लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1

देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

दूसरा बयान


 गौरव बेटे...।'' दो युवकों के सामने एक पत्थर पर बैठा बेहद बूढ़ा व्यक्ति उनमें से एक को सम्बोधित करके कहता है-''तुम दोनों का रहस्य तुम्हारे अलावा केवल मैं जानता हूं और जब तक 'वे' वापस नहीं आ जाते, उस समय तक तुम्हारा रहस्य कोई जान भी न पाए-अगर यह' रहस्य खुल गया तो सारा काम चौपट हो जाएगा और उनकी जान भी खतरे में पड़ जाएगी।''

''ऐसा ही होगा, गुरुजी।'' गौरव नामक युवक कहता है। गौरव की कमर में एक खंजर बंधा है, बगल में बटवा, हाथ में कमन्द, जिस्म पर धोती और कुर्ता पहने हुए है। सिर पर एक बड़ी-सी पगड़ी बंधी है-उसके समीप ही खड़ा दूसरा युवक भी लगभग वैसे ही लिबास में है। उनके सामने बैठे दढ़ियल व्यक्ति के जिस्म पर गेरुए कपड़े हैं। सिर और दाढ़ी के बाल सन की भांति सफेद हो चुके हैं। दाढ़ी उसकी नाभि को स्पर्श कर रही है। उसके चेहरे का अधिकांश भाग बालो में छुपा हुआ था।

''लेकिन तब तक हम मुकरन्द तो चुरा लाएं, गुरुजी।'' दूसरे युवक के मुंह से नारी स्वर निकलता है।

''तुम नहीं, वन्दना बेटी।'' गुरुजी प्यार से कहतें हैं-''वहां केवल गौरव को जाने दो।''

'क्यों?'' युवक के भेष में वन्दना नामक युवती ने कहा- ''क्या गुरु को मेरी ऐयारी पर भरोसा नहीं?''

'जिद नहीं किया करते बेटी, कह दिया सो कह दिया।'' बूढ़ा व्यक्ति कहता है।

इसके बाद उन तीनों में कुछ खास बातें होती रहती हैं, कुछ देर बाद गौरव और वन्दना गुरु के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं और उनसे विदा होकर पैदल ही नदी के सहारे एक तरफ बढ़ जाते हैं। कुछ दूर निकल जाने के बाद वे दोनों आमने-सामने एक पत्थर पर बैठ जाते हैं।

उनके चारों ओर घना जंगल है, नदी से वे काफी दूर निकल आए हैं। आसपास कोई आदमी नजर नहीं आता।

''भैया, क्या तुम अकेले मुकरन्द ला सकोगे?'' वन्दना गौरव से कहती है।

''क्यों, क्या मैं दलीपसिंह से डरता हूं?'' गौरव दृढ़ता के साथ कहता है।

''लेकिन तुम्हें इसका क्या पता कि दलीपसिंह ने वह कहां छुपा रखा होगा?''

''मैं उसका खुद पता लगा लूंगा।'' गौरव कहता है- ''तू मां के पास जा, उसे भी अपना रहस्य मत बताइयो।''

''वो तो मैं चली जाऊंगी भैया, मगर मुझे तुम्हारा डर है।'' वन्दना कहती है- ''दलीपसिंह का ऐयार बलवंतसिह बहुत बदमाश है-उससे जरा बचकर रहना। अगर तुम उसके चक्कर में फंस गए तो मुसीबत हो जाएगी। उसने मुकरन्द के चारों ओर कड़ा पहरा लगा रखा होगा।''

''तू मेरी चिन्ता क्यों करती है पगली, अपना काम देख।'' गौरव कहता है।

''अच्छा तो मैं चलती हूं।'' कहने के साथ ही वन्दना और गौरव भिन्न दिशाओं में पैदल ही बढ़ जाते हैं।

वन्दना का हाल हम बाद में बयान करेंगे। फिलहाल हम देखते हैं कि गौरव कहां जाकर क्या करता है और उसके साथ कैसी गुजरती है। उसका रहस्य क्या है। और वह उसे कहां तक छुपा सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book