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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 अध्याय ४

नारदजी का भगवान् विष्णु को क्रोधपूर्वक फटकारना और शाप देना; फिर माया के दूर हो जाने पर पश्चात्तापपूर्वक भगवान् के चरणों में गिरना और शुद्धि का उपाय पूछना तथा भगवान् विष्णु का उन्हें समझा-बुझाकर शिव का माहात्म्य जानने के लिये ब्रह्माजी के पास जाने का आदेश और शिव के भजन का उपदेश देना

सूतजी कहते हैं- महर्षियो! माया-मोहित नारदमुनि उन दोनों शिवगणों को यथोचित शाप देकर भी भगवान् शिव के इच्छावश मोहनिद्रा से जाग न सके। भगवान् विष्णु के किये हुए कपट को याद करके मन में दुस्सह क्रोध लिये विष्णुलोक को गये और समिधा पाकर प्रज्वलित हुए अग्निदेव की भाँति क्रोधसे जलते हुए बोले- उनका ज्ञान नष्ट हो गया था। इसलिये वे दुर्वचनपूर्ण व्यंग सुनाने लगे।

नारदजीने कहा- हरे! तुम बड़े दुष्ट हो, कपटी हो और समस्त विश्व को मोहमें डाले रहते हो। दूसरों का उत्साह या उत्कर्ष तुमसे सहा नहीं जाता। तुम मायावी हो, तुम्हारा अन्तःकरण मलिन है। पूर्वकाल में तुम्हीं ने मोहिनीरूप धारण करके कपट किया, असुरों को वारुणी मदिरा पिलायी, उन्हें अमृत नहीं पीने दिया। छल-कपट में ही अनुराग रखनेवाले हरे! यदि महेश्वर रुद्र दया करके विष न पी लेते तो तुम्हारी सारी माया उसी दिन समाप्त हो जाती। विष्णुदेव! कपटपूर्ण चाल तुम्हें अधिक प्रिय है। तुम्हारा स्वभाव अच्छा नहीं है तो भी भगवान् शंकर ने तुम्हें स्वतन्त्र बना दिया है। तुम्हारी इस चाल-ढाल को समझकर अब वे (भगवान् शिव) भी पश्चात्ताप करते होंगे। अपनी वाणीरूप वेद की प्रामाणिकता स्थापित करनेवाले महादेवजी ने ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया है। हरे! इस बात को जानकर आज मैं बलपूर्वक तुम्हें ऐसी सीख दूँगा, जिससे तुम फिर कभी कहीं भी ऐसा कर्म नहीं कर सकोगे। अबतक तुम्हें किसी शक्तिशाली या तेजस्वी पुरुष से पाला नहीं पड़ा था। इसलिये आजतक तुम निडर बने हुए हो। परंतु विष्णो! अब तुम्हें अपनी करनी का पूरा-पूरा फल मिलेगा!

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