उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘जिन्ना साहब की दूसरी आशा यह थी कि जब महाराज कश्मीर भारत से सहायता माँगेगा तो जवाहरलाल इन्कार कर देगा, परन्तु मेहरचन्द महाजन की नीति सफल हुई और भारत सरकार की सेना श्रीनगर में जा पहुंची। अतः जिन्ना साहब का स्वप्न, ईद श्रीनगर में मनाने का, पूरा नहीं हो सका।
‘‘साथ ही कबायलियों ने कश्मीर के मुसलमानों से भी ऐसा व्यवहार किया कि कश्मीरी मुसलमान नाराज हो गये और उनके नेता शेख अब्दुल्ला भी मेहरचन्द महाराज की माँग कि भारत कश्मीर की रक्षा करे, का समर्थन करनेवाला हो गया। नेहरू साहब ने विवश हो कश्मीर की रक्षा के लिए सेना भेजना स्वीकार किया तो जिन्ना साहब का स्वप्न भंग हुआ और उस दिन के उपरान्त जिन्ना साहब की बीमारी आरम्भ हुई। यह डॉक्टरों का निदान था कि उन्हें कैंसर हो गया है।
‘‘जिस दिन जिन्ना साहब मरी में बीमार होकर गये, उसी दिन से पाकिस्तानी सैनिक और शहरी अफसर जो अमेरिका ग्रुप में थे, खुशियां मनाने लगे थे।’’
‘‘लियाकत अली और बहुत बड़ी संख्या में सैनिक अधिकारी ब्रिटेन के अनुकूल थे, परन्तु ब्रिटिश प्राईम मिनिस्टर ऐटिली का झुकाव भारत की ओर देख लियाकत अली ब्रिटिश सरकार का विरोधी हो गया और अमेरिका के पक्ष में हो गया।’’
‘‘अमेरिका ने लियाकत अली को सन् १९५० में अमेरिका बुलाया और उसे सब प्रकार की सहायता का आश्वासन दिया। ब्रिटेन में दो दलीय राजनीति चलती थी। उस समय मजदूर दल की सरकार थी। वह भारत पाकिस्तान के झगड़े में तटस्थ रहने का सिद्धान्त मानती थी। दूसरा टोडी दल था। वह पाकिस्तान की सहायता करना चाहता था। जब पाकिस्तान अमेरिका की गोद में बैठने के लिए तैयार हुआ तो एक ओर यह मजदूर सरकार की असफलता समझी गयी और उसे राज्य पद से हटा दिया गया और दूसरी ओर लियाकत अली जो अमरीकी सरकार की सहायता पर बगलें बजा रहा था, मार डाला गया।
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