शब्द का अर्थ
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साँस :
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पुं० [सं० श्वास] १. प्राणियों का जीवन धारण के लिए नाक या मुँह से हवा अंदर खींचकर फेफड़ों तक पहुँचाने और उसे फिर बाहर निकालने की क्रिया। श्वास। दम। (ब्रीद) विशेष—(क) जल में रहनेवाले जीवों और वनस्पतियों में भी यह क्रिया होती है, पर उनका प्रकार और स्वरूप कुछ भिन्न होता है। जब तक यह क्रिया चलती रहती है, तब तक प्राणी या शरीर जीवित रहता है। (ख) सं० श्वास से व्युत्पन्न हिं साँस सर्वथैव पुल्लिंग है। पर उर्दू के कुछ कवियों ने भूल से इसका प्रयोग स्त्रीलिंग में किया है, और उनके अनुकरण पर हिंदी कोशों में भी इसे स्त्रीलिंग माना गया है जो ठीक नहीं है। क्रि० प्र०—आना।—खींचना।—छोड़ना।—जाना।—निकलना।—लेना। मुहा०—साँस उखड़ना= (क) साँस लेने की क्रिया का बीच में कुछ समय के लिए रुकना। जैसे—गाने में गवैये का साँस उखड़ना। (ख) मरने के समय रोगी का बहुत कष्ट से और रुक-रुककर साँस लेना। साँस ऊपर-नीचे होना=चिंता, भय आदि के कारण साँस की क्रिया बार बार रुकना। साँस खींचना=वायु अंदर खींचकर उसे इस प्रकार रोक रखना कि ऊपर से देखने पर निर्जीव या मृत जान पड़े। जैसे—शिकारी को देखते ही हिरन साँस खींचकर पड़ा गया। साँस चढ़ना=बहुत परिश्रम करने के कारण थक जाने पर साँस का जल्दी जल्दी आना-जाना। साँस चढ़ाना=प्राणायाम के समय अथवा यों ही वायु अंदर खींचकर उसे कुछ समय के लिए रोक रखना। साँस छूटना=साँस लेने की क्रिया बंद होना जो मृत्यु का लक्षण है। साँस टूटना=दे० ‘ऊपर ‘साँस उखड़ना’। साँस तक न लेना=इस प्रकार चुप या मौन हो जाना कि मानों अस्तित्व या उपस्थिति ही नहीं है। जैसे—जब मैंने उसे फटकारना शुरू किया, तब उसने साँस तक न लिया। साँस फूलना=अधिक शारीरिक श्रम करने के कारण साँस का जल्दी जल्दी चलने लगन। (ख) दमे का रोग होना। साँस भरना=दे० नीचे ‘ठंडा साँस लेना’। साँस रहते=जब तक जीवन रहे। जीते जी। जैसे—साँस रहते तो मैं कभी ऐसा न होने दूँगा। साँस लेना=परिश्रम करते-करते थक जाने पर सुस्ताने के लिए ठहरना या रुकना। उलटा साँस लेना= (क) मरने के समय बहुत कष्ट से और रुक-रुक कर साँस लेना। (ख) दे० नीचे ‘गहरा या ठंढा या लंबा साँस लेना’। गहर, ठंढा या लंबा साँस लेना= (क) बहुत अधिक मानसिक कष्ट के कारण अथवा (ख) मन पर पड़ा हुआ भार हलका कहोने के कारण कुछ अधिक देर तक हवा अंदर खींचते हुए फिर कुछ अधिक देर तक उसे बाहर निकालना जो ऐसे अवसरों पर प्रायः शरीर का स्वाभाविक व्यापार होता है। विशेष—साँस के शेष मुहा० के लिए दे० ‘दम’ के मुहा० २. किसी प्रकार की जीवनी-शक्ति या सक्रियता। दस। जैसे—अब मामले में कुच भी साँस नहीं रह गया, अर्थात् उसके संबंध में अब कुछ भी नहीं हो सकता; या अब यह और आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। ३. निरंतर बहुत समय तक काम करते रहते या थक जाने पर सुस्ताने के लिए बीच में किया जानेवाला विश्राम या लिया जानेवाला अवकाश। मुहा०—साँस लेना=कोई काम करते समय सुस्ताने के लिए बीच में कुछ ठहरना या रुकना। जैसे—जब तक यह काम पूरा न हो जाय, तब तक मुझे साँस लेनी की भी फुरसत न मिलेगी। ४. किसी चीज के फटने आदि के कारण उसके तल में पड़नेवाली पतली दरज या संकीर्ण संधि। मुहा—किसी चीज का) साँस लेना=किसी चीज का बीच में इस प्रकार फटना कि उसकी दरज में से हवा आ जा सके। जैसे—दीवार या फर्श का साँस लेना, अर्थात् बीच में से फटना। ५. उक्त प्रकार के अवकाश, दरज, या संधि में भरी हुई हवा। मुहा०—(किसी चीज में का) साँस निकलना=अंदर भरी हुई हवा का बाहर निकल जाना। जैसे—गुब्बारे या रबर के गेंद का साँस निकलना। (किसी चीज में) साँस भरना=अंदर हवा पहुँचाना या भरना। ६. एक प्रसिद्ध रोज जिसमें साँस बहुत जोर जोर से और जल्दी जल्दी चलता है। दम या साँस फूलने का रोग। दमा। |
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समानार्थी शब्द-
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साँसत :
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स्त्री० [हिं० साँस+त (प्रत्य०)] १. दम घुटने का सा कष्ट। २. बहुत अधिक शारीरिक कष्ट या यातना। ३. बहुत कठोर शारीरिक दंड। |
