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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...



भारत से प्रत्यावर्तन

व्यास नदी सिकंदर के उत्कर्ष का चरम बिंदु थी। यहां आकर, थकी हारी, घर से बहुत दूर, अपनों से बिछुड़ी सेना ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। सिकंदर के चमत्कारी भाषण भी निरर्थक सिद्ध हुए। सिकंदर बड़ा लज्जित हुआ और तीन दिन तक अपने शिविर में विषण्ण मनःस्थिति में पड़ा रहा। अंततः सैनिकों को वापसी का आदेश दे दिया गया।

व्यास नदी के तट पर सिकंदर ने 12 विशाल वेदियां बनवाईं। उनकी विधिवत पूजा की। चेनाव पार कर सिकंदर झेलम के तट पर आया। यहां मालव व क्षुद्रक गणों ने उसका प्रतिरोध किया। इनके पास विशाल सेना थी। युद्ध में सिकंदर घायल हो गया। उसने मालवों के राज्य के सभी नर-नारी तथा बालकों का वध करवा दिया। क्षुद्रकों ने हथियार डाल दिए। फिर उसने व्यास के आसपास की जातियों-शिवि तथा अगलस्स-को पराजित किया। अपनी विजय के अंतिम दौर में पंजाब की नदियों के संगम के नीचे के सोग्डोई तथा मुषक राज्य जीते। पाटल पर भी अधिकार हुआ।

सिकंदर ने अपनी सेना का बहुत बड़ा भाग स्थल मार्ग से सेनापति क्रातेरोस के नेतृत्व में कार्मेनिया (आधुनिक दक्षिणी ईरान) को रवाना कर दिया। अपने बाल-सखा नौसेनाध्यक्ष नेआर्खोस को फरात नदी के मुहाने का रास्ता ढूंढने का साहसिक कार्य सौंपा और उसके जहाजी बेड़े को रवाना किया। स्वयं सिकंदर ने नेआर्खोस और उसके साथियों को सहारा देने के लिए जेड्रोशिया (बलूचिस्तान) से होकर निकटस्थ स्थल-मार्ग चुना। उसका उद्देश्य था कि वह स्थान-स्थान पर कुएं खोदकर पानी की तथा यथासंभव आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर नेआर्खोस के बेडे़ को सहायता देता चले।

सिकंदर की सेना और नेआर्खोस की नौसेना दोनों को मार्ग में अनेक कष्ट झेलने पड़े। यहां सिकंदर का आदर्श नेता रूप दिखाई दिया। सैनिकों के साथ वह खुद पैदल चला, पानी की कमी होने पर खुद भी पानी नहीं पिया। नेआर्खोस को कई दिनों तक जंगली खजूर और मछलियों से काम चलाना पड़ा।

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