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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय ३

मायानिर्मित नगर में शीलनिधि की कन्यापर मोहित हुए नारदजी का भगवान् विष्णु से उनका रूप माँगना, भगवान् का अपने रूप के साथ उन्हें वानर का-सा मुँह देना, कन्या का भगवान् को वरण करना और कुपित हुए नारद का शिवगणों को शाप देना

सूतजी कहते हैं- महर्षियो! जब नारदमुनि इच्छानुसार वहाँ से चले गये, तब भगवान् शिव की इच्छा से मायाविशारद श्रीहरि ने तत्काल अपनी माया प्रकट की। उन्होंने मुनि के मार्ग में एक विशाल नगर की रचना की, जिसका विस्तार सौ योजन था। वह अद्भुत नगर बड़ा ही मनोहर था। भगवान् ने उसे अपने वैकुण्ठलोक से भी अधिक रमणीय बनाया था। नाना प्रकार-की वस्तुएँ उस नगर की शोभा बढ़ाती थीं। वहाँ स्त्रियों और पुरुषों के लिये बहुत-से विहार-स्थल थे। वह श्रेष्ठ नगर चारों वर्णों के लोगों से भरा था। वहाँ शीलनिधि नामक ऐश्वर्यशाली राजा राज्य करते थे। वे अपनी पुत्री का स्वयंवर करने के लिये उद्यत थे। अत: उन्होंने महान् उत्सव का आयोजन किया था। उनकी कन्या का वरण करने के लिये उत्सुक हो चारों दिशाओं से बहुत-से राजकुमार पधारे थे, जो नाना प्रकार की वेश-भूषा तथा सुन्दर शोभा से प्रकाशित हो रहे थे। उन राजकुमारों से वह नगर भरा-पूरा दिखायी देता था। ऐसे सुन्दर राजनगर को देख नारदजी मोहित हो गये। वे राजा शीलनिधि के द्वार पर गये। मुनि-शिरोमणि नारद को आया देख महाराज शीलनिधि ने श्रेष्ठ रत्नमय सिंहासन पर बिठाकर उनका पूजन किया। तत्पश्चात् अपनी सुन्दरी कन्या को, जिस का नाम श्रीमती था, बुलवाया और उससे नारदजी के चरणों में प्रणाम करवाया। उस कन्या को देखकर नारदमुनि चकित हो गये और बोले- 'राजन्! यह देवकन्या के समान सुन्दरी महाभागा कन्या कौन है?' उनकी यह बात सुनकर राजा ने हाथ जोड़कर कहा- 'मुने! यह मेरी पुत्री है। इस का नाम श्रीमती है। अब इसके विवाह का समय आ गया है। यह अपने लिये सुन्दर वर चुनने के निमित्त स्वयंवर में जानेवाली है। इसमें सब प्रकार के शुभ लक्षण लक्षित होते हैं। महर्षे। आप इसका भाग्य बताइये।'

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