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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…


हेरादोतस एक क्रांतिकारी दल में शामिल हो गया जिसका उद्देश्य लिग्देमिस और पारसीक साम्राज्य की गुलामी के जुएं को उतार फेंकना था। दल का नेता हेरादोतस का चाचा पेनयासिस था। वह वीर रस का कवि था। पेनयासिस पकड़ लिया गया और लिग्देमिस द्वारा उसे प्राण दंड दिया गया। हेरादोतस सामोस द्वीप को पलायन कर गया। यहां वह सात-आठ वर्ष रहा। उसने इस्तोरिया (III 39-60) में द्वीप की बड़ी प्रशंसा की है। सूदा के अनुसार उसकी शिक्षा-दीक्षा के विषय में ज्ञात नहीं पर उसने सामोस-प्रवास में आयोनियन (पुरानी यूनानी) भाषा सीखी और उस पर अधिकार प्राप्त किया। उसने अपना ग्रंथ इसी भाषा में लिखा है। सूदा से यह भी सूचना मिलती है कि अपने चाचा के स्थान पर विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए वह हलीकारनासोस लौट आया और अंततः नगर के आतंक लिग्देमिस को सत्ता से च्युत कर दिया गया। हाल की खोजों के अनुसार उसी समय के उत्कीर्ण लेख हलीकारनासोस में पाए गए हैं जिससे पता चलता है कि आयोनियन भाषा सरकारी कामकाज की भाषा थी अतः सूदा की तरह यह कल्पना करने की जरूरत नहीं है कि हेरादोतस ने आयोनियन भाषा कहीं और से सीखी होगी। तथापि सूदा ही ऐसा स्रोत है जिससे विदित होता है कि हेरादोतस ने अपनी जन्मभूमि की मुक्ति के लिए नायक की भूमिका अदा की। यह अपने आप में एक ऐसा अर्थपूर्ण कारण है जिससे उनके लोमहर्षक कार्यों पर शक नहीं किया जा सकता। फिर भाषा की ओर लौटते हैं। जैसा कि फ्रांसीसी मानवविज्ञानी माइकल पिस्सेल कहता है हेरादोतस को अन्य भाषाओं का ज्ञान नहीं था क्योंकि विभिन्न देशों की यात्रा के दौरान वह दुभाषिए की सेवाएं लेता था। बहरहाल, लिग्देमिस के पतन के बाद हेरादोतस हलीकारनासोस लौट आया। लेकिन नया सत्तासीन दल भी उसका विरोधी था। अतः उसे अपने भले के लिए हलीकारनासोस को छोड़ दिया और जीवन भर यायावरी करने के लिए निकल पड़ा।

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