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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


हिमांशु राय को लड़के की अक्खड़ता में ईमानदारी दिखी। आचार्य हतप्रभ था कि यह कल का छोकरा हिमांशु राय जैसी हस्ती से कैसे बात कर रहा है! पर एक अनामिक आकर्षण उसे प्रदीप की ओर खींच रहा था। वे प्रदीप को पकड़कर दफ्तर के बाहर लाए। छूटते ही बोले, ‘‘मैं सच्ची बात कहता हूं, बुरा मत मानना। तुम महामूर्ख हो। लक्ष्मी तिलक करने जा रही है और आप माथा छिपाए घूम रहे हैं। बस रट लगाए है कि यह नहीं करूंगा, वह नहीं करूंगा।’’

आचार्य के कठोर वचनों के पीछे छिपा स्नेह भावुक हृदय प्रदीप ने तत्काल पहचान लिया। फिर भी उनके संशय बने रहे। साहस करके कहा ‘‘भाई, मुझे मालूम नहीं कि फिल्म लाइन में क्या करना चाहिए!’’ गुरुमंत्र-सा देते हुए आचार्य ने कहा, ‘‘सब आ जाएगा। बस, एक बात का ध्यान रखो कि हमारा जो यह फिल्म का माध्यम है वो सरल भाषा का है। तुम यहाँ पांडित्य का प्रदर्शन करोगे तो काम नहीं चलेगा। इसलिए ऐसे गीत लिखो जो सीधे हों, सरल हों, छोटे-छोटे छंद के हों। तुम इतना नहीं कर सकोगे क्या! समय सत्य को स्वीकारो, कवि।’’

प्रदीप की शंकाएं अभी भी शमित नहीं हुई थीं। संकोच से पूछा, ‘‘मैं रहूंगा कहाँ? और अगर मैं फेल हो गया तो?’’ उनके कथन में छिपी विवशता को पहचानकर आचार्य ने हंसते हुए कहा, ‘‘इधर हमने बाम्बे टाकीज में फांसीघर बना रखा है, फेल होने पर वहीं लटका दिए जाओगे।... मैं तुम्हारे भाई की तरह हूं, रह जाओ यहाँ, सब मेरे ऊपर छोड़ दो। तुम्हारे रहने का इंतजाम मैं करूंगा।’’ भगवान के भेजे इस दूत को प्रदीप देखते रह गए। हिमांशु राय जानते थे कि अपने तर्कों से आचार्य प्रदीप के हृदय में संशय का कोई अवकाश नहीं छोड़ेगा। उन्होंने अपेक्षित आवश्यकताएं पूरी कराई और उन दोनों को बुला भेजा। हिमांशु राय ने प्रदीप को एक कागज पकड़ाया जिसमें लिखा था- ‘‘रामचंद्र नारायण द्विवेदी ‘प्रदीप’ हैज बीन अप्पाइन्टेड ऐज लिरिक राइटर इन अवर कन्सर्न आन ए पे आफ टू हन्ड्रेड रुपीस पर मन्थ।’’

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