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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेजकृष्ण ने कह दिया, ‘‘इस प्रकार तुम्हारा पाकिस्तान का रुचिकर इतिहास कुछ और सुनने का सुअवसर मिलेगा।’’

‘‘हाँ!’’ नज़ीर ने कुछ स्मरण करने के लिए कुछ देर आंखें मूंदी और फिर कहने लगी, ‘‘कल मैंने आपको बताया था कि मुझे गवर्नमैण्ट हाऊस के कम्पाउण्ड में ही, मुख्य भवन से पृथक्, एक मकान में निवास मिल गया था। पूर्ण घर के ऊपर की मंजिल मेरे अधिकार में थी। नीचे की मंजिल पर रसोई खाना नौकरों तथा ‘गार्ड्स’ के रहने का स्थान था। मुस्ताक को अपनी पत्नी के साथ नीचे की मंजिल में रहने को स्थान मिल गया। रसोई घर भी वहां था। मैं उसे देखने गयी थी और उसमें कुछ परिवर्तनों का सुझाव दिया था। अजीज साहब ने उनको शीघ्र करवा देने का वचन दिया। शेष मकान तो बहुत ही सुन्दर सजा हुआ था। मेरा अनुमान था कि उसमें तीस-चालीस हजार रुपये की लागत का फरनीचर लगा होगा। मैं विस्मय करती थी कि वह अमेरिकन औरत कौन होगी जिसके लिये इतना सरकारी धन व्यय किया गया होगा।

‘‘अजीज साहब के जाते ही मुश्ताक की बीवी नसीम आ गयी और बोली, ‘हमें हुक्म हुआ है कि आपकी खिदमत में यहां रहें।’’

‘‘मैंने ही गवर्नर बहादुर से कह कर दोनों को अपने पास रखा है। मेरी इच्छा यह है कि तुम्हारा पति खानसामा और चौकीदार का काम करे। उसे ऊपर की मंजिल पर आने की आवश्यकता नहीं। तुम ही खाना इत्यादि ऊपर लाया करोगी। मैंने रसोई घर से ऊपर की मंजिल पर खाना लाने का प्रबन्ध कर दिया है। तुम्हारे बिना नीचे गये और बिना तुम्हारे घर वाले के ऊपर आए टेलीफोन करने पर खाना एक लिफ्ट से ऊपर आ सकेगा। तुम्हें ऊपर से नीचे रसोई घर में आना-जाना नहीं पडेगा।’

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