शब्द का अर्थ
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सिल :
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स्त्री० [सं० शिला] १. पत्थर की चट्टान। शिला। २. पत्थर की चौकोर पटिया जो छतें आदि पाटने के काम आती हैं। सिल्ली। ३. पत्थर की चौकोर पटिया जिस पर बट्टे से मसाला आदि पीसते हैं। ४. उक्त आकार प्रकार का ढला हुआ चाँदी, सोने आदि का खंड। (इनगाँट) जैसे—चाँदी की सिलें बेंचकर सोने की सिल खरीदना। ५. काठ की वह पटरी जिसे दबाकर रुई की पूनी बनाते हैं। पुं० [सं० शिल] कटे हुए खेत में गिरे हुए अनाज के दाने चनकर निर्वाह करने की वृत्ति। दे० ‘शिलौंछ’। पुं० [देश०] बलूत की जाति का एक प्रकार का पहाड़ी वृक्ष जिसे ‘बंज’ और ‘मारु’ भी कहते हैं। पुं० [अ०] क्षय नामक रोग। राज यक्ष्मा। तपेदिक। दिक। |
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समानार्थी शब्द-
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सिलक :
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स्त्री० [हिं० सलग=लगातार] १. लड़ी। श्रृंखला। २. गले में पहनने की माला या हार, विशेषतः चाँदी या सोने का। ३. पंक्ति। श्रेणी। ४. तागा। धागा। पुं० सिल्क (रेशम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलकी :
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स्त्री० [देश०] बेल। लता। बलनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिल-खड़ी :
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स्त्री० दे०‘गोरा पत्थर’। |
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सिलगना :
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अ०=सुलगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलना :
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अ० [हिं० सीना] सिलाई होना। सीया जाना। जैसे—कुरता सिल रहा है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलप :
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पुं०=शिल्प।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलपची :
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स्त्री०=चिलमची।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलपट :
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वि० [सं० शिला-पट्ट] १. जिसका तल चिकना, चौरस और साफ हो। २. घिसने आदि के कारण जिसके ऊपर के अंक, चिन्ह आदि नष्ट हो गये हों। जैसे—सिलपट अठन्नी। ३. बुरी तरह से नष्ट किया हुआ चौपट। |
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सिलपोहनी :
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स्त्री० [हिं० सिल+पोहना] विवाह की एक रीति। |
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सिलफची :
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स्त्री० [फा० सैलाबी] चिलमची। |
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सिल-फोड़ा :
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पुं० [हिं० सिल+फोड़ना] पत्थर चूर नाम का पौधा। पाषाण-भेद। |
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सिल-बरुआ :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का बाँस जो पूरबी बंगाल की ओर होता है। |
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सिलवट :
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स्त्री० [देश] किसी समतल तथा कोमल तल के मुड़ने दबने पिचकने या सूखने के कारण उसमें उभरने वाला वह रेखाकर अंश जो उसकी समतलता नष्ट करता है। शिकन। सिकुड़न। क्रि० प्र०—डालना।—पड़ना। |
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सिलवाना :
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स० [हिं० सीना का प्रे०] किसी को कुछ सीने में प्रवृत्त करना। |
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सिलसिला :
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पुं० [अ०] १. वह संबंध जो एक क्रम में होने वाली घटनाओं, बातों आदि में होता है। एक के बाद एक करके चलता रहने वाला क्रम। २. कोई बँधा हुआ क्रम। परम्परा। ३. कतार। पंक्ति। श्रेणी। ४. लड़ी। श्रंखला। ५. ठीक तरह से लगा हुआ क्रम। तरतीब। वि० [सं० सिक्त] [स्त्री० सिल-सिली] १. भीगा हुआ। आर्द्र। गीला। तर। २. ऐसा चिकना जिस पर पैर या हाथ फिसलता हो। |
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सिलसिलाबंदी :
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पुं० [अ०+फा०] १. क्रम का बँधान। तरतीब। २. पंक्ति श्रेणी आदि के रूप में लगे हुए होने की अवस्था या भाव। |
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सिलसिलेवार :
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वि० [अ०+फा०] सिलसिले या क्रम में लगा हुआ। अव्य० सिलसिले या क्रम का ध्यान रखते हुए। क्रमिक रूप से। |
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सिलह :
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पुं० [अ० सिलाह] १. हथियार। शास्त्र। २. कवच। (राज०) |
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सिलहखाना :
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पुं० [अ० सिलाह+फा० खानः] वह स्थान जहाँ सब तरह के बहुत से हथियार रखे जाते हैं। शस्त्रागार। |
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सिलहट :
