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शिवसहस्रनाम

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2096

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भगवान शिव के सहस्त्रनाम...


पूर्ण: पूरयिता पुण्य: सुकुमार: सुलोचन:।
सामगेयप्रियोऽक्रूर: पुण्यकीर्तिरनामय: ।।१०१।।

७७४ पूर्णः - सर्वव्यापी परब्रह्म परमात्मा, ७७५ पूरयिता - भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवाले, ७७६ पुण्यः - परम पवित्र, ७७७ सुकुमार - सुन्दर कुमार हैं जिनके, ऐसे, ७७८ सुलोचनः- सुन्दर-नेत्रवाले, ७७९ सामगेयप्रियः - सामगान के प्रेमी, ७०० अक्रूर: - क्रूरतारहित, ७८१ पुण्यकीर्ति: - पवित्र कीर्तिवाले, ७८२ अनामयः - रोग-शोक से रहित ।।१०१।।

मनोजवस्तीर्थकरो जटिलो जीवितेश्वर:।
जीवितान्तकरो नित्यो वसुरेता वसुप्रद:।।१०२।।

७८३ मनोजव: - मन के समान वेगशाली, ७८४ तीर्थकरः - तीर्थों के निर्माता, ७८५ जटिलः - जटाधारी, ७८६ जीवितेश्वर: - सबके प्राणेश्वर, ७८७ जीवितान्तकरः - प्रलयकाल में सबके जीवन का अन्त करनेवाले, ७८८ नित्यः - सनातन, ७८९ वसुरेताः - स्वर्णमय वीर्यवाले, ७९० वसुप्रदः -धनदाता।।१०२।।

सद्गति: सत्कृतिः सिद्धि: सज्जाति: खलकण्टक:।
कलाधरो महाकालभूत: सत्यपरायण: ।।१०३।।

७९१ सद्‌गतिः - सत्पुरुषों के आश्रय, ७९२ सत्कृतिः - शुभ कर्म करनेवाले, ७९३ सिद्धिः - सिद्धिस्वरूप, ७९४ सज्जाति: - सत्पुरुषों के जन्मदाता, ७९५ खलकण्टक: - दुष्टों के लिये कण्टकरूप, ७९६ कलाधर: - कलाधारी, ७९७ महाकालभूत:- महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगस्वरूप अथवा काल के भी काल होने से महाकाल, ७९८ सत्यपरायण: - सत्यनिष्ठ।।१०३।।

लोकलावण्यकर्ता च लोकोत्तरसुखालय:।
चन्द्रसंजीवन: शास्ता लोकगूढ़ो महाधिप:।।१०४।।

७९९ लोकलावण्यकर्ता - सब लोगों को सौन्दर्य प्रदान करनेवाले, ८०० लोकोत्तरसुखालय: - लोकोत्तर सुख के आश्रय, ८०१ चन्द्रसंजीवन: शास्ता - सोमनाथरूप से चन्द्रमा को जीवन प्रदान करनेवाले सर्वशासक शिव, ८०२ लोकगूढ: -समस्त संसार में अव्यक्तरूप से व्यापक, ८०३ महाधिप: - महेश्वर।।१०४।।

लोकबन्धुर्लोकनाथ: कृतज्ञ: कीर्तिभूषण:।
अनपायोऽक्षर: कान्त: सर्वशस्त्रभृतां वर:।।१०५।।

८०४ लोकबन्धुर्लोकनाथ: - सम्पूर्ण लोकों के बन्धु एवं रक्षक, ८०५ कृतज्ञ: - उपकार को माननेवाले, ८०६ कीर्तिभूषण: - उत्तम यश से विभूषित, ८०७ अनपायोऽक्षर: - विनाशरहित-अविनाशी, ८०८ कान्त: - प्रजापति दक्ष का अन्त करनेवाले, ८०९ सर्वशस्त्रभृतां वर: - सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ।।१०५।।

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