शब्द का अर्थ
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सप्त :
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वि० [सं०] जो गिनती में सात हो। जैसे—सप्तभुज, सप्तऋषी। |
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सप्तऋषी :
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पुं०=सप्तर्षि। |
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सप्तक :
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पुं० [सं०] १. एक ही तरह की सात वस्तुओं, कृतियों आदि का समूह। सात वस्तुओं का संग्रह। जैसे—तारसप्तक, सतसई, सप्तक। २. संगीत में सातों स्वर का समूह। ‘षड़ज’ से ‘निषाद’ तक के सातों स्वर। (ऑक्टेव) विशेष—साधारण गाने बजाने के तीन सप्तक होते हैं। संगीत सदा मध्य सप्तक में होता है। पर कभी-कभी स्वर नीचा होकर मन्द्र और ऊँचा होकर तार में भी पहुँच जाता है। वि० १. सात। २. सातवाँ। |
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सप्तकी :
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स्त्री० [सं० सप्तक० ङीष्] सात लड़ियोंवाली करधनी। |
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सप्तकृत :
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पुं० [सं० त० त०] विश्वेदेवों में से एक। |
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सप्तग्रही :
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स्त्री० [सं०] एक ही राशि में सात ग्रहो का एकत्र होना, जो फलित ज्योतिश के अनुसार अशुभ फल देता है। |
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सप्तच्छद :
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पुं० [सं०] सर्तवर्ण वृक्ष। छतिवन। |
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सप्तजिह्व :
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वि० [सं०] जिसकी सात जिह्वाएं हों। पुं० अग्नि। विशेष—अग्नि की सात जीह्वाएँ हैं—काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधुम्रवर्णा, उग्र और प्रदीपा। |
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सप्तति :
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वि० [सं० सप्तान्+ति-नलोप] सत्तर। |
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सप्ततितम :
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वि० [सं० सप्तति+तमप्] सत्तरवाँ। |
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सप्तत्रिंश :
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वि० [सं० सप्तत्रिंशत—ड] सैंतीसवाँ। |
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सप्तत्रिंशत :
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वि० [सं०] सैंतीस। |
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सप्तदश (न्) :
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वि० [सं०] सत्रह। |
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सप्तद्वीप :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पुराणानुसार पृथ्वी के ये सात बड़े और मुख्य विभाग—जम्बु, कुश, प्लक्ष, क्रोँच, शाल्मलि, शाक और पुष्कर द्वीप। |
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सप्तधातु :
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पुं० [सं०] १. आयुर्वेद के अनुसार शरीर के ये सात संयोजक द्रव्य—रक्त, पित्त, माँस, वसा, मज्जा, अस्थि और शुक्र। २. चंद्रमा का एक घोड़ा। |
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सप्तधान्य :
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पुं० [सं०] जों, धान, उरद आदि सात अन्नो का मेल जो पूजा के काम आता है। सत-नजा। |
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सप्तनाड़ी चक्र :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] फलित ज्योतिष में एक प्रकार का चक्र जिसमें सब नक्षत्रों के नाम रहते हैं, और जिसके द्वारा वर्षा का आगम बताया जाता है। |
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सप्तपंचाश :
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वि० [सं० सप्तपंचाशत+ड, मध्यम० स०] सत्तवानवाँ। |
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सप्तपंचाशत :
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वि० [सं०] सत्तावन। |
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सप्तपत्र :
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वि० [सं० ब० स०] जिसमें सात पत्ते या दल हों। सात पत्तों वाला। पुं० १. सूर्य। २. मोतिया और मोगरा का नाम का बेला। ३. सप्तपर्ण। छतिवन। |
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सप्तपदी :
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स्त्री० [सं०] १. हिंदुओं में एक वैवाहिक रीति जिसमें वर और वधु एक दूसरे का वरण करते समय अग्नि को साक्षी मानकर उसकी सात परिक्रमाएं करके कोई बात पक्की करने या वचन देने की क्रिया। |
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सप्तवर्ण :
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पुं० [सं०] १. छतिवन का पेड़। २. प्राचीन काल की एक प्रकार की मिठाई। |
