री। शूद्राणी। |
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शूद्राणी :
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स्त्री० [सं० शूद्र—ङीष्—आनुक] शूद्र जाति की स्त्री। शूद्रा। |
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शूद्रान्न :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शूद्र वर्ण के स्वामी से प्राप्त होनेवाला अन्न या चलनेवाली जीविका। |
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शूद्री :
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स्त्री० [सं० शूद्र-ङीष्] शूद्र की स्त्री। शूद्रा। |
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