उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘उसी सीमा तक जहां तक यू० के० सरकार इनको बताना पसन्द करेगी। इस विषय में यू० के० हाई कमिश्नर से वार्तालाप करूंगा।’’
‘‘तब तो आपके ‘सीक्रेट’ कार्य को मैं भी सुन सकूंगी। मैं यत्न किया करूंगी कि आप दोनों में भेट मेरे सम्मुख हुआ करे।’’
‘‘ठीक है! तुम भी इसमें बैठ सुन सका करोगी।’’
‘‘मगर आपने कुछ पाकिस्तान सरकार से लेना पसन्द क्यों नहीं किया?’’
‘‘यह मेरा ‘सीक्रेट’ है! इसको तुम स्वयं जानने का यत्न करो।’’
‘‘तो यह मेरे कारण नहीं है?’’
‘‘यह भी तुम स्वयं ही जानने का यत्न करो तो पता पा जायोगी।’’
‘‘मेरे विषय में यू० के० कमिश्नर कुछ कहते थे?’’ नज़ीर ने बात बदल कर पूछ लिया।
‘‘केवल एक शब्द कहा था।’’
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि मैं बहुत ‘लक्की’ हूं जो इतनी सुन्दर पत्नी पा गया हूं।’’
‘‘बस फिर लगे हैं मेरी खुशामद करने।’’
तेजकृष्ण हंस पड़ा।
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उस दिन उन्होंने यह निश्चय किया कि व्यर्थ में टैक्सी के भाड़े पर धन व्यय नहीं करेंगे और घर पर ही परस्पर संगत का लाभ उठायेंगे।
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