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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

राजा के इस प्रकार पूछने पर काम से विह्वल हुए मुनिश्रेष्ठ नारद उस कन्या को प्राप्त करने की इच्छा मन में लिये राजा को सम्बोधित करके इस प्रकार बोले- 'भूपाल! आपकी यह पुत्री समस्त शुभ लक्षणों से सम्पन्न है परम सौभाग्यवती है। अपने महान् भाग्य के कारण यह धन्य है और साक्षात् लक्ष्मी की भांति समस्त गुणों की आगार है। इसका भावी पति निश्चय ही भगवान् शंकरके समान वैभव-शाली, सर्वेश्वर किसी से पराजित न होनेवाला, वीर, कामविजयी तथा सम्पूर्ण देवताओं में श्रेष्ठ होगा।'

ऐसा कहकर राजा से विदा ले इच्छानुसार विचरनेवाले नारदमुनि वहाँ से चल दिये। वे काम के वशीभूत हो गये थे। शिव की माया ने उन्हें विशेष मोहमें डाल दिया था। वे मुनि मन-ही-मन सोचने लगे कि 'मैं इस राजकुमारी को कैसे प्राप्त करूँ? स्वयंवर में आये हुए नरेशों में से सबको छोड़कर यह एकमात्र मेरा ही वरण करे, यह कैसे सम्भव हो सकता है? समस्त नारियों को सौन्दर्य सर्वथा प्रिय होता है। सौन्दर्य को देखकर ही वह प्रसन्नतापूर्वक मेरे अधीन हो सकती है इसमें संशय नहीं है।'

ऐसा विचारकर काम से विह्वल हुए मुनिवर नारद भगवान् विष्णु का रूप ग्रहण करने के लिये तत्काल उनके लोक में जा पहुँचे। वहाँ भगवान् विष्णु को प्रणाम करके वे इस प्रकार बोले-'भगवन्! मैं एकान्त में आपसे अपना सारा वृत्तान्त कहूँगा।' तब 'बहुत अच्छा' कहकर लक्ष्मीपति श्रीहरि नारदजी के साथ एकान्त में जा बैठे और बोले-' मुने! अब आप अपनी बात कहिये।'

तब नारदजीने कहा- भगवन्! आप के भक्त जो राजा शीलनिधि हैं, वे सदा धर्म-पालन में तत्पर रहते हैं। उनकी एक विशाललोचना कन्या है जो बहुत ही सुन्दरी है। उसका नाम श्रीमती है। वह विश्वमोहिनी के रूप में विख्यात है तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दरी है। प्रभो! आज मैं शीघ्र ही उस कन्यासे विवाह करना चाहता हूँ। राजा शीलनिधि ने अपनी पुत्री की इच्छा से स्वयंवर रचाया है। इसलिये चारों दिशाओं से वहाँ सहस्रों राजकुमार पधारे हैं। नाथ! मैं आपका प्रिय सेवक हूँ। अत: आप मुझे अपना स्वरूप दे दीजिये, जिससे राजकुमारी श्रीमती निश्चय ही मुझे वर ले।

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