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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


लेकिन फिल्मी-गीतों के सफर का शुरुआती रास्ता इतना हमवार नहीं था जितना दूर से दिखाई दे रहा था। विरोध भी झेलना पड़ा और जिल्लत भी। अनुबंध होने के बाद प्रदीप से कहा गया कि उन्हें नरोत्तम व्यास के सुपरविजन में चार गीत लिखने हैं। वे व्यास से मिले तो उसने अपने स्थानापन्न का बड़ा ठंडा स्वागत किया। पहले गीत-कला पर एक भाषण पिलाया। प्रदीप समझ गए कि नरोत्तम व्यास यही समझ रहे हैं कि इस लड़के को ट्रायल पर रखा गया है। उनकी भ्रांति दूर करने के लिए प्रदीप ने बताया कि वे दो सौ रुपए मासिक पर अनुबंधित गीतकार है। तब वे पिघले। कहा, ‘‘लिखो, लिखो!’’ बुर्जुग व्यास विद्वान थे। पर कविता का यथेष्ट ज्ञान न था। मात्राएं गिनकर गीत लिखते थे। फिर भी प्रदीप के गानों में कमियां निकालते और बंगाली भाषा में हिमांशु राय को उल्टा-सीधा समझाते। हिमांशु राय पर कोई असर न होता। प्रदीप का सोचना था कि गाने लचीले होने चाहिए। मात्राएं गिनकर लिखने वाले कितने ही लोग भाग चुके थे।

अचानक हिमांशु राय बीमार पड़ गए और बीमारी के कुछ ही दिनों बाद 16 मई 1940 को परलोक सिधार गए। बाम्बे टाकीज का नियंत्रण, बड़े भागीदार होने के कारण, राय बहादुर चुन्नीलाल के हाथों में आ गया। उन्होंने फिल्म निर्माण के दो यूनिट बना दिए। शषधर मुकर्जी को साउंड रिकार्डिंग के काम से मुक्त कर एक यूनिट का प्रोड्यूसर बना दिया गया। दूसरा यूनिट देविका रानी के नियंत्रण में था। देविका रानी ने अमिय चक्रवर्ती के सहयोग से फिल्में बनाना शुरू किया। उल्लेखनीय है कि यूरोप में द्वितीय विश्व-युद्ध छिड़ जाने के कारण बाम्बे टाकीज की फिल्मों के जर्मन निर्देशक फ्रांज आस्टेन और छायाकार जोजे़फ विर्षिग को युद्ध-बंदी के रूप में देवलाली के अस्थाई कैंप में भेज दिया गया था। उनके स्थान पर क्रमशः शषधर मुकर्जी और आर.डी. माथुर ने असाधारण सफलता पाई। प्रदीप दोनों यूनिटों से जुड़े रहे क्योंकि दोनों को उनकी आवश्यकता थी और वे उनके कलम के जादू को जानते थे।

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