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साँसत घर :
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पुं० [हिं० साँसत+घर] १. कारागार की बहुत ही तंग तथा अत्यन्त अंधकारपूर्ण कोठरी जिसमें दुष्ट कैदी इसलिए रखे जाते हैं कि उन्हें बहुत अधिक शारीरिक कष्ट हो। २. बहुत अँधेरी और छोटी कोठरी। |
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सांसद :
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वि० [सं० संसद] (कथन, व्यवहार या आचरण) जो संसद या उसके सदस्यों की मर्यादा के अनुकूल हो। पूर्ण भद्रोचित। (पार्लमेन्टरी) |
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सांसद सचिव :
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पुं० [सं०] किसी राज्य के मंत्री से सम्बद्ध वह सचिव जो उसके संसद के कार्यों में सहायता देता हो। (पार्लमेन्टरी सेक्रेटरी) |
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सांसदी :
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पुं० [सं० संसद] वह जो संसद के रीति-व्यवहारों का अच्छा ज्ञाता हो और उसमें बैठकर सब काम ठीक तरह से चलाने में पूर्ण पटु हो। (पार्लिमेन्टेरियन) |
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साँसना :
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स० [सं० शासन] १. शासन करना। दंड देना। २. डाँटना-डपटना। ३. साँसत में डालकर बहुत कष्ट या दुःख देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सांसर्गिक :
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वि० [सं० संसर्ग+ञ्—इक] १. संसर्ग सम्बन्धी। २. संसर्ग से उत्पन्न होने या बढ़नेवाला। (कन्टेजस) |
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साँसल :
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पुं० [?] १. एक प्रकार का कंबल। २. खेतों में बीज बोना। |
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साँसा :
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पुं० [हिं० साँस] १. श्वास। साँस। २. जीवन। जिंदगी। जैसे—जब तक साँसा, तब तक आशा। पुं० [सं० संशय] १. संदेह। शक। उदा०—सतगुर मिलिया साँसा भाग्या, सैन बताई साँची। —मीराँ। २. भय। डर। पुं०=साँसत। जैसे—मेरी जान तभी से साँसे में पड़ी है। वि०=साँचा (सच्चा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सांसारिक :
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वि० [सं०] [भाव० सांसारिकता] १. जिसका संबंध इस संसार या उसकी वस्तुओं, व्यापारों आदि से हो। आध्यात्मिक तथा पारलौकिक से भिन्न। २. जिसका संबंध मुख्यतः जीवन की आवश्यकताओं विषय-भोगों आदि से हो। |
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सांसिद्धिक :
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वि० [सं० सांसिद्धि+ठञ्—इक] १. संसिद्धि सम्बन्धी। २. प्राकृतिक। स्वाभाविक। ३. आत्म-भू। स्वतः प्रसूता। |
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साँसी :
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पुं० [?] एक जंगली और यायावर या खानाबदोश जाति। |
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सांस्कारिक :
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वि० [सं संस्कार+ठञ्—इक] १. संस्कार-संबंधी। २. संस्कार-जन्य। ३. अन्त्येष्टि क्रिया से सम्बन्ध रखनेवाला। |
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सांस्कृतिक :
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वि० [सं० संस्कृति+ठञ्—इक] संस्कृति से संबंध रखने या संस्कृति के क्षेत्र में आने या होनेवाला। (कलचरल) |
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सांस्थानिक :
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वि० [सं० संस्थान+ठक्—इक] संस्थान-सम्बन्धी। संस्थान का। |
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सांस्पर्शिक :
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वि० [सं० संस्पर्श+ठञ्—इक] १. संस्पर्श-सम्बन्धी। २. संस्पर्श से उत्पन्न या फैलनेवाला। २. दे० ‘संक्रामक’। |
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