ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्मन्! सुनो, मैं तुम्हें एक गोपनीय बात बता रहा हूँ। मैं स्वयं ब्रह्माजी की भुकुटि से प्रकट होऊँगा। गुणों में भी मेरा प्राकट्य कहा गया है। जैसा कि लोगों ने कहा है 'हर तामस प्रकृति के हैं।' वास्तव में उस रूप में अहंकार का वर्णन हुआ है। उस अहंकार को केवल तामस ही नहीं, वैकारिक (सात्त्विक) भी समझना चाहिये (क्योंकि सात्त्विक देवगण वैकारिक अहंकार की ही सृष्टि हैं)। यह तामस और सात्त्विक आदि भेद केवल नाममात्र का है वस्तुत: नहीं है। वास्तव में 'हर' को तामस नहीं कहा जा सकता। ब्रह्मन्! इस कारण से तुम्हें ऐसा करना चाहिये। तुम तो इस सृष्टि के निर्माता बनो और श्रीहरि इसका पालन करें तथा मेरे अंश से प्रकट होनेवाले जो रुद्र हैं वे इसका प्रलय करनेवाले होंगे। ये जो 'उमा' नाम से विख्यात परमेश्वरी प्रकृति देवी हैं, इन्हीं की शक्तिभूता वाग्देवी ब्रह्माजी का सेवन करेंगी। फिर इन प्रकृति देवी से वहाँ जो दूसरी शक्ति प्रकट होगी वे लक्ष्मीरूप से भगवान् विष्णु का आश्रय लेंगी। तदनन्तर पुन: काली नामसे जो तीसरी शक्ति प्रकट होंगी, वे निश्चय ही मेरे अंशभूत रुद्रदेव को प्राप्त होंगी। वे कार्य की सिद्धि के लिये वहाँ ज्योतिरूप से प्रकट होंगी। इस प्रकार मैंने देवी की शुभस्वरूपा पराशक्तियों का परिचय दिया। उनका कार्य क्रमश: सृष्टि, पालन और संहार का सम्पादन ही है। सुरश्रेष्ठ। ये सब-की-सब मेरी प्रिया प्रकृति देवी की अंशभूता हैं। हरे! तुम लक्ष्मी का सहारा लेकर कार्य करो। ब्रह्मन्! तुम्हें प्रकृति की अंशभूता वाग्देवी को पाकर मेरी आज्ञा के अनुसार मन से सृष्टि कार्य का संचालन करना चाहिये और मैं अपनी प्रिया की अंशभूता परात्पर काली का आश्रय ले रुद्ररूप से प्रलय-सम्बन्धी उत्तम कार्य करूँगा। तुम सब लोग अवश्य ही सम्पूर्ण आश्रमों तथा उनसे भिन्न अन्यान्य विविध कार्यों द्वारा चारों वर्णों से भरे हुए लोक की सृष्टि एवं रक्षा आदि करके सुख पाओगे।
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