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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


यह गीत निर्माणाधीन फिल्म ‘कंगन’ (1939) के लिए लिखा गया था। प्रदीप जिस समय आए उस समय इस फिल्म के चार गीत फिल्माने शेष रह गए थे। ये चारो गीत प्रदीप ने लिखे। अन्य गीत नरोत्तम व्यास ने लिखे थे जो पहले से ही कार्यरत थे। प्रदीप की गायन प्रतिभा देखकर हिमांशु राय की राय से फिल्म के संगीतकारद्वय सरस्वती देवी और रामचन्द्र पाल ने प्रदीप से तीन गानों का पार्श्वगायन भी करा लिया। इनमें दो कबीर के भजन थे- अरे रे कबीर... और मारे राम जिआए राम...। तीसरा गीत प्रदीप का लिखा था- मैं तो आरती उतारूं राधेश्याम की रे, मुक्तिधाम की रे... जो उन्होंने फिल्म की नायिका लीला चिटणीस के साथ गाया था।

‘कंगन’ टिकट-खिड़की पर हिट रही, विशेषकर इसके गीतों के कारण। विनोद तिवारी बताते हैं कि अमृत लाल नागर ने 29 सितम्बर 1939 को प्रदीप को लिखे पत्र में कहा, ‘‘फिल्म ‘कंगन’ निशात सिनेमा में लगी है। तुम्हारे लिखे गीतों को लोगों ने खासतौर पर पसंद किया है। इससे मुझे उतनी ही प्रसन्नता हुई है जितनी अपनी किसी चीज की तारीफ सुनकर होती है।’’

बाद में लिए गए एक साक्षात्कार में प्रदीप ने बताया, ‘‘इसके पहले बाम्बे टाकीज की चार-पांच फिल्में फ्लाप हो गईं थीं। इससे लोग निराश थे। कहते थे पं. नरोत्तम व्यास डायलाग तो अच्छे लिखते हैं लेकिन गाना-वाना लिखना इनको मालूम नहीं है। तो तलाश थी किसी टैलेंट की और उन्होंने देखा इसमें (प्रदीप में) टैलेंट है, देखा क्या, प्रभु ने दिखाया! पहली पिक्चर सिल्बर जुबली हो गई। सिल्बर जुबली हो गई तो अखबार में फोटो छपे।’’

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