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सप्तपर्णी :
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स्त्री० [सं०] लज्जालू। लज्जावंती लता। |
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सप्त-पाताल :
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पुं० [सं०] पृथ्वी के नीचे सात लोक—अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल। |
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सप्तपुत्री :
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स्त्री० [सं०] सतपुतिया। |
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सप्तपुरी :
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स्त्री० [सं०] पुराणानुसार ये सात नगर या तीर्थ जो मोक्षदायक कहे गये हैं। अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवन्तिका (उज्जयिनी) और द्वारका |
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सप्त-प्रकृति :
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स्त्री० [सं०] प्रचीन भारतीय राजनीति में राज्य के ये सात अंग राजा, मंत्री, सामंत, देश, कोश, गढ़ और सेना। |
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सप्तबाह्य :
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पुं० [सं०] वाह्लीक देश। बलख। |
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सप्त-भंगी :
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स्त्री० [सं०] जैन न्याय के सात मुख्य अंग जिन पर उनका स्याद्वाद मत आश्रित है। |
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सप्तभद्र :
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पुं० [सं० ब० स०] १. सिरसी। शिरीष वृक्ष २. नवमल्लिका। नेवारि। ३. गुंजा। घुँघची। |
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सप्तभुवन :
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पुं० [सं०] भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनर्लोक, तपर्लोक और सत्यलोक ये सात भूवन या लोक। वि० सतमंजिल। सात खंडोवाला। (मकान)। |
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सप्तभूम :
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वि० [सं०] सात खंडो का। सतमंजिला। (मकान)। |
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सप्तम :
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वि० [सं० सप्तन्+उट्-मट्] [स्त्री० सप्तमी] सातवाँ। |
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सप्तमातृका :
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स्त्री० [सं०] ये सात माताएँ या शक्तियाँ जिनका पूजन विवाह आदि शुभ अवसरों के पहले होता है—ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी और चामुंडा। |
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सप्तमी :
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स्त्री० [सं०] १. चांद्र मास के किसी पक्ष की सातवीं तिथि। सातवाँ दिन। २. व्याकरण में, अधिकरण कारक की विभक्ति |
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सप्त-रक्त :
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पुं० [सं०] शरीर के सात अवयव जिनका रंग लाल होता है। यथा—हथेली, तलवा, जीभ, आँख, पलक का निचला भाग, तालू और होंठ। |
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सप्त-रात्र :
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पुं० [सं०] सात रातों का समय। वि०-सात रातों में समाप्त होने वाला। |
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सप्त-राशिक :
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पुं० [सं० ब० स०] गणित की एक क्रिया जिसमें सात राशियों के आधार पर किसी प्रश्न का उत्तर निकाला जाता है। |
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सप्तरुचि :
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पुं० [सं०] अग्नि का एक नाम। |
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सप्तर्षि :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. सात प्राचीन ऋषियों का समूह। या मंडल। विशेष- (क) शतपथ ब्राह्मण के अनुसार ये सात ऋषी—गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, यमदग्नि, वसिष्ठ, कष्यप और अत्रि हैं। (ख) महाभारत के अनुसार ये सात ऋषी—मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य और वसिष्ठ हैं। २. उत्तरी आकाश में के सात तारों का एक प्रसिद्ध मंडल या समूह जो रात में ध्रुव तारे की आधी परिक्रमा करता हुआ दिखाई देता है। (उर्सा मेजर)। विशेष—वास्तव में ये सात तारे एक बड़े नक्षत्र पुंज के (जिसमें कुल मिलाकर ५३ दृश्य नक्षत्र हैं) अंग या उसके अंतर्गत हैं जो पुराणानुसार ध्रुव की परिक्रमा करते हुए कहे गये हैं। |
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सप्तला :
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स्त्री० [सं०] १. सातला। २. चमेली। ३. रीठा। ४. घँघरी। |
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सप्तवादी :
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पुं० [सं० सप्तवादिन्] सप्तभंगी न्याय का अनुयायी अर्थात जैन। |
