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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १७-१९

यज्ञदत्तकुमार को भगवान् शिव की कृपा से कुबेरपद की प्राप्ति तथा उनकी  भगवान् शिव के साथ मैत्री

सूतजी कहते हैं- मुनीश्वरो! ब्रह्माजी की यह बात सुनकर नारदजी ने विनयपूर्वक उन्हें प्रणाम किया और पुन: पूछा- 'भगवन्! भक्तवत्सल भगवान् शंकर कैलास पर्वत पर कब गये और महात्मा कुबेर के साथ उनकी मैत्री कब हुई? परिपूर्ण मंगलविग्रह महादेवजी ने वहाँ क्या किया? यह सब मुझे बताइये। इसे सुनने के लिये मेरे मन में बड़ा कौतूहल है।'

ब्रह्माजी ने कहा- नारद! सुनो, चन्द्रमौलि भगवान् शंकर के चरित्र का वर्णन करता हूँ। वे कैसे कैलास पर्वत पर गये और कुबेर की उनके साथ किस प्रकार मैत्री हुई, यह सब सुनाता हूँ। काम्पिल्य नगर में यज्ञदत्त नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे, जो बड़े सदाचारी थे। उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम गुणनिधि था। वह बड़ा ही  दुराचारी और जुआरी हो गया था। पिता ने अपने उस पुत्र को त्याग दिया। वह घर से निकल गया और कई दिनों तक भूखा भटकता रहा। एक दिन वह नैवेद्य चुराने की इच्छा से एक शिवमन्दिर में गया। वहाँ उसने अपने वस्त्र को जलाकर उजाला किया। यह मानो उसके द्वारा भगवान् शिव के लिये दीपदान किया गया। तत्पश्चात् वह चोरी में पकड़ा गया और उसे प्राणदण्ड मिला। अपने कुकर्मों के कारण वह यमदूतों द्वारा बाँधा गया। इतने में ही भगवान् शंकर के पार्षद वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने उसे उनके बन्धन से छुड़ा दिया। शिवगणों के संग से उसका हृदय शुद्ध हो गया था। अत: वह उन्हीं के साथ तत्काल शिवलोक में चला गया। वहाँ सारे दिव्य भोगों का उपभोग तथा उमा-महेश्वर का सेवन करके कालान्तर में वह कलिंगराज अरिदम का पुत्र हुआ। वहाँ उसका नाम था दम। वह भगवान् शिव की सेवा में लगा रहता था। बालक होने पर भी वह दूसरे बालकों के साथ शिव का भजन किया करता था। वह क्रमश: युवावस्था को प्राप्त हुआ और पिता के परलोकगमन के पश्चात् राजसिंहासन पर बैठा।

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