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शब्द का अर्थ

संबंध  : १. किसी के साथ बँधना। जुड़ना या मिलना। २. वह स्थिति जिसमें कोई जुड़ा बँधा या लगा रहता है। ताल्लुक। लगाव। ३. एक कुल में होने के कारण अथवा विवाह दत्तक आदि संस्कारों के कारण होने वाला पारस्परिक लगाव। नाता। रिश्ता। ४. आपस में होने वाली बहुत अधिक घनिष्ठता या मेल-जोल। ५. किसी प्रकार का मेल या संयोग। ६. विवाह। शादी। ७. व्याकरण में एक कारक जिसमें एक शब्द के साथ दूसरे शब्द का संबंध या लगाव सूचित होता है। जैसे—राम का घोड़ा। ८. प्रसंगवश किसी सिद्धान्त का किया जाने वाला उल्लेख । हवाला। ९. ग्रन्थ। पुस्तक। १॰. एक प्रकार की ईति या उपद्रव।
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संबंधक  : वि० [सं० संबंध+कन्] १. संबंध रखने वाला। संबंधी। विषयक। २. उपयुक्त। योग्य। ३. जो दो वस्तुओं, व्यक्तियों आदि में पारस्परिक संबंध करता या कराता हो (कनेक्टिंग)। पुं० १. रक्त या विवाह संबंधी। २. मैत्री। ३. मित्र। ४. रिश्तेदार। संबंधी। ५. राजाओं में होने वाली वह संधि जो आपस में विवाह करके स्थापित की जाती थी।
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संबंध तत्त्व  : पुं० [सं०] भाषा विज्ञान में वह तत्व जो किसी पद या वाक्य में आये हुए अर्थ तत्व वाले शब्दों का पारस्परिक संबंध मात्र बतलाता है। ‘अर्थतत्त्व’ का विपर्याय (मॉरफीम)। जैसा—‘समाज का स्वरूप’ में ‘का’ शब्द संबंधतत्व वाला है।, क्योंकि वह समाज और स्वरूप में संबंध मात्र स्थापित करता है।
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संबंधातिशयोक्ति  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें पारस्परिक संबंध का आभाव होते हुए भी संबंध दिखाया जाता है।
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संबंधित  : भू० कृ० [सं०] जिसका किसी से संबंध स्थापित हो। संबद्ध।
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संबंधी (धिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० संबंधिनी] १. संबंध या लगाव रखने वाला। २. किसी विषय से लगा हुआ। विषयक। पुं० १. वह जिसके साथ रक्त अथवा विवाह का संबंध हो। रिश्तेदार। २. दे० ‘समधी’।
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संबंधु  : पुं० [सं० सम्√बन्ध् (बाँधना)] १. आत्मीय। भाई-विरादक। २. नातेदार। संबंधी।
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संब  : पु०=शंब।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संबत  : पुं०=संवत्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संबद्ध  : वि० [सं०] १. किसी के साथ जुड़ा, मिला या लगा हुआ। २. किसी प्रकार का संबंध रखनेवाला।
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संबद्ध-लिंग  : पुं० दे०‘लिंग’ (न्याय-शास्त्रवाला विवेचन)।
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संबद्धीकरण  : पुं० [सं०] १. संबद्ध करने की क्रिया या भाव। २. विद्यालय, संस्था आदि को अपना अंग या सदस्य मानकर उसे अपने साथ संबद्ध करना। अपने परिवार या संघठन का सदस्य बनाना (एफिलिएशन)।
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संबरन  : पुं०=संवरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संबरना  : [सं० संवरण] संवरण करना। रोकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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संबल  : पुं० [√ सम्ब्+कलच्] १. कहीं जाने के समय रास्ते के लिए साथ में रखा हुआ खाने पीने का सामान। २. कोई ऐसी चीज, बात या साधन जिससे किसी का या बात में आगे बढ़ने में पूरी-पूरी सहयता मिलती हो या जिसका आश्रय लिया जाता हो (रिसोरसेज)। ३. सहारा। ४. गेहूँ की फसल का एक रोग जो पूरब की हवा अधिक चलने से होता है। ५. सेमल का वृक्ष। पुं०=संबुल (संखिया)।
