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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘जिन्ना को जब वह रिपोर्ट मिली तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और कराची से लाहौर जा पहुंचा। वह आशा करता था कि नवम्बर के प्रथम सप्ताह में होने वाला ईद का जशन श्रीनगर में मनाया जा सकेगा।

‘‘जिन्ना साहब समझते थे कि प्रथम तो महाराज कश्मीर भारत सरकार से सहायता नहीं मांगेगा। वह महाराज हरिसिंह और पण्डित जवाहरलाल नेहरू में शत्रुता के विषय में पूरी जानकारी रखता था।

‘‘इस शत्रुता में रामचन्द्र काक का मुख्य हाथ था। पाकिस्तान बनते ही रामचन्द्र काक कराची गया था और वहां उसमें तथा जिन्ना में वार्त्तालाप हुआ था। वह वार्त्तालाप स्टेनोग्राफर ने रिकोर्ड किया था। काक ने पाकिस्तान से तेल, अनाज और आवश्यक सामान माँगे थे। जिन्ना साहब ने वे देने स्वीकार किए थे और कश्मीर तथा पाकिस्तान में समझौता और संधि की माँग की थी। काक इसके लिए तैयार था।

‘‘मगर जब काक श्रीनगर में पहुंचा और उसने महाराज से पाकिस्तान के साथ की संधि की बात की तो महाराज ने संधि की बात स्वीकार नहीं की। उसमें महाराज की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध थे। इस पर काक ने कहा कि वह जिन्ना साहब को यह वचन दे आया है कि कश्मीर पाकिस्तान का एक सूबा बन कर रहेगा।

‘‘इस विषय पर काक और महाराज में तनातनी हो गयी। काक ने जिन्ना को पत्र लिखा कि वह महाराज को पाकिस्तान में सम्मिलित होने के लिए तैयार नहीं कर सका। यह पत्र महाराज की खुफिया पुलिस ने पकड़ लिया और काक को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। उसके स्थान पर पंजाब हाईकोर्ट के एक जज मेहरचन्द महाजन को कश्मीर का प्राईम मिनिस्टर घोषित कर दिया गया।’’

‘‘इस समय तक कबायलियों की तैयारी पूर्ण हो गई थी और मेहरचन्द महाजन के पहुंचते ही कबायली कश्मीर सीमा पार कर कश्मीर में लूट-मार मचाने लगे।’’

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