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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अर्ध्यमन्त्र

रूपं देहि यशो देहि भोगं देहि च शङ्कर।
भुक्तिमुक्तिफलं देहि गृहीत्वार्ध्यं नमोऽस्तु ते।।

'प्रभो! शंकर! आपको नमस्कार है। आप इस अर्ध्य को स्वीकार करके मुझे रूप दीजिये, यश दीजिये, भोग दीजिये तथा भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान कीजिये।'

इसके बाद भगवान् शिव को भांति-भांति के उत्तम नैवेद्य अर्पित करे। नैवेद्य के पश्चात् प्रेमपूर्वक आचमन कराये। तदनन्तर सांगोपांग ताम्बूल बनाकर शिव को समर्पित करे। फिर पाँच बत्ती की आरती बनाकर भगवान् को दिखाये। उस की संख्या इस प्रकार है- पैरों में चार बार, नाभिमण्डल के सामने दो बार, मुख के समक्ष एक बार तथा सम्पूर्ण अंगों में सात बार आरती दिखाये। तत्पश्चात् नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा प्रेमपूर्वक भगवान् वृषभध्वज की स्तुति करे। तदनन्तर धीरे- धीरे शिव की परिक्रमा करे। परिक्रमा के बाद भक्त पुरुष साष्टांग प्रणाम करे और निम्नांकित मन्त्र से भक्तिपूर्वक पुष्पांजलि दे-

पुष्पांजलिमन्त्र

अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाद्यद्यत्पूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शङ्कर।।
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्वच्चितोऽहं सदा मृड।
इति विज्ञाय गौरीश भूतनाथ प्रसीद मे।।
भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलम्बनम्।
त्वयि जातापराधानां त्वमेव शरणं प्रभो।।

'शंकर! मैंने अज्ञान से या जान-बूझकर जो पूजन आदि किया है, वह आप की कृपासे सफल हो। मृड! मैं आप का हूँ, मेरे प्राण सदा आप में लगे हुए हैं मेरा चित्त सदा आप का ही चिन्तन करता है-ऐसा जानकर हे गौरीनाथ! भूतनाथ! आप मुझपर प्रसन्न होइये। प्रभो! धरती पर जिनके पैर लड़खड़ा जाते हैं उनके लिये भूमि ही सहारा है; उसी प्रकार जिन्होंने आपके प्रति अपराध किये हैं उनके लिये भी आप ही शरणदाता हैं।' -इत्यादि रूप से बहुत-बहुत प्रार्थना करके उत्तम विधि से पुष्पांजलि अर्पित करने के पश्चात् पुन: भगवान् को नमस्कार करे। फिर निम्नांकित मन्त्र से विसर्जन करना चाहिये।

विसर्जन

स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वयाऽऽगन्तव्यमादरात्।।

'देवेश्वरप्रभो! अब आप परिवार सहित अपने स्थान को पधारें। नाथ! जब पूजा का समय हो, तब पुन: आप यहाँ सादर पदार्पण करें।'

इस प्रकार भक्तवत्सल शंकर की बारंबार प्रार्थना करके उनका विसर्जन करे और उस जलको अपने हृदय में लगाये तथा मस्तक पर चढ़ाये।

ऋषियो! इस तरह मैंने शिवपूजन की सारी विधि बता दी, जो भोग और मोक्ष देनेवाली है। अब और क्या सुनना चाहते हो?

* * *

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