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सपिंड  : पुं० [सं० ब० स०] धर्म-शास्त्र में पारस्परिक दृष्टि से एक ही कला की सात पीढियों तक के लोग जो एक दूसरे को पिंडदान कर सकते और उनका श्राद्ध करने के अधिकारी होते हैं।
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सपिंडी  : स्त्री० [सं० सपिंड—ङीष्] मृतक के निमित्ति किया जाने वाला वह कर्म जिसमें वह पितरों या परिवारों के मृत प्राणियों के साथ पिंडदान द्वारा मिलाया जाता है।
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सपिंडीकरण  : पुं० [सं० सपिंड+च्वि√कृ (करना) ल्युट्—अनदीर्घ] एक प्रकार का श्राद्ध जिसमें मृतक को पिंडदान द्वारा पितरों के साथ मिलाते हैं।
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