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पुं० [?] १. असम प्रदेश का एक नगर। २. उक्त नगर के आस-पास की नारंगी जो बहुत बढ़िया होती है। ३. एक प्रकार का अगहनी धान। |
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सिलहबंद :
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वि० [अ० सिलह+फा० बंद] सशस्त्र। हथियारबंद। शस्त्रों से सुसज्जित। |
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सिलहसाज :
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पुं० [अ० सिलह+फा० साज] [भाव० सिलहसाजी] हथियार बनाने वाला कारीगर। |
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सिलहार, सिलहार :
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वि० दे० ‘सिलाहर’। |
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सिलहिला :
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वि० [हिं० सील,सीड+हीला=कीचड़] [स्त्री०सिलहिली] (स्थान) जिस पर पैर फिसले। रपटन वाला। कीचड़ से चिकना। |
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सिलही :
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स्त्री० [देश] बतख की जाति का एक प्रकार का पक्षी जो प्रायः जलाशयों के पास रहता है और सिवार खाता है। |
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सिला :
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पुं० [सं० शिल] १. फसल कट चुकने के बाद खेत में गिरे या पड़े या बचे खुचे अन्न कण चुनने की वृत्ति। २. उक्त प्रकार से बचे और खेत में बिखरे हुए अनाज के दाने। क्रि० प्र०—चुनना।—बीनना। ३. अनाज का वह ढेर जो अभी पछोरा तथा फटका जाने को हो। स्त्री०=शिला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अ० सिलह] १. प्रतिकार। बदला। २. पारिश्रमिक या पुरस्कार। इनाम। |
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सिलाई :
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स्त्री० [हिं० सिलना+आई (प्रत्य०)] १. सुई से सीने की क्रिया, ढंग या भाव। जैसे—कपड़े या किताब की सिलाई। २. सीने पर दिखाई पड़ने वाले टाँके। सीवन। ३. सीने के बदले में मिलने वाला पारिश्रमिक या मजदूरी। स्त्री०=सलाई। स्त्री० [सं० शलाका] बिजली। उदा—सिहरि सिहरि समरवै सिलाई प्रिथीराज। स्त्री० [देश०] ऊख की फसल को हानि पहुँचाने वाला भूरापन लिए गहरे लाल रंग का कीड़ा। |
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सिलाजीत :
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पं०=शिलाजीत (शिलाजतु)। |
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सिलाना :
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स० [हिं० सिलना का प्रे०] सीने का काम किसी दूसरे से कराना। जैसे—दरजी से कपड़े या जिल्दसाज से किताबें सिलवाना। स० [हिं० सिलना का प्रे०] सीड़ या सील में रखकर ठंढ़ा या गीला करना। अ०=सीलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलापाक :
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पुं० [हिं० शिला+पाक] पथरफूल। छरीला। शलज। |
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सिलाबी :
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वि० [हिं० सील+फा०आब=पानी या फा० सैलाबी] सीड़वाला। तर। |
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सिलारस :
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पुं० [सं० शिलारस] १. सिल्हक वृक्ष। २. उक्त वृक्ष का गोंद या निर्यास जो सुगंधित होता है। |
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सिलावट :
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पुं० [सं० शिला+पटु] पत्थर काटने और गढने वाले। संग-तराश। स्त्री० [हिं० सिलना] सिलने या सीये जाने की क्रिया या ढंग। सिलाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलासार :
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पुं०[सं०शिलासार] लोहा। |
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सिलाह :
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पुं० [अ०] १. जिरह-बकतर। कवच। २. अस्त्र-शस्त्र। हथियार। |
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सिलाहखाना :
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पुं०=सिलहखाना (शस्त्रागार)। |
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सिलाहर :
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वि० [हिं० सिला+हर (प्रत्य०)] १. जो सिला वृत्ति से अपनी जीविका चलाता हो। २. बहुत ही निर्धन। अकिंचन। दरिद्र। |
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सिलाही :
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पुं० [अ० सिलाई+ई (प्रत्य०)] शस्त्र धारण करने वाला। सैनिक। सिपाही। |
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सिलिंगिया :
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स्त्री० [शिलांग नगरी] पूरबी हिमालय के शिलांग प्रदेश में पाई जाने वाली एक प्रकार की भेड़। |
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सिलिप :
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पुं०=शिल्प।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलिमुख :
