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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

भगवान् विष्णुसे ऐसा कहकर माया-मोहित नारदमुनि अपने ब्रह्मतेज का प्रदर्शन करते हुए क्रोध से खिन्न हो उठे और शाप देते हुए बोले-'विष्णो! तुमने स्त्री के लिये मुझे व्याकुल किया है। तुम इसी तरह सब को मोहमें डालते रहते हो। यह कपटपूर्ण कार्य करते हुए तुमने जिस स्वरूप से मुझे संयुक्त किया था, उसी स्वरूप से तुम मनुष्य हो जाओ और स्त्री के वियोग का दुःख भोगो। तुमने जिन वानरों के समान मेरा मुँह बनाया था, वे ही उस समय तुम्हारे सहायक हों। तुम दूसरों को (स्त्री-विरह का) दुःख देनेवाले हो, अत: स्वयं भी तुम्हें स्त्री के वियोग का दुःख प्राप्त हो। अज्ञान से मोहित मनुष्यों के समान तुम्हारी स्थिति हो।'

अज्ञान से मोहित हुए नारदजी ने मोहवश श्रीहरि को जब इस तरह शाप दिया, तब उन्होंने शम्भु की माया की प्रशंसा करते हुए उस शाप को स्वीकार कर लिया। तदनन्तर महालीला करनेवाले शम्भु ने अपनी उस विश्वमोहिनी माया को, जिसके कारण ज्ञानी नारदमुनि भी मोहित हो गये थे, खींच लिया। उस माया के तिरोहित होते ही नारदजी पूर्ववत् शुद्धबुद्धि से युक्त हो गये। उन्हें पूर्ववत् ज्ञान प्राप्त हो गया और उनकी सारी व्याकुलता जाती रही। इससे उनके मन में बड़ा विस्मय हुआ। वे अधिकाधिक पश्चात्ताप करते हुए बारंबार अपनी निन्दा करने लगे। उस समय उन्होंने ज्ञानी को भी मोहमें डालनेवाली भगवान् शम्भु की माया की सराहना की। तदनन्तर यह जानकर कि माया के कारण ही मैं भ्रम में पड़ गया था - यह सब कुछ मेरा मायाजनित भ्रम ही था, वैष्णवशिरोमणि नारदजी भगवान् विष्णु के चरणों में गिर पड़े। भगवान् श्रीहरि ने उन्हें उठाकर खड़ा कर दिया। उस समय अपनी दुर्बुद्धि नष्ट हो जाने के कारण वे यों बोले- 'नाथ! माया से मोहित होने के कारण मेरी बुद्धि बिगड़ गयी थी। इसलिये मैंने आपके प्रति बहुत दुर्वचन कहे हैं, आपको शापतक दे डाला है। प्रभो! उस शाप को आप मिथ्या कर दीजिये। हाय! मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। अब मैं निश्चय ही नरक में पड़ँगा। हरे! मैं आपका दास हूँ। बताइये मैं क्या उपाय-कौन-सा प्रायश्चित्त करूँ, जिससे मेरा पाप-समूह नष्ट हो जाय और मुझे नरक में न गिरना पडे।' ऐसा कहकर शुद्ध बुद्धिवाले मुनिशिरोमणि नारदजी पुन: भक्तिभाव से भगवान् विष्णु के चरणों में गिर पड़े। उस समय उन्हें बड़ा पश्चात्ताप हो रहा था।

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