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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

राजा दम बड़ी प्रसन्नता के साथ सब ओर शिवधर्मों का प्रचार करने लगे। भूपाल दम का दमन करना दूसरों के लिये सर्वथा कठिन था। ब्रह्मन्! समस्त शिवालयों में दीपदान करने के अतिरिक्त वे दूसरे किसी धर्म को नहीं जानते थे। उन्होंने अपने राज्य में रहनेवाले समस्त ग्रामाध्यक्षों को बुलाकर यह आज्ञा दे दी कि 'शिवमन्दिर में दीपदान करना सबके लिये अनिवार्य होगा। जिस-जिस ग्रामाध्यक्ष के गाँव के पास जितने शिवालय हों, वहाँ-वहाँ बिना कोई विचार किये सदा दीप जलाना चाहिये।' आजीवन इसी धर्म का पालन करने के कारण राजा दम ने बहुत बड़ी धर्मसम्पत्ति का संचय कर लिया। फिर वे काल-धर्म के अधीन हो गये। दीपदान की वासना से युक्त होने के कारण उन्होंने शिवालयों में बहुत-से दीप जलवाये और उसके फलस्वरूप जन्मान्तर में वे रत्नमय दीपों की प्रभा के आश्रय हो अलकापुरी के स्वामी हुए। इस प्रकार भगवान् शिव के लिये किया हुआ थोड़ा-सा भी पूजन या आराधन समयानुसार महान् फल देता है ऐसा जानकर उत्तम सुख की इच्छा रखनेवाले लोगों को शिव का भजन अवश्य करना चाहिये। वह दीक्षित का पुत्र, जो सदा सब प्रकार के अधर्मों में ही रचा-पचा रहता था, दैवयोग से शिवालय में धन चुराने के लिये गया और उसने स्वार्थवश अपने कपड़े को दीपक की बत्ती बनाकर उसके प्रकाश से शिवलिंग के ऊपर का अँधेरा दूर कर दिया; इस सत्कर्म के फलस्वरूप वह कलिंगदेश का राजा हुआ और धर्म में उसका अनुराग हो गया। फिर दीप की वासना का उदय होने से शिवालयों में दीप जलवाकर उसने यह दिक्पाल का पद पा लिया। मुनीश्वर! देखो तो सही, कहाँ उसका वह कर्म और कहाँ यह दिक्पाल की पदवी, जिसका यह मानवधर्मा प्राणी इस समय यहाँ उपभोग कर रहा है। तात! यह तो उसके ऊपर शिव के संतुष्ट होने की बात बतायी गयी। अब एकचित्त होकर यह सुनो कि किस प्रकार सदा के लिये उसकी भगवान् शिव के साथ मित्रता हो गयी। मैं इस प्रसंग का तुमसे वर्णन करता हूँ।

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