जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
झेलम के पार
झेलम पर जहाजों का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया। सिकंदर का उद्देश्य ‘पूर्वी समुद्र’ (?) तक पहुंचना था जो उसके भौगोलिक ज्ञान के अनुसार थोड़ी ही दूर पर होना चाहिए था। मगध और गंगा घाटी से मकदून अनजान थे। रावी, चेनाब, झेलम और व्यास के अतिरिक्त सिकंदर ने सतलुज का ही नाम सुना था। उनके अनुसार अगला राज्य गंदारिदै होगा जहां से पूर्वी समुद्र प्रारंभ होता होगा।
पूर्वी समुद्र पहुंचने को उत्सुक सिकंदर की सेना चेनाव पार करने को प्रस्तुत हो गई। तभी अश्वकों के विद्रोह की सूचना आई। उसे दबाने के उपाय किए गए। चेनाव पार कर गंदारिदै राज्य में प्रवेश किया। यहां पुरु का भतीजा छोटा पुरु राज करता था। वह भाग गया। राज्य पुरु को दे दिया गया। अब सिकंदर ने रावी पार की। वहां की एक जनजाति ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद कठ जाति के लोग मिले। यह बड़ी लड़ाकू जाति थी। पुरु की सहायता से उन्हें परास्त किया गया। 12 सौ यूनानी घायल हुए। नरसंहार में 17 हजार लोग मारे गए, 70 हजार बंदी बनाए गए। कठों का राज्य भी पुरु को दे दिया गया।
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