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सप्तविंश :
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वि०[सं०] सत्ताईस। स्त्री०उक्त संख्या जो अंको में इस प्रकार लिखी जाती है।—२७। |
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सप्तशीर्ष :
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पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम। |
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सप्तषष्ठ :
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वि० [सं० मध्यम० स०] सड़सठवाँ। |
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सप्तषष्ठि :
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वि० [सं०] सड़सठ। वि० सड़सठ की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—६७ । |
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सप्तसप्त :
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वि० [सं०] सतहत्तरवाँ। |
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सप्तसप्तति :
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वि० [सं०] सतहत्तर। स्त्री उक्त सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है। ७७। |
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सप्तसागर :
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पुं० [सं०] १. पृथ्वी पर के सातों सागरों का समूह। २. एक प्रकार का दान जिसमें सात पात्रों में घी, दूध, मधु, दही आदि रखकर ब्राह्मण को दिया जाता है। |
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सप्तसिंधु :
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पुं० [सं०] प्राचीन आर्यावर्त की प्रसिद्ध सात नदियाँ, सिंधु, परुष्णी (रावी), शतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना और गंगा। |
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सप्तस्वर :
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पुं० [सं०] संगीत के ये सात स्वर—स, रे, ग, म, प, ध, नि,। |
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सप्त-स्वरा :
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स्त्री० [सं०] पुरानी चाल की एक प्रकार की वीणा। |
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सप्तांग :
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वि० [सं० ष० त०] सात अंगो वाला। पुं०=सप्त-पृक्रति। (राजनीति का)। |
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सप्तांशु :
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पुं० [सं०] अग्नि। वि० सात किरणोंवाला। |
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सप्तात्मा (त्मन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] ब्रह्मा। |
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सप्तार्चि :
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पुं० [सं०] १. शनि ग्रह। २. चित्रक या चीता नामक वृक्ष। |
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सप्तार्णव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पृथ्वी पर के सातों समुद्र। |
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सप्तालु :
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पुं० [सं० सप्त+आलुच] सतालू। शफतालू। |
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सप्ताशीत :
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वि० [सं० मध्यम० स०] सत्तासी। स्त्री० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—८७। |
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सप्ताश्र :
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पुं० [सं० ब० स०] ज्यामिती में, सात भुजाओं वाला क्षेत्र। |
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सप्ताश्व :
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पुं० [सं० ब० स०] सूर्य (जिनके रथ में सात घोड़े जुते हुए माने गये हैं)। |
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सप्ताह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. सात दिन। सात दिनों की अवधि। जैसे—वे एक सप्ताह बाहर रहेगें। २. सात दिनों का समय विशेषतः सोमवार सरे रविवार तक के सात दिन। ३. उक्त सात दिनों में पड़ने वाले काम, व्यापार या नौकरी के दिन। जैसे—दो सप्ताह स्कूल और जाना है। ४. कोई ऐसा कृत्य या अनुष्ठान जो सप्ताह भर चलता रहे। जैसे—भागवत का सप्ताह, रेडियो सप्ताह। क्रि० प्र०—बैठना। बैठाना।—सुनना।—सुनाना विशेष—महानों को चार सप्ताहों में विभक्त किया जाता है। परंतु कई महीनों में अट्ठाइस से अधिक दिन होते हैं। २८ जितने अधिक दिनों का महीना हो उन दिनों की गिनती अंतिम सप्ताह में होती है। इस प्रकार का अंतिम सप्ताह ८, 9, १॰, ११ दिनों का भी होता है। |
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सप्ताहांत :
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पुं० [सं० सप्ताह+अंत] सप्ताह का अंतिम दिन जो शुक्रवार की आधी रात से सवेरे तक माना जाता है। (वीक-एंड) |
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