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संबाध  : पुं० [सं० सम्√बाध् (बाधा देना)+घञ, ब० स०] १. बाधा। अड़चन। २. भीड़। समूह। ३. संघर्ष। ४. भंग। योनि। ५. कष्ट। तकलीफ। ६. भरा हुआ। ३. जनाकीर्ण।
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संबाधक  : वि० [सं० सम्√बाध (बाधा देना)+ण्वुल्-अक] १. बाधा डालने वाला। बाधक। २. तंग करने वाला या सताने वाला।
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संबाधन  : वि० [सं० ब० स०] १. बाधक होना। बाधा डालना। २. रेल-पेल। ३. रुकावट। ४. द्वारपाल। ५. शूल की नोक। ६. भंग। योनि। पुं०=शंबक या शंबुक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संबुद्ध  : वि० [सं० सम्√बुध् (ज्ञान प्राप्त करना)+क्त] १. जिसे बोध या ज्ञान हो चुका हो। २. जिसे ज्ञान प्राप्त हो चुका हो। ३. जागा हुआ। जाग्रत। ४. अच्छी तरह जाना हुआ। ज्ञात। पुं० १. ज्ञानी। २. गौतम बुद्ध। ३. जैनों के जिन देव।
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संबुद्धि  : स्त्री० [सं० सम्√बुद् (ज्ञान प्राप्त करना)+क्तिन] १. संबुद्ध होने की अवस्था या भाव। २. पूरी तरह से होने वाला ज्ञान या बोध। ३. बुद्धिमत्ता। समझदारी। ४. आह्वान। पुकार।
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संबुल  : पुं० [अ० सुंबुल] १. बाल-छड़ नामक सुगंधित वनस्पति। २. अनाज की बाल जिसमें दाने रहते हैं।
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संबुल खताई  : पुं० [फा०] तुर्किस्तान में होने वाला एक प्रकार का पौधा जो औषध के काम में आता है और जिसकी पत्तियों की नसें मिठाई में पड़ती हैं।
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संबेसर  : पुं० [सं० सं+हिं० बसेरा] नींद (डिं०)।
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संबोध  : पुं० [सं० सम्√बुध् (ज्ञान करना)+घञ्] १. सम्यक ज्ञान। पूरा बोध। २. अच्छी और पूरी जानकारी। ३. ढ़ारस। सान्त्वना।
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संबोधक  : वि० [सं०] संबोधन करनेवाला।
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संबोधन  : पुं० [सं०√बुध् (ज्ञान प्राप्त करना)+ल्युट्-अन] [वि० संबोधित, संबोध्य] १. नींद से उठाना। जगाना। २. ज्ञान या बोध कराना। ३. समझाना-बुझाना। ४. आह्वान करना। पुकारना। ५. व्याकरण में वह शब्द जिसमें किसी को पुकारा जाता है। विशेष-भूल से इसकी गिनती कारकों में की जाती है, जबकि यह क्रिया के रूप का साधन नहीं करता। ६. वह स्थिति जिसमें किसी से कुछ कहने के लिए उसके प्रति ध्यान दिया या मुख किया जाता है।
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संबोधनगीति  : स्त्री० [सं०] आधुनिक साहित्य में ऐसा विशद जाति काव्य जो किसी को संबोधित करके लिखा गया हो। और उच्च भावनाओं से युक्त हो (ओड)। जैसे—दिनकर कृत ‘हिमालय’ या पंत कृत ‘भावी’ पत्नी के प्रति।
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संबोधना  : सं० [सं०] १. समझाना-बुझाना। बोध कराना। ३. ढारस या सान्त्वना देना।
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संबोधि  : स्त्री० [सं० संबोध+इनि्] पूर्ण ज्ञान (बौद्ध)।
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संबोधित  : भू० कृ० [सं०] १. जिसे संबोधन किया गया हो। २. जिसका ध्यान आकृष्ट किया गया हो। ३. जिसे बोध कराया गया हो। ४. (विषय) जिसका ज्ञान या संबोधन कराया गया हो।
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संबोध्य  : वि० [सं०] १. जिसे संबोधन किया जाय। २. जिसे बोध या ज्ञान कराया जाय।
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