ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
तब श्रीविष्णु ने उन्हें उठाकर मधुर वाणी में कहा-
भगवान् विष्णु बोले- तात! खेद न करो। तुम मेरे श्रेष्ठ भक्त हो, इसमें संशय नहीं है। मैं तुम्हें एक बात बताता हूँ, सुनो। उससे निश्चय ही तुम्हारा परम हित होगा, तुम्हें नरक में नहीं जाना पड़ेगा। भगवान् शिव तुम्हारा कल्याण करेंगे। तुमने मद से मोहित होकर जो भगवान् शिव की बात नहीं मानी थी-उसकी अवहेलना कर दी थी, उसी अपराध का भगवान् शिव ने तुम्हें ऐसा फल दिया है; क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता हैं। तुम अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लो कि भगवान् शिव की इच्छा से ही यह सब कुछ हुआ है। सबके स्वामी परमेश्वर शंकर ही गर्व को दूर करनेवाले हैं। वे ही परब्रह्म परमात्मा हैं। उन्हीं का सच्चिदानन्दरूप से बोध होता है। वे निर्गुण और निर्विकार हैं। सत्त्व, रज और तम - इन तीनों गुणों से परे हैं। वे ही अपनी माया को लेकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश - इन तीन रूपों में प्रकट होते हैं। निर्गुण और सगुण भी वे ही हैं। निर्गुण अवस्था में उन्हीं का नाम शिव है। वे ही परमात्मा, महेश्वर, परब्रह्म, अविनाशी, अनन्त और महादेव आदि नामों से कहे जाते हैं। उन्हीं की सेवा से ब्रह्माजी जगत् के स्रष्टा हुए हैं और मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ। वे स्वयं ही रुद्ररूप से सदा सबका संहार करते हैं। वे शिवस्वरूप से सबके साक्षी हैं, माया से भिन्न और निर्गुण हैं। स्वतन्त्र होने के कारण वे अपनी इच्छा के अनुसार चलते हैं। उनका विहार-आचार-व्यवहार उत्तम है और वे भक्तों पर दया करनेवाले हैं। नारदमुने! मैं तुम्हें एक सुन्दर उपाय बताता हूँ जो सुखद, समस्त पापों का नाशक और सदा भोग एवं मोक्ष देनेवाला है। तुम उसे सुनो। अपने सारे संशयों को त्यागकर तुम भगवान् शंकरके सुयश का गान करो और सदा अनन्यभाव से शिव के शतनामस्तोत्र का पाठ करो। मुने! तुम निरन्तर उन्हीं की उपासना और उन्हीं का भजन करो। उन्हीं के यश को सुनो और गाओ तथा प्रतिदिन उन्हीं की पूजा-अर्चा करते रहो। नारद! जो शरीर मन और वाणी द्वारा भगवान् शंकर की उपासना करता है उसे पण्डित या ज्ञानी जानना चाहिये। वह जीवन्मुक्त कहलाता है। 'शिव' इस नामरूपी दावानल से बड़े-बड़े पातकों के असंख्य पर्वत अनायास भस्म हो जाते हैं - यह सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है। जो भगवान् शिव के नामरूपी नौका का आश्रय लेते हैं? वे संसार-सागर से पार हो जाते हैं। संसार के मूलभूत उनके सारे पाप निस्संदेह नष्ट हो जाते हैं। महामुने! संसार के मूलभूत जो पातकरूपी वृक्ष हैं उनका शिवनामरूपी कुठार से निश्चय ही नाश हो जाता है।
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