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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


प्रदीप हिमांशु राय के दफ्तर में उनसे मिले। उस समय वहाँ देविका रानी, अशोक कुमार, लीला चिटनिस, निर्देशक फ्रेंज आस्टिन, शषधर मुकर्जी और अमिय चक्रवर्ती जैसी हस्तियां मौजूद थीं। राय ने प्रदीप से एक गीत सुनाने के लिए कहा। यह फिल्मों में उनकी प्रवेश परीक्षा थी। प्रदीप भी रौ में आ गए। गाया-

तुम हो कहो, कौन ?
अब तो खुलो, प्राण, मुंदकर रहो यों न! तुम हो...

मेरे गगन में घिरी थी सघन रात
तुमने किरण तूल से रंग दिया प्रात
मुकलित किए स्पर्श से म्लान जलजात
मैं था चकित, तुम चपल-कर पुलक गात!
कुछ मैं उठा पूछ, तुम हंस हुए मौन। तुम हो...

स्वर और शब्दों का जादू सभी श्रोताओं के सिर चढ़कर बोलने लगा। पारखी हिमांशु राय को प्रदीप जंच गए। उन्होंने कहा, ‘‘आपको बाम्बे टाकीज में गीतकार के रूप में मैं रखना चाहता हूं। जैसे सभी कलाकारों और कर्मचारियों को मासिक वेतन मिलता है आपको भी मिलेगा - करने को काम हो या न हो। बोलो, क्या कहते हो?’’

प्रदीप ने स्पष्ट कहा, ‘‘मुझे फिल्मों में गीत लिखने का अनुभव नहीं है।’’ (लगभग इन्हीं शब्दों में दिलीप कुमार ने देविका रानी से, एक्टिंग करने के प्रस्ताव पर कहा था, एक्टिंग के बारे में मैं कुछ नहीं जानता।) निर्भीक प्रदीप बोल रहे थे, ‘‘फिर भी यदि मेरे गीतों की वजह से आपकी फिल्म सफल नहीं हो सकी तो आप स्वयं को ठगा महसूस करेंगे और यदि फिल्म सफल हुई, गीत लोकप्रिय हुए तो मुझे लगेगा कि इस वेतन में मैं ठगा गया हूं।’’ प्रदीप के जेहन में वही अध्यापकी वाला 60-70 रू. का वेतन था।

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