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पुं०=शिलीमुख (भौंरा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलिया :
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पुं० [सं० शिला] एक प्रकार का पत्थर जो मकान बनाने के काम में आता है। |
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सिलियार, सिलियारा :
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पुं० दे० ‘सिलाहर’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिली :
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स्त्री० [सं० शिली] १. धारदार या नुकीली चीज। २. आँख में अंजन लगाने की सलाई। (राज०) |
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सिलीपर :
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पुं० [अं० स्लीपर] १. एक प्रकार का हलका जूता जिसके पहनने पर पंजा ढका रहता है और एड़ी खुली रहती है। आराम पाई। २. लकड़ी की बड़ी धरन। ३. विशेषतः रेल की पटरी के नीचे बिछाई जाने वाली लकड़ी की धरन। पुं० [अं० स्लीपर] शयनिका। (दे०) |
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सिलीमुख :
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पुं०=शिलीमुख (भौंरा)। |
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सिलेट :
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स्त्री० [अं० स्लेट] १. एक प्रकार का कोमल मटमैला पत्थर। २. उक्त पत्थर की वह चौकोर पट्टी जिस पर छोटे बालक लिखने का अभ्यास करते हैं। ३. उक्त प्रकार की पट्टी जिसमें पत्थर की बजाय लोहे, शीशे आदि की चद्दर भी लगी होती है। |
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सिलेटी :
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पुं० [हिं० सिलेट] सिलेट की तरह का खाकी रंग। वि० उक्त प्रकार के रंग का। |
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सिलेदार :
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पुं० [फा० सिलहदार] १. सिलहखाने या शस्त्रागार का प्रधान अधिकारी। |
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सिलोंध :
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स्त्री० [देश] एक प्रकार की बड़ी मछली जो प्रायः ६ फुट तक लंबी होती है। |
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सिलोच्च :
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पुं० [सं० शिलोच्च] एक पर्वत जो गंगा तट पर विश्वामित्र के सिद्धाश्रम से मिथिला जाते समय राम को मार्ग में मिला था। |
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सिलौआ :
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पुं० [देश०] सन के मोटे रेशे जिनसे टोकरियाँ बनाई जाती हैं। |
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सिलौट :
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स्त्री०=सिलौटी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिलौटा :
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पुं०[हिं० सिल+बट्टा] १.चीजें पीसने की सिर और बट्टा दोनों। २. बड़ी सिल। |
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सिलौटी :
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स्त्री० हिं० ‘सिलौट’ का स्त्री० अल्पा०। |
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सिल्क :
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पुं० [अं०] १. रेशम। २. रेशमी कपड़ा। |
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सिल्किन :
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वि० [अं० सिल्केन] सिल्क का। रेशमी। जैसे—सिल्किन। साड़ी । |
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सिल्प :
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पुं०=शिल्प।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सिल्लकी :
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स्त्री० [सं० सिल्ल+कन् ङीष्]=शल्लकी। (सलई)। |
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सिल्ला :
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पुं० दे० ‘सीला’। |
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सिल्ली :
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स्त्री० [सं० शिला] १. पत्थर की छोटी पतली पटिया जो प्रायः छत पाटने के काम आती है। २. लकड़ी का वह तख्ता जो उक्त पत्थर की तरह छत पाटने के काम आता है। (पश्चिम) ३. एक विशेष प्रकार के पत्थर का वह छोटा टुकड़ा जिस पर रगड़कर नाई लोग उस्तरे की धार तोज करते हैं। (ह्वेट-स्टोन)। ४. उक्त प्रकार के रूप में ढ़ाली हुई चाँदी या सोने का खंड। सिल। स्त्री० [हिं० सिल्ला] फटकने के लिए लगाया हुआ अनाज का ढेर। स्त्री० [?] १. नदी में वह स्थान जहाँ पानी कम और धारा बहुत तेज होती है। (माझी) २. एक प्रकार का जल पक्षी जिसका माँस खाया जाता है। |
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सिल्हक :
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पुं० [सं०] १. सिलारस नामक वृक्ष। २. उक्त वृक्ष से निकलने वाला गन्ध द्रव्य। |
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सिलहकी :
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स्त्री० [सं० सिल्हक ङीष]=सिलहक। |
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