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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

जो लोग पापरूपी दावानल से पीड़ित हैं उन्हें शिवनामरूपी अमृत का पान करना चाहिये। पापदावाग्नि से दग्ध होनेवाले प्राणियों को उस (शिवनामामृत) के बिना शान्ति नहीं मिल सकती। सम्पूर्ण वेदों का अवलोकन करके पूर्ववर्ती विद्वानों ने यही निश्चय किया है कि भगवान् शिव की पूजा ही उत्कृष्ट साधन तथा जन्म-मरणरूपी संसारबन्धन के नाश का उपाय है। आज से यत्नपूर्वक सावधान रहकर विधि-विधान के साथ भक्तिभाव से नित्य-निरन्तर जगदम्बा पार्वती सहित महेश्वर सदाशिव का भजन करो, नित्य शिव की ही कथा सुनो और कहो तथा अत्यन्त यत्न करके बारंबार शिवभक्तों का पूजन किया करो। मुनिश्रेष्ठ! अपने हृदय में भगवान् शिव के उज्ज्वल चरणारविन्दों की स्थापना करके पहले शिव के तीर्थों में विचरो। मुने! इस प्रकार परमात्मा शंकरके अनुपम माहात्म्य का दर्शन करते हुए अन्त में आनन्दवन (काशी) को जाओ, वह स्थान भगवान् शिव को बहुत ही प्रिय है। वहाँ भक्तिपूर्वक विश्वनाथजी का दर्शन-पूजन करो। विशेषत: उनकी स्तुति-वन्दना करके तुम निर्विकल्प (संशयरहित) हो जाओगे, नारदजी! इसके बाद तुम्हें मेरी आज्ञा से भक्तिपूर्वक अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये निश्चय ही ब्रह्मलोक में जाना चाहिये। वहाँ अपने पिता ब्रह्माजी की विशेषरूप से स्तुति-वन्दना करके तुम्हें प्रसन्नतापूर्ण हृदय से बारंबार शिव-महिमा के विषय में प्रश्न करना चाहिये। ब्रह्माजी शिव-भक्तों में श्रेष्ठ हैं। वे तुम्हें बड़ी प्रसन्नता के साथ भगवान् शंकर का माहात्म्य और शतनामस्तोत्र सुनायेंगे। मुने! आज से तुम शिवाराधन में तत्पर रहनेवाले शिवभक्त हो जाओ और विशेषरूप से मोक्ष के भागी बनो। भगवान् शिव तुम्हारा कल्याण करेंगे। इस प्रकार प्रसन्नचित्त हुए भगवान् विष्णु नारदमुनि को प्रेमपूर्वक उपदेश देकर श्रीशिव का स्मरण, वन्दन और स्तवन करके वहाँसे अन्तर्धान हो गये।

 

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